समूह के प्रकार - group type

समूह के प्रकार - group type


समूह कई प्रकार के होते हैं समाजशास्त्रीय एवं समाज मनोवैज्ञानिकों ने अलग-अलग कसौटीओं के आधार पर मानव समूह को विभिन्न भागों में बांटा है। इनमें से समूह के कुछ प्रमुख प्रकार की व्याख्या हम यहां अलग-अलग अनुच्छेद में करेंगे। 


1. प्राथमिक समूह तथा द्वितीयक समूह


प्राथमिक समूह तथा द्वितीयक समूह का वर्गीकरण कूली 1909 ने व्यक्तिगत आवेस्टन के आधार पर किया था। प्राथमिक समूह वैसे समूह को कहा जाता है जिसके सदस्यों के बीच आमने-सामने या प्रत्यक्ष तथा घनिष्ठ संबंध होता है। यही कारण है कि प्राथमिक समूह को आमने-सामने का समूह भी कहा जाता है ऐसे समूहों के सदस्यों में एक दूसरे के प्रति सहयोग सहानुभूति प्यार आदि की भावना गहरी होती है। परिवार तथा खेलने का समूह प्राथमिक समूह का सबसे अच्छा उदाहरण है। कुली के शब्दों में ही प्राथमिक समूह इस प्रकार पपरिभाषित किया गया है." प्राथमिक समूहों से आशय उन समूहों से है जिसके सदस्यों में आमने-सामने के घनिष्ठ संबंध तथा सहयोग की विशेषता पाई जाती है ऐसे समूह कई अर्थों में प्राथमिक होते हैं लेकिन मुख्य तो इस अर्थ में प्राथमिक होते हैं कि वह व्यक्ति के सामाजिक स्वभाव एवं आदर्शों का निर्माण मौलिक रूप से करते हैं।"


प्राथमिक समूह को और भी अधिक स्पष्ट करने के लिए इसके वाह्य विशेषताओं तथा आंतरिक विशेषताओं पर ध्यान देना अनिवार्य है। प्राथमिक समूह की विशेषताओं से तात्पर्य उन व्यवहार परक विशेषताओं से होता है जो उसके सदस्यों द्वारा किए गए अंतर क्रियाओं में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।


इस समूह के प्रमुख आंतरिक विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है-


(1) सदस्यों की कम संख्या प्राथमिक समूह में सदस्यों की संख्या कम होती है क्योंकि इसका आकार प्रायः छोटा होता है। सामान्यतः इस तरह के समूह में सदस्यों की संख्या कम से कम दो जैसे पति-पत्नी का ) समूह तथा कभी-कभी 10 से 12 तक की होती है जैसा कि संयुक्त परिवार में सदस्यों की संख्या होती है। 


(ii) आमने सामने का संबंध प्राथमिक समूह में सदस्यों के बीच आमने-सामने का संबंध होता है इस तरह का संबंध रहने पर लोग एक दूसरे को व्यक्तिगत रूप से जानते और समझते हैं।


(iii) सदस्यों के बीच घनिष्ठता प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच सिर्फ आमने-सामने काय संबंध नहीं होता है बल्कि उसमें घनिष्ठता भी होती है। एक दूसरे के बीच इतना अधिक शारीरिक और मानसिक घनिष्ठ संबंध होता है कि इन्हें दूसरे के लिए अपनी जिंदगी की भी कुर्बानी करनी पड़े तो ऐसा करने में हिचकिचाहट नहीं के बराबर होती है


(iv) विशिष्ट प्रकार के संबंधों का अभाव- प्राथमिक समूह के सदस्यों का सामान्य उद्देश्य होता है जिसके कारण वे आपस में प्रायः मिलते जुलते हैं और किसी समस्या का समाधान करते हैं।


(v) अपेक्षाकृत अधिक स्थायित्व का गुण चुकी प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच आमने-सामने का संबंध घनिष्ठ होता है। अतः इसका अस्तित्व अन्य प्रकार के समूह की अपेक्षा अधिक स्थाई होता है। इस स्थायित्व के गुण के कारण प्राथमिक समूह किसी भी विपत्ति में जल्दी बिखरता नहीं है। 


इसकी प्रमुख आंतरिक विशेषताएं निम्नलिखित है


(i)सामान्य इच्छाएं एवं अभिरुचि प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच कुछ सामान इच्छाएं होती है तथा उनकी अभिरुचि भी करीब करीब एक ही होती है।


(ii) संबंधों में सहजता- प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच जो घनिष्ठ संबंध पाया जाता है वह बिना किसी शर्त एवं बाहरी दबाव के स्वतः विकसित होता है।


(iii) पर्सनल संबंध अधिक समूह के सदस्यों के बीच का संबंध व्यक्तिक होता है। प्रत्येक सदस्य में एक दूसरे के प्रति हम लोगों की भावना होती है।


(iv) सहयोग की तीव्र भावना प्राथमिक समूह के बीच चुकी घनिष्ठ संबंध होता है. अतः उन्हें एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना तीव्र होती है। 


(v) एकता तथा सुरक्षा की भावना प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच एकता की भावना तीव्र होती है, एकता की भावना उनमें एक दूसरे को सुरक्षा देने की प्रेरणा प्रदान करती है।