बाल केन्द्रित शिक्षा की समस्याएँ - Problems of Child Centered Education
बाल केन्द्रित शिक्षा की समस्याएँ - Problems of Child Centered Education
1) संतुलित व्यक्तित्व का विकास करना (Development of Balanced Personality) - शिक्षा की मुख्य समस्या बालक में एक सन्तुलित व्यक्तित्वका विकास करना है सन्तुलित व्यक्तित्व वह है जिसमें बौद्धिकता, सबैग, नैतिकता और धार्मिकता भली प्रकार से समन्वित हो और जिसका कुशलता से उपयोग किया जा सके। घर और बाहर की परिस्थितियों में बालक का व्यक्तित्व के अनेक दोष ग्रहण कर लेना एक सामान्य बात है। यदि उसके माता-पिता की बच्चे के साथ अतःक्रिया एवं सम्प्रेषण अच्छा न हो तो उसके व्यक्तित्व में अनेक दोष आ जाते हैं। इस प्रकार की सैकड़ों सामाजिक और बहुत-सी शारीरिक परिस्थितियों के कारण बालक अपने साथियों से कतराने लगता है या अत्यधिक दिवास्वप्न का शिकार बन जाता है। बाल मनोविज्ञान बालक के व्यवस्थापन सम्बन्धी लक्षण को देख कर उसके मूल कारणों का निदान करता है और फिर उसके निराकरण के उपाय खोजता है।
2) प्रेरणा (Motivation) - व्यवस्थापन की बिभिन्न समस्याओं के मूल में बहुधा प्रेरणा की समस्यायें होती है। प्रेरणा के अभाव में प्रगति सदैब कम रहती है। उत्साह के बिना व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता। कहावत है कि आप घोड़े को पानी के पास ले जा सकते है परन्तु उसे पानी पिला नहीं सकते हैं। ऐसी प्रेरणा कैसे उत्पन्न हो, यह एक कठिन समस्या है। शिक्षा मनोबिज्ञान इस समस्या को सुलझाने का प्रयास करता है। देखा गया है कि कभी-कभी तो केवल प्रशंसा या निन्दा अथवा प्रतिद्वन्दविता उत्पन्न करने से ही सीखने की गति बीस से तीस प्रतिशत तक बढ़ जाती है। पाठ्यक्रम का चुनाव सीखने की प्रक्रिया में विभिन्न क्रियाओं का चुनाव आदि प्रेरणा से ही सम्बन्धित समस्यायें हैं।
3) समझदारी और अर्थ में वृद्धि (Increase in Understanding and Meaning) - प्रेरणा की समस्या के मूल में कभी-कभी समझदारी की कमी और उपस्थित समस्या के अर्थों के ज्ञान का अभाव भी होता है। इसलिए आजकल शिक्षण में ऐसी सामग्री का प्रयोग किया जाता है,
जो कि बालक के चारों ओर के परिवेश से ले ली गई हो और जिसको बालक भली प्रकार समझ सकता हो। इस सामग्री का चुनाव भी इस प्रकार होना चाहिए, जिससे उसे समझ में आ सके। उदाहरण के लिए सरकार की व्यवस्था को समझाने के लिए कक्षा में छोटी-मोटी सरकार बनाई जा सकती है। जनतन्त्रीय समाजों में विद्यार्थीगण विद्यालयों के विद्यार्थी संघों में जनतन्त्रीय व्यवस्था को आसानी से सीख जाते हैं।
4) व्यक्तिगत विभिन्नताओं में अनुवंशिकता और परिवेश का तुलनात्मक महत्व (Individual importance of Heredity and Environment in Individual Differences) - शिक्षा का लक्ष्य बालक का विकास करना है। अतः शिक्षा मनोवैज्ञानिक की एक मुख्य समस्या बालक के विकास में और व्यक्तिगत विभिन्नताओं को उत्पन्न करने में आनुवांशिकता और परिवेश के तुलनात्मक महत्व से सम्बन्धित है। क्या शिक्षा से आनुवंशिक गुणों को बदला जा सकता है? क्या सामान्य वातावरण में बालक केवल आनुवांशिक गुणों के आधार पर पर्याप्त रूप से विकसित हो सकता है? क्या किसी भी बालक को शिक्षा के द्वारा कुछ भी बनाया जा सकता है?
