महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रम के विभिन्न अंग - Various parts of Mahatma Gandhi's constructive program

महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रम के विभिन्न अंग - Various parts of Mahatma Gandhi's constructive program

महात्मा गांधी के अनुसार अंग्रेजों के साथ अहिंसक संघर्ष स्वराज्य की प्राप्ति के लिए था। जिसका तात्कालिक संदर्भ भारत की आजादी था लेकिन वहदतर सदर्भ सम्पूर्ण मानव जाति को हिसक सभ्यता के पाश से छुड़ाना ही अभिप्रेत रहा है। इस आजादी के बाद भारत के साथ आजादी से पूर्व के समय में गांधी जी एक रचनात्मक कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं। एक विचारक के रूप में गांधी जी का यह दृष्टिकोण में आलोचना की सही मर्यादा को प्रकट करता है कि यदि वे तात्कालिक सभ्यता का समाज व्यवस्था का विरोध करते हैं तो उसके साथ ही उसका विकल्प भी प्रस्तुत करते हैं। जैसा कि गांधी प्रस्तावना में लिखते भी है कि


"" निश्चित रूप से यह समझ लेना चाहिये कि रचनात्मक कार्यक्रम ही पूर्ण स्वराज्य या मुकम्मल आजादी को हासिल करने का सच्चा और अहिंसक रास्ता है, उसकी पूरी सिद्धि ही संपूर्ण स्वतंत्रता है।" गांधी अपने द्वारा प्रस्तुत रचनात्मक कार्यक्रम को अपने अहिंसा व सत्य के भावों के साथ जोडकर ही समाज के सम्मुख प्रकट करते हैं और कहते है कि. "सत्य और अहिंसा के जरिए संपूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति का मतलब है, जात-पात, वर्ण या धर्म के भेद से रहित राष्ट्र के प्रत्येक घटक की और उसमें भी उस के गरीब से गरीब व्यक्ति की स्वतंत्रता की सिद्धि" यहाँ यह स्पष्टतः प्रकट होता है कि गांधी जी की मूल भावना क्या है, मानव समाज के हाशिए पर निवास करने वाले व्यक्ति का उदय ही हमारी सच्ची स्वतंत्रता भी है और विजय भी साथ ही इसमें मानवता की विजय भी शामिल है।


गांधी ब्रिटिश साम्राज्य में अपने को हीन महसूस कर रही जनता के पुरुषार्थ को जागृत करने के भाव से भी अहिंसा के भाव को सम्मिलित कर रचनात्मक कार्यक्रम का ऐसा ढाँचा प्रस्तुत करते है जिसमें व्यक्ति का उचित व सही दिशा में विकास हो सके तथा वह मानवता के लिए एक सार्थक जीवन जी सके। गांधी जी के रचनात्मक कार्यक्रमों पर निम्नांकित रूप से विचार किया जा सकता है: 


1) कौमी एकता 


गांधी जी समाज में सभी धर्मों की एकता को आवश्यक समझते थे। गांधी जी का बल इस बात पर था कि यदि हम सभी अपने-अपने धमरे के मूल भावों का पालन ठीक ढंग से कर तो हम कौमी एकता आसानी से प्राप्त कर सकते है क्योंकि प्रत्येक धर्म प्रेम, सहयोग, दया, करुणा आदि के भाव को ही समाहित करे हुए है। सबसे प्रमुख बात गांधी जी कहते है हम मानवता के धर्म को न भूलें। हर दूसरे धर्म के आरे में जाने तथा व्यक्तियों से मेल जोल बढ़ाए। तत्कालीन समय में हिन्दू पानी मुस्लिम पानी की प्रथा गांधी जी को बहुत अखरती थी, वे इसे यथाशीघ्र समाप्त करना चाहते थे। अतः कांग्रेसियों से उनका आह्वान था कि उन्हें प्रत्येक व्यक्ति को अपने वास्तविक धर्म को बतलाने का कार्य करना चाहिए। कांग्रेसियों को स्वयं को समान के सम्मुख कौमी एकता का आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। गांधी जी मानते थे कि हम आज अगर अपनी आजादी से दूर है तो हमारी कौमी एकता के दृढ न होने का फायदा ब्रिटिश सरकार ने उठाया है। अतः हमें ने एकजुट होकर इस साम्राज्य के खिलाफ अहिंसा प्रतिरोध हेतु एकत्रित होना होगा।


