रेखीय परिवर्तन का सिद्धान्त - principle of linear transformation

रेखीय परिवर्तन का सिद्धान्त - principle of linear transformation


यह सामाजिक परिवर्तन का वह स्वरूप है; जिसमें परिवर्तन की दिशा सदैव ऊपर की ओर होती है। परिवर्तन एक सिलसिले या क्रम से विकास की ओर एक ही दिशा में निरन्तर होता जाता है। जो आविष्कार आज हुआ है उससे आगे ही आविष्कार होगा, जैसे रेडियों के बाद टेलीविजन का अविष्कार हुआ उसे और विकसित करके टेलीफोन से बात करते समय दूसरी ओर से बात करने वाले को देखा भी जा सकेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि परिवर्तन के इस प्रतिमान में परिवर्तन रेखीय होता है और उसे हम एक रेखा से प्रदर्शित कर सकते हैं। इस परिवर्तन की गति तीव्र या मंद हो सकती है। आदिम समाज में परिवर्तन धीमी गति से था जबकि आधुनिक समाजों में गति तीव्र है, परन्तु दोनों समाजों में परिवर्तन एक रेखा में ही अर्थात आगे बढ़ता हुआ है। सामाजिक परिवर्तन के रेखाीय सिद्धान्त को स्पष्ट रूप से समझने के लिए अगर इसका अन्तर चक्रीय सिद्धान्त से किया जाए तो इसकी प्रकृति को सरलतापूर्वक समझा जा सकता है। दोनों में अन्तर निम्न प्रकार से किया जा सकता है -


• रेखीय सिद्धान्त इस विचार पर आधारित है कि सामाजिक परिवर्तन की प्रवृत्ति एक निश्चित दिशा की ओर बढ़ने की होती है, इसके विपरीत चक्रीय सिद्धान्त के अनुसार सामाजिक परिवर्तन सदैव उतार-चढ़ाव से युक्त होते हैं अर्थात प्रत्येक परिवर्तन सदैव नई दिशा उत्पन्न नहीं करता बल्कि इसके कारण समूह द्वारा कभी नई विशेषताओं और कभी पहले छोड़ी जा चुकी विशेषताओं को पुनः ग्रहण किया जा सकता है।


• रेखीय सिद्धान्त के अनुसार सामाजिक परिवर्तन की दिशा साधारणतया अपूर्णता से पूर्णता की ओर बढ़ने की होती है। चक्रीय सिद्धान्त में परिवर्तन के किसी ऐसे क्रम को स्पष्ट नहीं किया जा सकता. इसमें परिवर्तन पूर्णता से अपूर्णता अथवा अपूर्णता से पूर्णता किसी भी दिशा की ओर हो सकता है।


• रेखीय सिद्धान्त के अनुसार परिवर्तन की गति आरम्भ में धीमी होती है लेकिन एक निश्चित बिन्दु तक पहुँचने के बाद परिवर्तन बहुत स्पष्ट रूप से तथा तेजी से होने लगता है।

प्रौद्योगिक विचार से उत्पन्न परिवर्तन इस कथन की पुष्टि करते हैं। जबकि इसके विपरीत चक्रीय सिद्धान्त के अनुसार एक विशेष परिवर्तन को किसी निश्चित अवधि का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। परिवर्तन कभी जल्दी-जल्दी हो सकते हैं और कभी बहुत सामान्य गति से


• रेखीय सिद्धान्त की तुलना में चक्रीय सिद्धान्तों पर विकासवाद (Evolutionism) का प्रभाव बहुत कम है। तात्पर्य यह है कि रेखीय सिद्धान्त के अनुसार परिवर्तन की प्रवृत्ति एक ही दिशा में तथा सरलता से जटिलता की ओर बढ़ने की होती है। इसके विपरीत चक्रीय सिद्धान्त सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन में भेद करते हुए यह स्पष्ट करते हैं कि विकासवादी प्रक्रिया अधिक से अधिक सामाजिक परिवर्तन में ही देखने को मिलती है जबकि सांस्कृतिक जीवन और विशेष मूल्यों तथा लोकाचारों में होने वाला परिवर्तन उतार-चढ़ाव से युक्त रहता है।


• रेखीय सिद्धान्त सैद्धान्तिकता (indoctrination) पर अधिक बल देते हैं,

ऐतिहासिक साक्षियों पर नहीं। जब कि चक्रीय सिद्धान्त के द्वारा उतार-चढ़ाव से युक्त परिवर्तनों को ऐतिहासिक प्रमाणों के द्वारा स्पष्ट किया गया है इस प्रकार उनके प्रतिपादकों का दावा है कि उनके सिद्धान्त अनुभवसिद्ध हैं।


• रेखीय परिवर्तन व्यक्ति के जागरूक प्रयत्नों से संबंधित है। इतना अवश्य है कि रेखीय परिवर्तन एक विशेष भौतिक पर्यावरण से प्रभावित होते हैं लेकिन भौतिक पर्यावरण स्वयं मनुष्य के चेतन प्रयत्नों से निर्मित होता है। जबकि चक्रीय सिद्धान्त के अनुसार सामाजिक परिवर्तन एक बड़ी सीमा तक मनुष्य की इच्छा से स्वतंत्र है। इसका तात्पर्य यह है कि प्राकृतिक दशाओं, मानवीय आवश्यकताओं तथा प्रवृत्तियों (Attitudes) में होने वाले परिवर्तन के साथ सामाजिक संरचना स्वयं ही एक विशेष रूप ग्रहण करना आरम्भ कर देती है।


• रेखीय सिद्धान्त परिवर्तन के एक विशेष कारण पर ही बल देता है और यही कारण है

कि कुछ भौतिक दशाएँ सदैव अपने और समूह के बीच एक आदर्श सन्तुलन अथवा अभियोजनशीलता (Adjustment) स्थापित करने का प्रयत्न करती है। जबकि चक्रीय सिद्धान्त परिवर्तन का कोई विशेष कारण स्पष्ट नहीं करते बल्कि इनके अनुसार समाज में अधिकांश परिवर्तन इसलिए उत्पन्न होते हैं कि परिवर्तन का स्वाभाविक नियम है।


• रेखीय सिद्धान्त इस तथ्य पर बल देते हैं कि परिवर्तन का क्रम सभी समाजों पर समान रूप से लागू होता है। इसका कारण यह है कि एक स्थान के भौतिक अथवा प्रौद्योगिक पर्यावरण में उत्पन्न होने वाले परिवर्तन को शीघ्र ही दूसरे समाज द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है। बल्कि चक्रीय सिद्धान्त के अनुसार एक विशेष प्रकृति के परिवर्तन का रूप सर्वव्यापी नहीं होता; अर्थात विभिन्न समाजों और विभिन्न अवधियों में परिवर्तन की प्रक्रिया भिन्न भिन्न प्रकार से मानव समूहों को प्रभावित करती है।