प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतों का उपयोग - Use of primary and secondary sources of history

प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतों का उपयोग - Use of primary and secondary sources of history

प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतों का उपयोग - Use of primary and secondary sources of history

1. प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतों का उपयोग शोध कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।


2. इनके उपयोग से शोध कार्य को अधिक गुणवत्तापूर्ण बनाया जा सकता है।


3. स्रोतों का उपयोग शोधकार्य में होने से विषय वस्तु की प्रासंगिकता में वृद्धि होती है।


4. किसी भी विषय के अध्ययन या शोध कार्य में स्रोतों का उपयोग अहम रोल अदा करता है।


5. इतिहास लेखन में इन स्रोतों का उपयोग किया जाता है।


6. तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाओं की प्रामाणिकता के लिए ये स्रोत बहुत ही उपयोगी है।


7. इतिहास में नवीन तथ्यों की स्थापना हेतु इन स्रोतों को उपयोग में लाया जा सकता है।


४. तत्कालीन सामाजिक स्थिति, धर्म, कला आदि के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हेतु ये स्रोत (प्राथमिक) बहुत ही उपयोगी सिद्ध होते हैं।





प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोत किसी भी शोध विषय के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार इतिहास लेखन में प्राथमिक स्रोतों के साथ-साथ द्वितीय स्रोतों का भी विशेष महत्व है। ये खोत अध्ययन हेतु एवं शोध कार्य हेतु अत्यंत उपयोगी भूमिका अदा करते हैं। प्राथमिक स्रोतों के एकत्रीकरण में शोधकर्ता का व्यक्तिगत लगाव भी काफी अहम भूमिका अदा करता है। द्वितीयक स्रोत भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं जितने कि प्राथमिक स्रोता द्वितीयक स्रोत प्राथमिक स्रोतों को सत्यापित करते हैं इसलिए इनकी प्रासंगिकता बढ़ जाती है। द्वितीयक स्रोतों का महत्व प्राचीन, मध्यकालीन व आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अधिक है लेकिन इतिहास में वस्तुनिष्ठता तथा सत्य की जानकारी देने के लिए प्राथमिक स्रोतों पर ही जोर दिया जाता है तथा आधुनिक काल के इतिहास लेखन के लिए प्राथमिक स्रोत ही पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हो जाते हैं, जिससे प्राथमिक स्रोतो का ही अधिकाधिक उपयोग किया जाता है। प्राथमिक स्रोत इतिहास का कच्चा माल होते हैं, इसलिए इतिहासकार इतिहास लेखन में प्राथमिक स्रोतों का उपयोग बहुत ही सोच-समझकर तथा अन्य तत्कालीन स्रोतों से उसकी सत्यता की जाँच करने के पश्चात् ही करते हैं, क्योंकि जो शोध ग्रंथ वह प्राथमिक स्रोत के आधार पर लिखेगा, बाद में वह द्वितीयक स्रोत के रूप में उपयोग हो सकता है। इस प्रकार प्राथमिक एवं द्वितीयक सोत अत्यंत अहम एवं उपयोगी है।