बौद्ध धर्म में समाज कार्य - Social Work in Buddhism

बौद्ध धर्म में समाज कार्य - Social Work in Buddhism

बौद्ध धर्म में समाज कार्य - Social Work in Buddhism

बौद्ध धर्म में सामाजिक क्रिया से आशय मानव जाति के हितार्थ किए जाने वाले अनेक प्रकार के कार्य है। इनमें दान, शिक्षण और प्रशिक्षण के साधारण व्यक्तिगत कर्मों से लेकर संगठित किस्म की सेवा, सहायक व्यवसायों के भीतर और बाहर 'सम्यक आजीविका सामुदायिक विकास के विभिन्न कार्य और एक बेहतर समाज के लिए काम करने संबंधी राजनीतिक गतिविधि तक आ जाती है। बुद्ध के उपदेशों अथवा दीर्घ निकाय में संकलित सूत्रों के प्रमाण से यह स्पष्ट है कि प्रारंभिक बौद्ध मतावलंबी बौद्ध मूल्यों के व्यक्तिगत निर्माण के प्रति अनुकूल सामाजिक स्थितियों के निर्माण के प्रति अत्यधिक चिंतित थे। बाद के समय में इसका एक असाधारण उदाहरण बौद्ध सम्राट अशोक (ई.पू.274 236) द्वारा स्थापित उल्लेखनीय कल्याणकारी राज्य है। बौद्ध धर्म भारत में सामाजिक अन्यायों, पतनकारी अधविश्वासी अनुष्ठानों, संस्कारों और यज्ञों के विरोध में एक आध्यात्मिक शक्ति के रूप में उभरा। इसने जाति व्यवस्था के अत्याचार की निंदा की और समस्त मनुष्यों की समानता की पक्षधरता की। इसने महिला को मुक्त कराया और उसे पूर्  आध्यात्मिक स्वतंत्रता दी।





बौद्ध धर्म एक विधिवत स्व-सहायता अभ्यास है जिसमें शिक्षक इससे अधिक और कुछ नहीं कर सकता कि वह मार्ग दिखाए और बौद्ध बंधुओं के सातएक लंबे और एकाकी प्रयास में समर्थन, उत्साह और प्रोत्साहन दे। वस्तुत: यह समाज कार्य की परिभाषा के अत्यंत निकट है। बौद्ध जन हमेशा ही अपने संबंधों में खुलेपन सहयोग सद्भाव और समानता की भावना रखने का प्रयास करते हैं। बौद्ध धर्म का पहला सूत्र है हत्या न करना। किंतु यहाँ यह स्पट कर देना होगा कि बौद्ध सूत्रया शील आदेश नहीं है वे अच्छे सकल्प है और स्वेच्छा से ही गई शुद्ध आकांक्षाएँ हैं। वैदिशानिर्देशक है। बौद्ध जन हमेशा ही हिंसक कर्म में प्रत्यक्ष रूप में लिप्त होने से और अपनी आजीविका इस ढंग से कमाने से दूर रहते हैं जिसमें प्रल्स अथवा अप्रत्यक्ष रूप में हिंसा करनी पड़े। भारत में अंग्रेजी राज और धार्मिक असहिष्णुता के विरुद्ध महात्मा गांधी का अहिंसक संघर्ष अमेरिका में रेव मर्टिन लूथर किंग का अश्वेत लोगों के नागरिक अधिकारों का आंदोलन आदि सर्वविदित हैं।






इन्होंने सत्ता के विरुद्ध शांतिपूर्ण अथवा अहिंसक जन प्रदर्शन को प्रस्थापित किया है। बौद्ध सामाजिक संपर्क केंद्र अच्छे समाज कार्य के उदाहरण हैं। ऐसे समुदायों केंद्रों द्वारा संपर्क और प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाते हैं वे कक्षाएँ और लघु पाठ्यक्रम और दीर्घ अवधि के प्रशिक्षण भी चलाते हैं, जिनमें प्रशिक्षु समुदाय के वास्तविक सदस्यबन जाते हैं। और यह उन बाहरी लोगोंके लिए समुदाय के "खुलेपन' के अर्थ में सच हो सकता है जो फिलहाल काम, कर्मकांड शिक्षण ध्यानसाधना में किसी न किसी तरह की भागीदार करके समुदाय के साथ अपना संवाद शुरू करना चाहते हैं।





इसके अतिरिक्त ये धर्मशाला चलाना एवं स्थानीय समुदाय के लोगों के लिए व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर की व्यापक समस्याओं के समाधान हेतु सूचना तथा परामर्श केंद्र स्थापित करना आदि कार्य भी करते हैं। पिछले कुछ दशकों में बौद्धों ने अपने धर्म की शिक्षाओं की पुनसमीक्षा की है और सामाजिक क्रिया का आधार तलाशने का प्रयास किया है। इसका उद्देश्य युद्ध नस्लवाद, शोषण, वाणिज्यीकरण और पर्यावरण के विनाश से निपटना था। व्यवहार में, बौद्ध धर्म दूसरों के कल्याण का ऐच्छिक प्रयास है। भारतीय संस्कृति में समाज कार्य के दर्शन की उत्पत्ति बौद्ध दर्शन में देखी जा सकती है। प्रारंभिक बौद्ध परंपरा में समाज कार्य एक मनो नैतिक अवधारणा के रूप में मिलता है, जिसकी शुरूआत आध्यात्मिक और भौतिक उपलब्धियों के संतुलन और सुखद मिश्रण के साथ समाज में लोगों पर पूर्ण सद्भाव के अवतरण के लिए की गई थी। समाज कार्य के सिद्धांत का सीधा संबंध सामाजिक व्यवस्था के विचार से है, जिसकी संकल्पना बुद्ध ने की थी।





बुद्ध ने एक ऐसे सामाजिक तानेबाने और व्यवस्था की संकल्पना की थी जहाँ विशुद्ध प्रेम और स्नेह की भूमि श्री जो विश्व मैत्री करुणा, आनंद और समचित्तता की लहरों से आदेशित था। भारत में अंग्रेजी राज और आजादी के बाद के वर्षों में बौद्ध धर्म ने बौद्धों और अन्य धर्मावलांबियों के कल्याणार्थ कल्याण के उपाय जारी रखने और अपनाने का भी प्रयास किया। ये धर्म केंद्र, ध्यान केंद्र, विपश्यना अंतरराष्ट्रीय अकादमी, युवा बौद्ध सोसाइटी आदि के रूप हैं। इनमें से अधिकांश संगठन मुफ्त होम्योधिक डिस्पेंसरी, गरीब तथा जरूरतमंद बच्चों के लिए स्कूल, ऐम्बुलेंस सेवा, आपदा प्रबंधन तथा आपातकालीन राहत विकलांग बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा छात्रवृति भोजनालय सेवा आदि की व्यवस्था करते हैं। वे जन स्वास्थ्य शिक्षा प्रशिक्षकों और स्वैच्छिक समन्वयकों को भी प्रशिक्षित करते हैं जो व्यक्तिगत स्वच्छता तथा जल स्वच्छता प्रक्रिया की बुनियादी बातों में स्थानीय महिलाओं को प्रशिक्षित करने के लिए समुदायआधारित कार्यशालाओं का नेटवर्क स्थापितकरते हैं।