2) अस्पृश्यता निवारण 


गांधी जी हिन्दू धर्म की प्रशंसा भी करते थे लेकिन इसकी बातों या प्रथाओं पर अविवेकपूर्ण दृष्टि से विश्वास नहीं करते थे जो बात या प्रथा गांधी जी की अहिंसा व मानवता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती थी उसे वह खारिज कर देते थे। अस्पृश्यता के बारे में उनका यहाँ विचार था, यह हिन्दू धर्म में एक विकृति है लेकिन समाज की सच्चाई है अतः गांधी जी का यह पुरजोर प्रयास रहा कि वे इस विकृति को दूर कर सके। स्वयं गांधी जी चाहते थे कि हिन्दू सवर्ण लोग स्वयं आगे होकर अपने धर्म की इस विद्रूपता को दूर करे। मानव होने के नाते हमें अस्पृश्य वर्ग की स्थिति में सुधार के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। स्वयं गांधी जी ने अपने आदर्श से समाज को इस अस्पृश्यता को समाप्त करने का संदेश दिया। गांधी तात्कालीन समाज के इस दाग को दूर करना एक अनिवार्यता मानते थे क्योंकि इसके नारे के बिना सच्चा स्वराज एक तबका कभी नहीं पा सकता है।


3) शराबबन्दी 


गांधी जी व्यसनमुक्त समाज की आवश्यकता पर देते थे। जो व्यसनी थे उनके लिए गांधी जी का विचार था उन्हें प्रेम द्वारा इससे मुक्त किया जाय। गांधी जी का विचार था कि मजदूरों के लिए विश्रांति गृह एवं आनंद-विनोद के केंद्र खोले जाएं, उनमें जागृति लाई जाए मनोरंजन हेतु वे खेल-तमाशों में शरीक हो सके, इसकी भी व्यवस्था की जानी यह काम मन को आकर्षित करने वाला और हृदय को संस्कारी बनाने वाला होगा।


4) खादी 


गांधी के लिए खादी का मतलब था- देश के सभी लोगों की आर्थिक स्वतंत्रता और समानता का प्रारंभ। खादी गांधी जी के लिए हिन्दुस्तान की समस्त जनता की एकता, आर्थिक स्वतंत्रता एवं समानता का प्रतीक थी। खादी के पीछे प्रमुख जीवन के लिए जरूरी चीजों की उत्पति एवं उनके बंटवारे का विकेंद्रीकरण थी। गांधी जी का यह पक्का विश्वास था कि यदि खादी के भाव को सभी गांवों में लागू कर दिया जाए तो यह भारत की आर्थिक समस्याओं के लिए रामबाण औषधि सिद्ध होगा। खादी की भावना के पीछे विकेन्द्रीकृत समाज आवस्था (जिसमें आर्थिक व राजनीतिक सत्ता, संसाधन, शक्ति समाहित है) का भाव था।


5) दूसरे ग्रामोद्योग : 


खादों के अतिरिक्त गांव में स्थानीय स्तर के कुटौर व लघुउद्योग को प्रोत्साहित करने के पीछे गांधी जी का मुख्य भाव स्वदेशी का था अर्थात् आवश्यकताओं की पूर्ति को हम लोग स्थानीय संसाधनों के उचित व सही उपयोग द्वारा करें खादी के साथ-साथ यह ग्रामोद्योग व्यक्ति में स्वावलम्बन आर्थिक स्वतंत्रता एवं आत्मनिर्भरता का विकास करेगा।


6) गाँवों की सफाई 


मन की सफाई के साथ गांधी जी बाहरी सफाई पर भी जोर देते है विशेषतः अनजाने में या अज्ञान के वशीभूत ग्रामीण जन सफाई पर ध्यान नहीं देते। अतः गांधी जी का विचार था कि प्रत्येक कांग्रेसी जो गांव में निवास करता है उसका दायित्व है कि वे समाज में सफाई को क्रियान्वित करे जो अनेक बीमारियों को उत्पन्न होने से रोकेगी।


7) नयी या बुनियादी तालीम 


गांधी जी के अनुसार कांग्रेसियों को सबसे ज्यादा दिलचस्पी इसी कार्यक्रम में थी क्योंकि ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा चलायी जा रही शिक्षा को वह उचित नहीं मानते थे क्योंकि वह पढ़ाई हमारी आवश्यकताओं के अनुसार नहीं थीं।


