इतिहास के स्रोत सामग्री की खोज - Discovery of the source material of history

इतिहास के स्रोत सामग्री की खोज - Discovery of the source material of history

इतिहास के  स्रोत सामग्री की खोज - Discovery of the source material of history

स्रोत सामग्री की खोज इतिहासकार का सर्वप्रथम एवं महत्वपूर्ण कार्य है। इतिहासकार अपने के वर्ण्य विषय के अनुरूप स्रोत सामग्री की खोज करता है। स्रोत सामग्री की खोज कोई आसान कार्य नहीं है, उसके लिए इतिहासकार की दृष्टि वैज्ञानिक होना चाहिए। इतिहासकार जी.एम. ट्रेवेलियन (G.M.) Trevelyan) ने कहा है ऐतिहासिक स्रोतों की खोज प्रणाली वैज्ञानिक होना चाहिए।" इतिहास की वैज्ञानिक अवधारणा 19 वीं सदी की देन है। चूँकि विज्ञान का प्रमुख आधार तथ्य होते हैं, अतः तव्यबादी इतिहासकार इतिहास को तथ्यों का समूह मानने लगे। कार महोदय ने लिखा है कि तथ्यों के बिना। इतिहासकार का प्रयास जड़चिहान तथा निरर्थक है, इतिहासकार के बिना तथ्य मृतप्राय एवं निरर्थक है।






ई. एच. कार महोदय का यह कथन स्रोतों के महत्व का परिचायक है। बिना स्रोतों की खोज किए लिखा गया इतिहास, इतिहास न होकर साहित्य ही रहेगा। इतिहास लेखन के पूर्व स्रोतों की खोज अति आवश्यक है। एक अच्छा इतिहासकार वह होता है, जो इतिहास लेखन के पूर्व स्रोत सामग्री की खोज में अत्यधिक समय लगाता है। जितनी अधिक और बृहत स्तर पर स्रोत सामग्री की खोज की जाएगी, इतिहास उतना ही प्रामाणिक एवं महत्वपूर्ण होगा। इतिहासविद राहुल सांकृत्यायन एक महा यायावर थे।


उन्होंने अपनी यात्राओं के दौरान मध्य एशिया का इतिहास लिखने के लिए विपुल मात्रा में स्रोत सामग्री खोजी। इसका परिणाम यह हुआ कि उनके द्वारा लिखे गए मध्य एशिया के इतिहास को अत्यधिक ख्याति राहुल सांकृत्यायन द्वारा स्रोत सामग्री की खोज के संबंध में गुणाकर मुले(Gunakar Mule) ने लिखा है— "अपनी दो साल सन् 1945-47 ई. की रूस यात्रा में राहुल जी ने मध्य एशिया का इतिहास लिखने के लिए चार पाँच मन पुस्तकें जमा की थी, पुस्तकों से बहुत से नोट लिए थे, विद्वानों से मिले थे और सन् 1951-52 ई. में दो बड़ी जिल्दों में करीब 1200 पृष्ठों में मध्य एशिया का इतिहास लिख मध्य एशिया का प्रामाणिक इतिहास लिखने के कारण ही राहुल सांकृत्यायन को इतिहास जगत में प्रसिद्धि मिली। प्रख्यात विद्वान नामवर सिंह ने भी उनकी स्रोत सामग्री की खोज के महत्व को इंगित करते हुए लिखा है- "राहुलजी ने एक अदभुत ग्रंथ लिखा था। उसकी टक्कर का ग्रंथ आज अग्रेजी में भी नहीं है, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का तो सवाल ही नहीं उठता। हजारों वर्षों का इतिहास राहुल ने अकेले लिखा। राहुल लगभग 20 वर्षों तक स्रोत सामग्री एकत्रित करते रहे। अनेक भाषाएँ सीखी, उसके लिए और उन भाषाओं के द्वारा कालानुक्रम में भूखंड में फैली घटनाओं को समझा और मध्य एशिया के इतिहास का विशाल ग्रंथ दो जिल्दों में लिखा... अब यह देखना है कि राहुल क्या जानते थे और इतिहास दर्शन, धर्म तथा संस्कृति की कितनी बड़ी परंपराओं से उनका परिचय था तो मध्य एशिया का इतिहास देखें"







राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखा गया यह ग्रंथ इस बात का सूचक है कि एक इतिहासकार के लिए स्रोत सामग्री की खोज कितनी आवश्यक है। स्रोत सामग्री जितनी अधिक एवं प्रामाणिक होगी उसके द्वारा लिखा गया इतिहास भी उतना ही प्रामाणिक होगा।