उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत उपभोक्ता अधिकार - Consumer Rights under Consumer Protection Act 1986
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत उपभोक्ता अधिकार - Consumer Rights under Consumer Protection Act 1986
विभिन्न संगठनों द्वारा सुझाए गए उपभोक्ता के अधिकारों को तब तक महत्ता नहीं मिलती है जब तक उसे कानूनी रूप से नहीं दिया जाता। उपभोक्ता के अधिकारों को सुचारू रूप से लागू करने और उन्हें कानूनी रूप प्रदान करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 निम्नलिखित उपभोक्ता अधिकारों का वर्णन करता हैं।
घातक वस्तुओं के विरूद्ध सुरक्षा का अधिकार - उपभोक्ता का प्रथम अधिकार सुरक्षा का अधिकार है। उसे ऐसी वस्तुओं एवं सेवाओं से सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है जिनसे उसके शरीर एवं संपत्ति को हानि पहुंचती हो। इसलिए व्यकितयों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य को मां नजर व्यापारी ऐसे किसी भी वस्तु को, जो उन्हें हानि पहुंचाए, प्रचलन में न लाने का पूर्णतः उत्तरदायी होगा।
सूचना पाने का अधिकार - सूचना के अधिकार, 2005 के लागू होने से पहले ही उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत उपभोक्ताओं को वस्तुओं या सेवाओं के गुण, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मानक एवं कीमत के बारे में सूचना पाने का अधिकार था जिससे वस्तु विक्रेता या सेवा देने वाले के द्वारा गलत व्यवहार से उपभोक्ता की सुरक्षा हो सके। इसलिए उपरलिखित मामलों के बारे में ग्राहकों को व्यापारियों द्वारा किसी भी हिस्से में गलत खबर देने पर उपभोक्ता विवाद निवारण मंच के बनने से पहले भी न्यायालय द्वारा न्याय पाने का अधिकार था।
चुनाव या पसंद का अधिकार - यह अधिनियम बाजार और बाजारी सेवा के ऐसे संगठन की आवश्यकता पर बल देता है जो इस बात को सुनिशिचत करे कि डीलर ऐसी वस्तु या सेवा प्रदान करे जो उपभोक्ताओं के हित में हो। उपभोक्ता अपने इस अधिकार के अन्तर्गत विभिन्न निर्माताओं द्वारा निर्मित विभिन्न ब्रांड,
किस्म, गुण, रूप, रंग तथा मूल्य की वस्तुओं में से किसी भी वस्तु का चुनाव करने को स्वतंत्र होगा।
सुनवाई या अपील का अधिकार - उपभोक्ता को अपने हितों को प्रभावित करने वाली सभी बातों को उपयुक्त मंच के समक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार है। वे अपने इस अधिकार का उपयोग करके व्यवसायी एवं सरकार को अपने हितों के अनुरूप निर्णय लेने तथा नीतियां बनाने के लिए बाध्य कर सकते हैं। सुनवाई का अधिकार ही वह अधिकार है, जिसके द्वारा वह अपनी शिकायत को व्यक्त कर सकता है तथा अपने अन्य उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा कर सकता है।
उपचार का अधिकार- यह अधिकार उपभोक्ता को यह आश्वासन प्रदान करता है कि क्रय की गई वस्तु या सेवा उचित एवं संतोषजनक ढंग से उपयोग में नहीं लायी जा सकेगी तो उसे उसकी उचित क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होगा।
उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार - उपभोक्ता को उन सब बातों की शिक्षा या जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है जो उपभोक्ता के लिए आवश्यक होता है। उपभोक्ता को उनकी आवश्यकता के अनुसार उत्पाद या सेवा के चयन में दी गई सीमित जानकारी के कारण कंपनियों द्वारा जाने या अनजाने में वे प्रायः ठगे जाते हैं। इस सिथति में उपभोक्ता को जानकारी प्राप्त करने का पूरा अधिकार होता है। उपभोक्ता को उसे सिथति में शिक्षा या जानकारी पाने का पूरा अधिकार है जिसमें उसे लगता है कि उसके साथ नाइंसाफी की गई है। उसके दावे के लिए उपचारों के लिए एक उपयुक्त संस्थागत व्यवस्था होना चाहिए। शिक्षा उपभोक्ता की जागरूकता की आधारभूत आवश्यकता है, जबकि सूचना किसी क्रय की जाने वाली वस्तु या सेवा के संबंध में जानकारी है। उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की सफलता की कुंजी है।
उपभोक्ता के संवैधानिक अधिकार - उपभोक्ता मूलतः देश का एक नागरिक होता है।
भारत का संविधान भी अपने मौलिक अधिकारों तथा नीति निर्देशक तत्वों के प्रावधानों के अंतर्गत देश के लोगों की व्यापक भलाई के लिए काम करता है, उसी प्रकार इस भाग के कुछ प्रावधान उपभोक्ता के रूप में नागरिकों के वस्तु या सेवाओं के मामले से भी जुड़े हुए हैं। इससे संबंधित अनुच्छेद हैं- भाग प्पू के अनुच्छेद 21 तथा भाग प्ट के अंतर्गत 51 ए (बी) एवं 51 ए (जी) विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत व्यक्तियों को प्राप्त जीवन संरक्षण तथा व्यकितगत स्वतंत्रता का अधिकार के द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार से देश के नागरिकों के साथ-साथ उपभोक्ताओं के अधिकारों की भी रक्षा होती है।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता या जीवन के अधिकार को सीमित करने के विरूद्ध रक्षोपाय के इस गुण के अंतर्गत देश के नागरिकों को स्वतः उनसे सुरक्षा पाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है जो वस्तु या सेवाओं के उपभोग के कारण उनके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर खतरा उत्पन्न करे। नागरिकों के इन अधिकारों की सुरक्षा हेतु सरकार कंपनियों तथा व्यवसायों को नियमित करने के लिए आवश्यक शकित का इस्तेमाल करती है।
संविधान के प्रावधानों से उपभोक्ता के लिए अन्य अधिकारों के अंतर्गत स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार है जो लोगों के स्वस्थ, खुशनुमा एवं संतुष्ट जीवन को सुनिशिचत करते हैं। इस दिशा में मूलभूत कानूनों की व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय उद्योगों या अन्य विकासात्मक क्रियाकलापों से पर्यावरण प्रदूषित होने जैसे मामलों से संबंधित विवादों में की है।
उदाहरणतः टी दामोदर राव बनाम नगर निगम, हैदराबाद (ए आई आर 1987 ए पी 171) के केस में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि धीमे जहर के फैलने से प्रभावित हुए पर्यावरण द्वारा वातावरण दूषित व नष्ट होता है जिसे अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्राप्त अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा। इससे स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार एक प्रमुख मौलिक अधिकार के रूप में उभरा जिसके बाद इस मुर्गे पर कई बार जागरूक व्यक्तियों एवं संगठनों द्वारा लोक हित को ध्यान में रखते हुए इस तरफ न्यायालयों का ध्यानाकर्षण कराया गया है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया वह फैसला जिसमें कहा गया कि राष्ट्रीय राजधानी के लोगों को वायु प्रदूषण के बढ़ते खतरों से बचाने हेतु दिल्ली के सभी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में दावित प्राकृतिक गैस (सी.एन.जी) का अनिवार्य रूप से इस्तेमाल हो, स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार का एक महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।
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