 नयी तालीम का उद्देश्य


शिक्षार्थी के तन और मन का विकास


शिक्षार्थी को अपने वतन के साथ जोड़ना


शिक्षार्थी को उसके एवं देश के भविष्य का गौरवपूर्ण चित्र दिखाना इस चित्र को साकार करने में स्कूल जाने के दिन से ही हाथ बटाने से है। तालीम का उद्देश्य गांव के बच्चों को सुधार संचार कर उन्हें गाव का आदर्श बाशिन्दा (नागरिक) बनाना था।


8) बड़ों की तालीम 


गांधी जी बढ़े व्यक्तियों (पुरुष- श्री) को भी शिक्षा देने के पक्षधर थे जो अनपढ़ थे। क्योंकि ज्ञान के अभाव में वह लोग यह नहीं जानते थे कि यह शासन उन पर कैसे हुकूमत कर रहा है और किस प्रकार देश पर बुरा असर डाल रहा है। वे यह भी नहीं जानते थे कि इस हुकूमत के पजे से कैसे छूटा जाए? अज्ञानता के प्रसार को गांधी हम भारत वासियों की ही कमजोरी मानते थे। अतः बड़ों की तालीम के संदर्भ में गांधी जी का अर्थ उन्हें जबानी तौर पर सौधी बातचीत के जरिए सच्ची राजनीतिक तालीम दी जाने से था। इसकी पूर्व तैयारी हेतु कमेटी मुकर्रर (स्थापित करने का प्रस्ताव भी करते हैं।


9) स्त्रिया : 


गांधी जी के अनुसार रचनात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से वियों को सामाजिक क्षेत्र में लाना चाहते थे और इसमें सफल भी हुए। गांधीजो स्वयं स्वीकार करते हैं कि सियों को इन कार्यक्रमों में प्रोत्साहित करने के लिए कांग्रेसियों को जो करना चाहिये में उतना प्रयास नहीं कर रहे थे। एक अधिक समाज में वह स्त्री व पुरुष की समानता पर बल देते हैं। उनका मानना था कि अहिंसा की नींव पर रचे गए जीवन की योजना में जितना और जैसा अधिकार पुरुष को अपने भविष्य की रचना का है उतना ही और वैसा ही अधिकार स्त्री को भी अपना भविष्य तय करने का है। वह कांग्रेसियों से आह्वान करते है कि वे स्त्रिया को उनकी पददलित हालातों से ऊपर उठकर समाज में उचित स्थान प्रदान करें, समाज में सियों को उनकी मौलिक स्थिति का पूरा बोध करावें। सियों को काम वासना की पूर्ति का साधन न माना जाए।


10) आरोग्य के नियमों की शिक्षा 


प्रत्येक को शरीर की हिफाजत करना एवं तंदुरुस्ती के नियमों को जानना चाहिए ताकि समाज व व्यक्ति दोना रोगों से बचे रहे गांधी कहते भी है कि साधारणत: स्वास्थ्य का पहला नियम यह है कि मन चंगा है तो शरीर भी चंगा है। मन व शरीर में अटूट संबंध है। शुद्ध विचार, शुद्ध आचार-व्यवहार, व्यायाम, शारीरिक स्वच्छता, संतुलित भोजन, संतुलित विचार, शुद्ध आहार इत्यादि का ध्यान आवश्यक रखना चाहिए तथा यथासंभव इनके नियमों का पालन करना चाहिए।


11) प्रांतीय भाषाएं 


गांधी जो यद्यपि राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी को मान्यता देते है लेकिन उनका विचार था कि प्रांतीय स्थानीय भाषाओं को सीखना व उनका प्रचार भी आवश्यक है। इससे हमें यह लाभ होगा कि हम अपने विचारों को कठिन भाषा में व्यक्त न करके ग्रामीणों को उनकी भाषा में ही बतलावे जो उनके समाज विचारों में रची-बसी है। स्थानीय भाषा के प्रयोग से ग्रामीण जन विचारों को अधिक स्पष्ट रूप से समझकर अपना सकेंगे।


12) राष्ट्रभाषा 


अखिल भारतीय स्तर पर संवाद को स्थापित करने हेतु गांधी जी स्वयं हिन्दी को आवश्यक मानते थे। हिन्दी के साथ अन्य भाषाओं को जानना लिखना व बोलने का प्रयास इसके लिए गांधीजी बहुत चल देते थे। हिन्दुस्तानियों के मध्य संवाद का सेतु अंग्रेजी होने की आदत को गांधी जी अच्छा नहीं मानते। अंग्रेजी के मोह पाश से मुक्त होने की अपील भी करते हैं।


