सैनिक और औद्योगिक समाज में अंतर - difference between military and industrial society
सैनिक और औद्योगिक समाज में अंतर - difference between military and industrial society
हरबर्ट स्पेंसर ने समाज के विभाजन में सैनिक समाज और औद्योगिक समाज के दो रूपों की कल्पना की है। इन दोनों प्रकार के समाजों में कोई अंतिम भेद नहीं है। पर कई समाजों में अंतर दिखाई देता है। सैनिक समाज में क्रियात्मक शक्तियों को सैनिकों के लिए सुख-सुविधा को जुटाने के उद्देश्य नियोजित किया जाता है। कुछ समाज में सैनिक क्रियाकलापों का बोलबाला रहता है। जबकि औद्योगिक समाज में सैनिक शक्ति का प्रयोग केवल आंतरिक शांति व व्यवस्था को बनाए रखने के लिए तथा बाहरी आक्रमणों से रक्षा करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा सैनिक समाज में सेना अध्यक्ष राज का शासक होता है। इसलिए अनुशासन की व्यवस्था उसी के द्वारा लागू की जाती है।
व्यक्तिगत संपत्ति उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत आधार को मान्यता नहीं दी जाती। जनता को पूर्णता स्वतंत्रता भी प्राप्त नहीं होती। इनके शासन काल में धर्म की भी एक सैनिक प्रवृत्ति होती है। इस आधार पर व्यक्ति को स्वयं के लिए नहीं बल्कि समाज के लिए जीवित रहना पड़ता है। जबकि औद्योगिक समाज में व्यवस्था तथा न्याय के अंतर्गत व्यक्तिगत स्वतंत्रता को पूर्णता मान्यता दी जाती है। राजनीतिक सत्ता का विकेंद्रीकरण होता है और जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के द्वारा सरकार का गठन किया जाता है।
धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त होती है तथा व्यापार एवं उद्योग के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा पाई जाती है। राज्य का नियंत्रण केवल निषेधात्मक रूप में होता है और इसका उद्देश्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता में अनावश्यक हस्तक्षेप को दूर करना होता है। ऐसा समाज परिवर्तन के लिए अधिक अनुकूल होता है और इसी के माध्यम से विकास का पूरा अवसर प्राप्त होता है।
नैतिक समाज
हरबर्ट स्पेंसर ने समाज के उद्विकास की एक तीसरी व्यवस्था का भी उल्लेख किया है। जिसे नैतिक राज्य कहा जाता है। इसमें नैतिकता की चरम सीमा तक वृद्धि होती है तथा भौतिक वृद्धि के साथ ही मानवीय नैतिकता में वृद्धि होती है। इस अवस्था में स्वतंत्रता को बनाए रखने में राज्य की आवश्यकता नहीं रहेगी तथा यह अपने आप समाप्त हो जाएगा। स्पेंसर के अनुसार राज्य एक आवश्यक बुराई है। क्योंकि मनुष्य स्वभाव से स्वार्थी है। वह सब कुछ बटोर लेना चाहता है। दूसरे को खा जाना चाहता है। इसलिए सामान स्वतंत्रता को कायम रखने के लिए राज्य की आवश्यकता है। जब सब को भरपूर अधिकार मिलेंगे उद्योगिक विकास के कारण किसी तरह की कमी नहीं होगी तब सामान स्वतंत्रता को कायम रखने के लिए बाहरी शक्ति की आवश्यकता नहीं होगी और राजा राज्य और शासन सब अपने आप समाप्त हो जाएंगे।
स्पेंसर ने श्रम विभाजन की मात्रा राजनीतिक संगठन में जटिलता, धार्मिक परंपराओं के विकास तथा सामाजिक स्तरीकरण के आधार पर अन्य समाजों को चार श्रेणियों में विभाजित किया है
1. सरल समाज
2. मिश्रित समाज
3. दोहरे मिश्रित समाज
4. तिहरे मिश्रित समाज
स्पेंसर ने प्रथम तीन श्रेणियों में आदिम समाजों का समावेश किया है। यद्यपि इन तीनों में आकार श्रम विभाजन के विकास धर्म तथा परंपराओं का स्थान राजनीतिक संगठन की जटिलता तथा सामाजिक स्तरीकरण के आधार की दृष्टि से अंतर करने का प्रयास करते हैं, फिर भी स्पेंसर इसमें पूर्ण सफल नहीं हो पाए हैं। इस वर्गीकरण पर उद्विकासीय दृष्टिकोण का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। इस श्रेणी में स्पेंसर ने मैक्सिको, सीरियाई साम्राज्य, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली और रूस जैसे समाजों को सम्मिलित किया है।
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