प्रवासनः संकल्पना, अर्थ और प्रकार - Migration : Concept, Meaning and Types

प्रवासनः संकल्पना, अर्थ और प्रकार - Migration : Concept, Meaning and Types

प्रवासनः संकल्पना, अर्थ और प्रकार - Migration: Concept, Meaning and Types


प्रवासन एक सामाजिक प्रक्रिया है और यह प्रक्रिया उतनी ही पुरातन है जितनी कि स्वयं मानव सभ्यता सभी कालों में किसी-न-किसी रूप में हम प्रवासन की उपस्थिति को देख सकते हैं। मानव समाज के विकास और अन्य स्थानों में सभ्यता, संस्कृति आदि के विकास में लोगों द्वारा किया गया प्रवासन उल्लेखनीय भूमिका निभाता है। इसी प्रवासन ने एक संस्कृति को अन्य समाजों तक पहुँचने का काम ने किया है और साथ ही वहाँ की संस्कृति को अपने समाज से जोड़ने का भी। खानाबदोशी कालु शिकारी काल, पशुचारण काल आदि में मनुष्यों ने बहुत यात्राएं की हैं वे एक स्थान से दूसरे स्थान संचरण किया करते थे और यही कारण है की सभ्यता और संस्कृति का विकास संभव हो पाया। यह संचरण की संस्कृति आज भी भारत सहित एशिया, लेती अमेरिका और अफ्रीका देशों के चरागाही समुदायों में विद्यमान है। प्रवासन एक प्राकृतिक नियम है और सदैव से लोग दूसरे देशों को गमन करते रहे हैं, जीविकोपार्जन करते रहे हैं, बसते रहे हैं। पहली पीढ़ी प्रवासी ही होती है, संदियों या फिर पीढ़ियाँ बीत जाने के बाद वह देश अथवा स्थान पूरी तरह उनका हो जाता है।

दूसरे देश की नागरिकताप्राप्त होने के बाद भी उन्हें उनके मूल देश से ही पहचान मिलती है। यदि भारत की बात करें तो यहाँ कभी आर्य आए, फिर कुछ मुस्लिम सल्तनत आई, मुगल आए जो यहाँ के बाशिदे हो गए अंग्रेज आए जो बहुत वर्षों तक शासन कर वापस लौट गए। आस्ट्रेलिया, अमेरिका, न्यूजीलैंड की तो पूरी जनसंख्या ही यूरोपीय मूल की है। वहाँ के मूल निवासी रेड इंडियन और ऐखोरीजनल तो कभी भी मुख्य धारा में आ ही नहीं पाए, ना उन्हें मुख्यधारा में लाने का प्रयत्न किया गया। प्रवासी यूरोपीय समुदाय ने वहाँ की प्राकृतिक संपदा व संसाधनों का जहां तक संभव था इस्तेमाल किया और अपना देश बनाया, अपने मूल देशों से अलग हो गए।


जनसंख्या के किसी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर बसने की प्रक्रिया को प्रवासन कहा जाता है। इसमें लोगों द्वारा कुछ दूरी को तय करना और उनके निवास स्थान में बदलाव होना अनिवार्य शर्त होती है। सामान्य तौर पर जन्म दर अथवा मृत्यु दर से जनसंख्या का प्रवासन प्रभावित होता है। संयुक्तराष्ट्र संघ के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2005 में विश्व जनसंख्या का लगभग 3% अपने जन्म के मूल देश से दूसरे देश की ओर प्रवासित हुई है। कैसल और मिलर का मानना है कि आवागमन और संचार तकनीकी में क्रांतिकारी परिवर्तन के परिणामस्वरूप वर्तमान शताब्दी को निःसंदेह प्रवासन युग की संज्ञा दी जा सकती है। भारत में, 2001 की जनगणना के अनुसार देश में कुल आंतरिक विस्थापितों की संख्या 30.9 करोड़ से ज्यादा थी। NSSO के 2007-08 के आंकड़ों के अनुसार, कुल आबादी का लगभग 30 प्रतिशत अर्थात् 32.6 करोड़ जनसंख्या आंतरिक प्रवासी थी।

इसमें सबसे अधिक महिलाओं कीसंख्या (70 प्रतिशत से अधिक है। एक सामान्य धारणा है कि यह तबका सदैव से समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक आर्थिक और राजनीतिक जीवन से वंचित रहा है और इनके साथदोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। वर्ष 2011 की जनगणना से प्राप्त आकड़ों के अनुसार कुल आंतरिक विस्थापितों की संख्या 40 करोड़ तक पहुंच चुकी थी हालांकि इसके मापन की सैद्धांतिक कठिनाईयों के कारण इस आंतरिक विस्थापन के आकलन में उतार-चढ़ाव पाया गया है। इसके बावजूद यह अनुमान लगाया जा सकता है कि दस में प्रत्येक तीसरा भारतीय आंतरिक विस्थापन से जुड़ा हुआ है।


प्रवासन के प्रकार


प्रवासन को कई कारकों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है.



अभिप्रेरणा के आधार पर


1. आर्थिक प्रवासन


2. सामाजिक प्रवासन




काल के आधार पर


1. दीर्घकालीन प्रवासन


1. अंतरमहाद्वीपीय प्रवासन 




देश के आधार पर


2. अंतरराष्ट्रीय प्रवासन


3. अंतरप्रांतीय प्रवासन


4. स्थानीय प्रवासन


सामाजिक संगठन के आधार पर


1. व्यक्तिगत प्रवासन


2. पारिवारिक प्रवासन


3. सामुदायिक प्रवासन




दूरी के आधार पर


1. लंबी दूरीसे संबंधित प्रवासन


2. छोटी दूरी से संबंधितप्रवासन




दिशा के आधार पर


1. उत्प्रवास प्रवासन


2. अप्रवास प्रवासन