13) आर्थिक समानता 


गांधी जी पूर्व में ही खादाँ के उद्देश्य में इस आर्थिक समानता के भाव को ही व्यक्त करते हैं। वह आर्थिक समानता के लिए काम करने का अर्थ पूँजा और मजदूरी के बीच झगड़ों को हमेशा के लिए मिटा देने से बताते हैं। आर्थिक असमानता जिस समाज में व्याप्त रहेगी, तब तक अहिंसा की बुनियाद पर चलने वाली राजव्यवस्था कायम नहीं हो सकती। इस आर्थिक असमानता को समाप्त करने हेतु गांधी जी किसी हिंसक क्रांति का पक्ष नहीं लेते है वरन धनवान व्यक्तियों के हृदय परिवर्तन पर बल देते हैं और कहते हैं कि हम लोगों को अहिसंक प्रयासों द्वारा ही आर्थिक समानता प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। धनवानों को जब यह अहसास होगा कि उनकी आवश्यकता के अधिक धन उनके पास समाज की धरोहर है तो स्वयं वह उस संपत्ति को समाज के हाशिये पर रह रहे व्यक्तियों के कल्याण में लगायेगा। आगे यही सिद्धांत 'ट्रस्टीशिप' कहलाता है।


14) किसान


 गांधी जी का मानना था किसान ही कांग्रेस है अर्थात वही लोग यदि अहिंसा के मार्ग की दृढ़ पकड़ लें तो दुनिया की कोई ताकत इनका सामना नहीं कर सकेगी। गांधी जी ने स्वयं "चम्पारन सत्याग्रह" द्वारा यह स्पष्ट किया कि यदि किसान लोगों को सच्चा राजनीतिक प्रशिक्षण दिया जाए तो वह किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है। लेकिन साथ ही गांधी जी इन भोले-भाले किसानों का प्रयोग किसी गलत राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति हेतु करने के विरोधी थे। धीजी ने कांग्रेस को अपनी देखरेख में किसानों के लिए एक अलग विभाग खोलने के लिए कहा जो इनके सवालों को हल करने का काम करे


15) मजदूर 


मजदूरों के लिए अहमदाबाद के मजदूर संघ को गांधी जी आदर्श कहते है जो अहिंसा की नींव पर टिका हुआ है। यह संघ मजदूरों के स्वास्थ्य, उनके बच्चों की शिक्षा, छापाखाना, खादी भंडार, आवास आदि की उचित व्यवस्था करता है। हड़ताल की आवश्यकता होने पर अहिंसक धारणाओं का प्रयोग करता है। किसी विवाद के निपटारे में पंच नीति को स्वीकारते है। गांधी जी का विचार था कि 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' को अहमदाबाद मजदूर संघ के तरीकों को अपनाना चाहिए।


16) आदिवासी 


आदिवासियों की सेवा भी रचनात्मक कार्यक्रम का अंग है। यह महत्वपूर्ण कि आदिवासियों के दुःख-दर्द को देश की जनता अपने दुःख-दर्द की तरह ले और उनके उत्थान के लिए कार्य करें आदिवासियों की सेवा के संदर्भ में वह ठक्कर बापा एवं श्री बालासाहेब खेर के कार्यों को उल्लेख भी करते हैं जिन्होंने इस कार्य को सफलतापूर्वक किया है।


17) कोढ़ी 


परचुरे शास्त्री की सेवा के द्वारा गांधी जी ने स्वयं इस संबंध में यह संदेश दिया कि कोढ़ी को के सबसे ज्यादा आवश्यकता हमारे प्रेम सेवा-सुश्रूषा की है, हमारे तिरस्कार की नहीं। कोढ़ी को त्यागना नहीं उसका वरण करना चाहिए। इस संदर्भ में वह ईसाई मिशनरियों के कार्यों की प्रशंसा करते हैं। वर्धा में कोढ़ियों के उपचार के लिए काम कर रहे श्री मनोहर दीवान और विनोबा भावे का उल्लेख करते हैं।


18) विद्यार्थी 


अध्यापकों छात्रों ने गांधी जी के अह्वान पर स्कूलों कॉलेजों में जाना छोड़ दिया और स्वयं को राष्ट्र सेवा में प्रस्तुत कर दिया यह प्रशंसनीय बात थी। गांधी जी का मानना था कि पाश्चात्य शिक्षा विद्यार्थियों को मात्र 'क्लर्क' बनाने के लिए है। गांधी जी विद्यार्थियों को समाज के निर्माण में सहयोग के हेतु आमंत्रित करते हैं लेकिन नियमावली के साथ उनके नियम हैं।