इस तरह के प्रश्न शिक्षा मनोविज्ञान में आनुवांशिकता और परिवेश के तुलनात्मक अध्ययन को प्रेरित करते हैं। उदाहरण के लिये शिक्षाद्वारा बुद्धि को कहाँ तक विकसित किया जा सकता है, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसके सम्बन्ध में शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने अनेक अध्ययन करके तथ्यों का पता लगाया है।
5) सीखने में अधिकतम प्रगति लाने के लिये उपयुक्त विधियाँ (Methods for maximum progress learning) - स्थूल रूप से शिक्षा की प्रक्रिया सीखने से आगे बढ़ती है। इसमें शिक्षा मनोवैज्ञानिक की मुख्य समस्या यह है कि सीखने में अधिकतम प्रगति प्राप्त करने के लिये कौन-सी विधियों सबसे अधिक उपयुक्त होगी। उदाहरण के लिये यह प्रश्न तो हो सकता है कि क्या अनुकरण और रचनात्मक क्रिया में कोई विरोध है? क्या शिक्षा में तथ्यों की जानकारी पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये अथवा रचनात्मक कार्यों पर?शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने अनुकरण प्रतिबद्ध अनुक्रिया प्रयत्न और भूल और सूझ द्वारा सीखने नविधियों पर प्रयोग कर के यह पता लगाने की चेष्टा की है कि किन परिस्थितियों में कौन-सी विधि से सबसे अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।
6) संवेगो की शिक्षा (Education of Emotions) - व्यक्तित्व के सर्वागीण विकास में सबैगों का समुचित और पुष्ट विकास बड़ा जरूरी है। इसके बिना अनुशास्महीनता तथा अनेक मानसिक रोग तक उत्पन्न होते देखे जा सकते हैं। अतः आधुनिक शिक्षा की एक समस्या सब्गों की शिक्षा के उपाय, सीमाएँ और परिणामों की खोज करना है।
7) बुद्धि और उपलब्धि का माप और विकास (Measurement and Development of Intelligence and Attainment) - शिक्षा के द्वारा बुद्धिऔर उपलब्धि का विकास होता। इसमें कसे प्रगति हो सकती है और किसी बालक ने कहाँ तक प्रगति की है, यह जानने के लिये शिक्षक विभिन्न विधियों और मापों के सम्बन्ध में जाँच करते हैं और सुझाव देते हैं।
(8) व्यक्तिगत विभिन्नताएँ (Individual Differences) - व्यवहारिक मनोविज्ञान व्यक्तिगत विभिन्नताओं के तथ्य पर आधारित है। शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान का व्यवहारिक प्रयोग करने वाला शिक्षा मनोविज्ञान यह पता लगाता है
कि व्यक्तियों में कौन-कौन से अन्तर पाये जाते हैं। ये अन्तर इतने अधिक होते हैं कि इनको जाने बिना कुशल शिक्षक अपना काम नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए कुछ लोगों का बौद्धिक स्तर निम्न होता है। उन्हें पढ़ना-लिखना तो क्या कपड़े पहनना और खाना-पीना भी बड़ी मेहनत से ही सिखाया जाता है। दूसरी और कुछ बालक इतने कुशाग्र बुद्धि होते है कि कक्षा की साधारण पढ़ाई-लिखाई उनको काम में लगाये रखने के लिये पर्याप्त नहीं होती और वे शीघ्र ही उससे ऊब जाते हैं। अतः शिक्षा मनोवैज्ञानिक व्यक्तिगत विभिन्नताओं की सीमाओं का पता लगाता है और विशेष बालकों को व्यक्तिगत रूप से आगे बढ़ाने का प्रयास करता है।
9) सीखने से सम्बन्धित समस्यायें (Problems Related to Learning) - बाल केन्द्रित शिक्षा की अनेक समस्यायें सीखने से सम्बन्धित है। इसमें मुख्य निम्नलिखित हैं-
1. सीखने की प्रक्रिया की प्रकृति
2. परिपक्वता के स्तर और सीखने में सम्बन्ध
3. सीखने की गति और सीमा में व्यक्तिगत विभिन्नताओं का महत्व।
4. सीखने की प्रक्रिया में होने वाले आन्तरिक परिवर्तन।
5. सीखने के परिणामों का शिक्षण विधियों से सम्बन्ध।
6. सीखने की प्रगति की जाँच के लिए मूल्याकन की विधियाँ।
7. सीखने की औपचारिक और अनौपचारिक विधियों का तुलनात्मक
8. सीखने वाले पर सामाजिक परिस्थियों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव।
10 ) व्यवहारिक समस्याएँ (Practical Problems)
महत्व
मनोविज्ञान केवल सैद्धांतिक ही नहीं, बल्कि एक व्यवहारिक विज्ञान भी है। इसीलिये उसमें ऐसी बहुतसी समस्यायें आती है, जो वास्तविक परिस्थितियों में शिक्षक की समस्यायें होती हैं। जैसे
1. प्रत्येक विद्यार्थी की प्रकृति और उसके विकास की सम्भावनाओं की जानकारी
2. आधुनिक संस्कृति में समायोजन लिये आवश्यक व्यक्तिगत और सामाजिक अनुकूलन
3. शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया में निहित मनोवैज्ञानिक कारणों की खोज।
बाल मनोविज्ञान के विकास के साथ-साथ उसके सम्मुख नई-नई समस्याएँ आती जाती हैं। आधुनिक जनतन्त्रीय समाज में शिक्षा मनोवैज्ञानिक, शिक्षा को यथासम्भव जनतंत्र के अनुकूल बनाने के लिये प्रयत्नशील है। इस प्रयास में जो भी समस्यायें उसके सामने आती हैं, उन समस्याओं के सुझाव पर ही जनतन्त्रीय समाज का भविष्य निर्भर है।
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