निदानात्मक अनुसंधान - Diagnostic research
निदानात्मक अनुसंधान - Diagnostic research
निदानात्मक अनुसंधान का तात्पर्य समस्याओं के लिए उत्तरदाई कारकों की तलाश करने और उनके वैज्ञानिक विश्लेषण से है। इसमें समस्याओं के कारणों की पहचान करने के लिए चरों का परीक्षण किया जाता है। उदाहरणस्वरूप, क्यों कम आयु समूह के व्यक्तियों का वैवाहिक जीवन अधिक आयु समूह के व्यक्तियों की तुलना में अव्यवस्थित दिखाई पड़ता है?" यदि इस समस्या हेतु उत्तरदाई कारकों की तलाश करनी हो तो इस दशा में निदानात्मक अनुसंधान का प्रयोग किया जाएगा।
और साथ ही इस अनुसंधान की सहायता से एक वैज्ञानिक विश्लेषण भी प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाएगा। अर्थात् यह कहा जा सकता है कि निदानात्मक अनुसंधान का फोकस किसी समस्या की प्रकृति और उसके लिए जवाबदेह कारकों के बारे में जानकारी प्राप्त करने पर है। इसमें कुछ बातों का ध्यान रखा जाता है, जैसे क्या इस अध्ययन में कुछ चर आपस में संबंधित हैं? अनुसंधानकर्ता इस अध्ययन में क्या मापन करना चाहता है? मापन हेतु कौन सी प्रविधियाँ व तकनीकों का प्रयोग किया जाएगा? अध्ययन हेतु निदर्श में किन इकाइयों को शामिल किया जाएगा? तथ्यों के संकलन हेतु तथा चरों के परीक्षण हेतु किन उपयुक्त वैज्ञानिक तकनीकों की सहायता ली जाएगी?
आदि प्रकार मुद्दों पर सावधानी बरतते हुये ही निदानात्मक अनुसंधान की रूपरेखा तैयार की जाती है।
निदानात्मक अनुसंधान में प्रयोग की जाने वाली प्रक्रियाओं की परियोजना को तैयार करने में अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि इस प्रकार के अनुसंधानों का उद्देश्य समस्या का निदान प्रस्तुत करना होता है। इसके अलावा इन अनुसंधानों में पक्षपात की कोई संभावना नहीं रहनी चाहिए तथा पक्षपात से सुरक्षा हेतु भी अनुसंधान की रूपरेखा में कुछ प्रावधानों की व्यवस्था होनी चाहिए।
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