1. विद्यार्थियों को दलबंदी राजनीति में कभी शामिल न होना चाहिए


2 उन्हें राजनीतिक हड़ताल न करनी चाहिए


3. सब विद्यार्थियों को सेवा की खातिर शास्त्रीय तरीके से खादी कातना चाहिए। 


4. अपने पहनने ओढ़ने के लिए वे हमेशा खादी का ही उपयोग करें, और गांवों में बनी चीजों के बदले परदेश की या यंत्रों की बनी वैसी चीजों को कमीन बरती


5. वंदे मातरम गाने राष्ट्रीय झंडा फहराने के मामले में दूसरों पर जबर्दस्ती न करें। 


6. तिरंगे झंडे के संदेश को अपने जीवन में उतार कर दिल में साम्प्रदायिकता या अस्पृश्यता को घुसने न द। दूसरे धर्म वाले विद्यार्थियों और हरिजनों को अपने भाई समझ कर उनके साथ सच्ची दोस्ता कायम करें।


7. अपने दुखी ददाँ पड़ोसियों की सहायता के लिए वे तुरन्त दौड़ आए आस-पास के गांवों में सफाई का काम करें और गांवों के बड़ी उमर के स्त्री-पुरुषों व व बच्चों को पढ़ाने


8. हिन्दी व उर्दू यथाशक्ति लिखना, बोलना साखा


9. 30 नये विवाणुक रखनता के बीच प्रकाशितु अनेम खुल्ला अपने कार्यों को अंजाम दी


11. विद्यार्थिनी बहनों के प्रति व्यवहार बिलकुल शुद्ध एवं सभ्यतापूर्ण रखें। इसके अतिरिक्त समय पाबंदी पर भी बल देते हैं। गांधी जी विद्यार्थियों को साथ में सलाह देते


हैं कि वे पढ़ाई के साथ भी इन कार्यों में अपना योगदान दे सकते है। महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तिका में रचनात्मक कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए सविनय अवज्ञा को बहुत महत्वपूर्ण माना है। अपनी रचना में वह सविनय अवज्ञा के तीन काम बतलाते है: 


1. किसी स्थानीय अन्याय या शिकायत को दूर करने के लिए इसका सफल प्रयोग किया जा सकता है।


2. किसी खास अन्याय, शिकायत या बुराई के खिलाफ उसे मिटाने के मसले पर कोई खास असर डालने का इरादा न रखते हुए स्थानीय जनता को उस अन्याय या शिकायत या बुराई का मान कराने या उसके दिल पर असर डालने के लिए कुरबानी या आत्म-बलिदान की भावना से भी सविनय कानून-भंग किया जा सकता है।


3. रचनात्मक कार्य में जनता का पूरा सहयोग न मिलने पर इसके बदले में सन् 1941 में छिड़े सत्याग्रह की तरह सविनय कानून भंग की लड़ाई छेड़ी जा सकती है।


गांधी जी स्पष्ट कहते है कि पूर्ण स्वराज की सिद्धी के लिए सचिनय कानून-भंग की लड़ाई रचनात्मक कार्यक्रम में करोड़ों देशवासियों के सहयोग के अभाव में, निरी बकवास बन जाती है और वह निकम्मी ही नहीं, नुकसान देह भी है।


गांधी जी इस पुस्तक का उद्देश्य रचनात्मक कार्यक्रमों के बारे में लोगों की समझ को विकसित करना बताते है। रचनात्मक कार्यक्रम का अमल किस तरह किया जा सकता है या किया जाना चाहिए यहाँ बताना इसका अभिप्रेत रहा है। इन रचनात्मक कार्यक्रमों का गांधीजी के लिए जो महत्व है उन्हें निम्न शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है

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"अगर रचनात्मक कार्यक्रम के बिना में सविनय कानून भंग की लड़ाई लड़ने लगू तो वह लकवे से बेकार बने हुए हाथ से चम्मच उठाने जैसी बात होगी।" आगे चलकर गौ सेवा के रूप में पशु-सुधार (जिसमें गाय के अतिरिक्त अन्य पशु-पक्षी शामिल है) तथा के प्राकृतिक चिकित्सा को भी इन रचनात्मक कार्यक्रमों के साथ जोड़ते हैं।