इतिहास के प्राथमिक स्रोत - Primary Sources of History
इतिहास के प्राथमिक स्रोत - primary sources of history
प्राथमिक स्रोतों को प्राथमिक इसलिए कहा जाता है, क्योंकि अनुसंधानकर्ता पहली बार सामग्री को मूल स्रोतों से प्राप्त करता है और स्वयं घटनास्थल पर जाकर जानकारी एकत्रित करता है तथा संबंधित लोगों से संपर्क स्थापित करता है।
अन्य शब्दों में हम कहें तो प्राथमिक स्रोत के होते हैं, जो किसी घटना, वस्तु, व्यक्ति या कार्य प्रणाली से सीधे जुड़े होते हैं। इसमें ऐतिहासिक तथ्य एवं साक्ष्य वैधानिक दस्तावेज प्रत्यक्षदर्शी के दस्तावेज, प्रयोगों के परिणाम, ऑडियो वीडियो क्लिप तथा संबंधित अन्य साधन जो व्यक्तिगत रूप से सीधे संबंधित हाँ आते हैं। पीटर एच. मेघ के अनुसार प्राथमिक स्रोत हमें प्रथम स्तर पर संकलित की गई तथ्य सामग्री प्रदान करते हैं अर्थात् जिन लोगों ने उनको इकट्ठा किया है, उनके द्वारा प्रस्तुत की गई सामग्री के ये भौतिक स्वरूप है।
श्रीमति गंग के अनुसार प्राथमिक तथ्य सामग्री प्रथम स्तर पर एकत्रित की जाती है एवं इसके संकलन
तथा प्रकाशन का उत्तरदायित्व उस अधिकारी पर रहता है, जिसने मौलिक रूप से उन्हें एकत्र किया था।" इतिहास में प्राथमिक स्रोत
(i) लिखित साधन जीवनी, शिलालेगा, कथा, वंशावलियाँ, सिक्के, मुद्राएँ, ताम्रपत्र आदि (ii) मौखिक परंपराएँ-गाधाएँ कहानियाँ आदि|
(iii) कलात्मक प्रदर्शनी जैसे ऐतिहासिक चित्र, मूर्तियां सिक्के आदि।
(iv) अवशेष मानव अवशेष, भवन, अस्त्र-शस्त्र आदि
प्राथमिक स्रोतों के अंतर्गत विद्वानों द्वारा लिखित ग्रंथ सर्वेक्षण रिपोर्ट, संस्मरण यात्रा वर्णन पत्र डायरी, ऐतिहासिक प्रलेख, सरकारी आँकड़े तथा रिकार्ड, अन्य अप्रकाशित रिकार्ड आदि सम्मिलित हैं।
इन सभी स्रोतों को मोटे तौर पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है,
(i) व्यक्तिगत प्रलेखीय स्रोत (ii) सार्वजनिक प्रलेखीय स्रोत
(iii) व्यक्तिगत प्रलेखीय स्रोत आत्मकथा डायरी, पत्र, संस्मरण आदि।
(iv) सार्वजनिक प्रलेखीय स्रोत रिकॉर्ड, प्रकाशित आंकड़े, पत्र-पत्रिकाओं की रिपोर्ट आदि
प्राचीन भारतीय इतिहास के प्राथमिक स्रोत प्राचीन भारतीय इतिहास के प्राथमिक स्रोतों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है
1) साहित्यिक स्रोत
2) पुरातात्विक स्रोत एवं
3) विदेशी यात्रियों के विवरण
1. साहित्यिक स्रोत प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों को पुनः दो भागों में बाँटा गया है
(i) धार्मिक साहित्य धार्मिक साहित्य के अंतर्गत ब्राह्मण साहित्य (वेद, पुराण, आरण्यक ग्रंथ), बौद्ध साहित्य, जैन साहित्य एवं महाकाव्य आदि आते है
(ii) धर्मेत्तर (लौकिक) साहित्य धार्मिक साहित्य के अतिरिक्त धर्मेत्तर साहित्य भी प्राचीन भारतीय इतिहास पर समुचित प्रकाश डालता है। लौकिक साहित्य के अंतर्गत ऐतिहासिक एवं अर्द्ध ऐतिहासिक ग्रंथों तथा जीवनियों को लिया जा सकता है। उदाहरण के लिए कौटिल्य कृत अर्थशास्त्र, कल्हण की राजतरंगिणी, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस, कालिदास के ग्रंथ बाणभट्ट का हर्षचरित जयानक का पृथ्वीराज-विजय महाकाव्य आदि
2. पुरातात्विक स्रोत प्राचीन भारतीय इतिहास से संबंधित किसी भी विषय के शोधकार्य में पुरातात्विक स्रोतों कर
महत्वपूर्ण स्थान है। इतिहास की सर्वश्रेष्ठ कसौटी परंपरा नहीं पुरातत्व है। जिस ऐतिहासिक तथ्य को पुरातत्व का समर्थन नहीं उसकी नींव बालू पर मानी जाती है। पुरातत्व वह विज्ञान है, जिसके माध्यम से पृथ्वी के गर्भ में छिपी हुई सामग्रियों की खुदाई कर प्राचीनकाल के लोगों के भौतिक जीवन का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। प्राचीन भारतीय इतिहास के वैज्ञानिक एवं क्रमबद्ध अध्ययन में पुरातात्विक स्रोतों से अत्यंत मदद मिलती है। साहित्यिक स्रोतों की तुलना में पुरातात्विक स्रोत अधिक प्रामाणिक होते हैं।
पुरातात्विक स्रोतों के अंतर्गत विभिन्न अभिलेख, उन पर उत्कीर्ण प्रशस्तियाँ, मुद्राएँ स्मारक, मूर्तिकला, चित्रकला शैलचित्र एवं ताम्रपत्र आदि आते हैं। इतिहास लेखन में शिलालेखों का कितना महत्व है इसका अंदाज इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दामोदर रामकृष्ण भण्डारकर ने मात्र अभिलेखों के आधार पर मौर्य सम्राट अशोक का इतिहास लिखा है। 3. विदेशी यात्रियों के विवरण
प्राचीन काल में कई विदेशी यात्री भारत आए। उन्होंने भारत में जो भी देखा, समझा उसे अपने यात्रा वृत्तातों में लेखबद्ध किया। अत: इन विदेशी यात्रियों के विवरणों से भी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है। मेगास्थनीज, फाहियान, हुआन सांगू इत्सिंग एवं मार्को पोलो आदि विदेशी यात्री प्राचीन काल में भारत यात्रा पर आए इनके द्वारा लिखे विवरण आज इतिहास लेखन के महत्वपूर्ण स्रोत माने जाते हैं।
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