वर्ग के अर्थ एवं परिभाषा -Meaning and definitions of class

 वर्ग के अर्थ एवं परिभाषा - Meaning and definitions of class


वर्ग संभवत सभी समाजों में पाये जाते हैं, शायद ही विश्व का कोई समाज हो जहां वर्ग व्यवस्था नहीं पायी जाती है। वर्ग आधुनिक समाजों में स्तरीकरण का प्रमुख आधार है। इस संबंध में कार्ल मार्क्स का कथन है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, परंतु अधिक स्पष्ट तौर से मुख्यतः वह एक ‘वर्ग प्राणी' है। आदि काल से ही समाज का स्तरीकरण बालक, युवा, प्रौढ़, वृद्ध, स्त्री-पुरुष साक्षर निरक्षर, अमीर-गरीब, शिक्षक, विद्यार्थी, व्यापारी, मजदूर आदि वर्गों के रूप में किया जाता रहा है।


वर्ग ऐसे व्यक्तियों का समूह है जिनकी सामाजिक प्रस्थिति समान होती हैं। हमारे समाज में अनेक प्रकार की सामाजिक प्रस्थितियाँ पायी जाती हैं, ठीक उसी प्रकार से हमार समाज कई प्रकार के वर्गों से भरा हुआ है। जब जन्म के अलावा किसी आधार पर व्यक्तियों अथवा समूहों को विभिन्न भागों में वर्गीकृत किया जाता है तो इस प्रकार के प्रत्येक समूह को सामाजिक वर्ग की संज्ञा प्रदान की जाती है।


• बाटोमोर के शब्दों में,


"वर्ग तथ्यतः समूह होते हैं। वे अपेक्षाकृत बंद नहीं होते हैं, उन्मुक्त होते हैं। निर्विवाद रूप से उनका आधार आर्थिक हैं, लेकिन वे आर्थिक समूहों से अधिक हैं। वे औद्योगिक समाजों के लक्षणिक समूह होते हैं। "


वस्तुतः जन्म के आधार के अलावा यदि किसी भी आधार पर समूहों का वर्गिकरण किया जाता है तो वह वर्गिकरण वर्ग के आधार पर ही रहता है। हालांकि यह मतभेद का विषय है कि वर्ग के निर्धारण का आधार आर्थिक है अथवा सामाजिक-सांस्कृतिक बाटोमोर द्वारा प्रस्तुत किए गई इस व्याख्या के इतर अन्य विद्वानों ने वर्ग की सामाजिक व्याख्या प्रस्तुत की है 


• आगवर्न के अनुसार,


"सामाजिक वर्ग एक ऐसे व्यक्तियों का समूह है जिनकी सामाजिक प्रस्थिति एक दिये हुये समाज के अनुरूप समान होती है।"


• मैकाइवर तथा पेज लिखते हैं कि


"एक सामाजिक वर्ग समुदाय का वह भाग है जो सामाजिक स्थिति के आधार पर दूसरों से अलग किया जा सकता है। "


• जिसबर्ट का मत है कि


"एक सामाजिक वर्ग व्यक्तियों का समूह अथवा श्रेणी होता है, जिसकी समाज में एक विशेष स्थिति रहती है। यह विशिष्ट स्थिति ही अन्य समूहों के साथ उसके सम्बन्धों का निर्धारण करती है। "


ये परिभाषाएँ वर्ग को सामाजिक आधार से व्याख्यायित करने का प्रयास करती हैं तथा समान सामाजिक प्रस्थिति को ही वर्ग के निर्धारण में उपयोगी मानती हैं। अध्यापक, व्यापारी, नौकरशाह, किसान आदि समूहों की सामाजिक प्रस्थिति भिन्न-भिन्न होती है इसीलिए ये अलग-अलग प्रकार के वर्गों में तब्दील हो गए। इसके अलावा कुछ अन्य विद्वानों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए हैं जो वर्ग निर्धारण में आर्थिक आधारों को प्रमुखता देते हैं


• कार्ल मार्क्स बताते हैं कि जीविकोपार्जन के अनेक साधनों के कारण मनुष्यों का समूह अनेक वर्गों में बंट जाता है। उनके अनुसार एक सामाजिक वर्ग को उसके उत्पादन के साधनों तथा संपत्ति के वितरण के साथ होने वाले संबंधों के संदर्भ में ही विश्लेषित किया जा सकता है।


• मैक्स वेबर के अनुसार,


‘"एक समूह को वर्ग के रूप में तभी परिभाषित किया जा सकता है जब उस समूह के लोगों को जीवन के कुछ अवसर समान रूप से प्राप्त हों, यहाँ तक कि यह समूह वस्तुओं के अधिकार या आमदनी कि सुविधाओं से संबन्धित आर्थिक हितों द्वारा पूर्णतया निर्धारित तथा वस्तुओं या श्रमिक बाज़ारों की अवस्थाओं द्वारा निर्धारित हो। "


• गुल्डनर के शब्दों में,


"एक सामाजिक वर्ग उन व्यक्तियों अथवा परिवारों का योग है जिनकी आर्थिक स्थिति लगभग एक जैसी होती है। "


सामाजिक तथा आर्थिक आधारों के अलावा वर्ग की व्याख्या सांस्कृतिक आधारों पर भी की गई है। इस प्रकार की व्याख्या में प्रमुख विद्वान गिंसबर्ग, लेपियर, ओल्सन आदि हैं 


● गिंसबर्ग के अनुसार,


"एक सामाजिक वर्ग आइस एव्यक्तियों का समूह होता है जो व्यवसाय, धन, शिक्षा, विचार, व्यवहार, भावना, मनोवृत्ति, जीवनशैली आदि में एक-दूसरे के समान होते हैं अथवा इनमें से कुछ आधारों पर एक-दूसरे से समानता का अनुभव करते हैं तथा स्वयं को एक समूह के रूप में स्वीकार करते हैं।"