कंपनी की विशेषताएँ - Company Features

कंपनी की विशेषताएँ - Company Features


प्रायः सभी परिभाषाओं के अंतर्गत कंपनी के विभिन्न वैधानिक पहलुओं को स्पष्ट किया गया है। उक्त परिभाषाओं के आधार पर कंपनी की निम्नलिखित आधारभूत विशेषताएँ कहीं जा सकती है:


1) कृत्रिम वैधानिक व्यक्ति :- कंपनी विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है। कंपनी को कृत्रिम वैधानिक व्यक्ति इसलिए कहा जाता है कि एक ओर तो इसका जन्म अप्राकृतिक तरीके से होता है। और दूसरी ओर प्राकृतिक व्यक्ति की तरह इसके अधिकार एवं दायित्व होते हैं। यह अदृश्य, अमूर्त और अमर है। केवल वैधानिक तरीका द्वारा ही एक कंपनी को समाप्त किया जा सकता है। कानूनी रूप से कंपनी द्वारा संपत्ति को प्राप्त किया जा सकता है एवं बेजा जा सकता है, यही प्राकृतिक व्यक्तियों की एजेन्सी के माध्यम से अनुबंध कर सकती है तथा कंपनी अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करने पर इस पर जुर्माना किया जा सकता है।


2) समामेलित संघ :- कंपनी का कंपनी अधिनिमय के अधीन समामेलन होना अनिवार्य हैं। पंजीकरण द्वारा ही एक संयुक्त पूँजी कंपनी का निर्माण होता है। ऐसी सभी संघों अथवा साझेदारी संस्थाओं का पंजीकृत होना अनिवार्य होता है जिनकी स्थापना लाभार्जन के उद्देश्य से व्यापार करने के लिए की गई हो एवं जिसमें 50 से अधिक सदस्य हैं।


3) पृथक वैधानिक अस्तित्व :- कंपनी अपने सदस्यों से पूर्णतथा भिन्न स्वतंत्र कानूनी व्यक्तित्व रखने वाली वैधानिक व्यक्ति होती है। इसे सम्पत्तियों का स्वामित्व ग्रहण करने तथा हस्तांतरण करने का पूर्ण अधिकार होता है। कोई भी सदस्य कंपनी की संपत्तियों में व्यक्तिगत या संयुक्त रूप से अपने स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता। कंपनी द्वारा किए गए कार्यों के लिए कंपनी स्वयं उत्तरदायी होती हैं, इसके लिए सदस्य उत्तरदायी नहीं होते।

कंपनी अपने नाम से अपने सदस्यों तथा बाहरी पक्षों पर वाद कर सकती है तथा इस पर वाद किया भी जा सकता है। कंपनी के ऋणदाता केरल कंपनी से ही अपना पैसा लेने के अधिकारी हैं, सदस्यों से नहीं।


4) शाश्वत अस्तित्व :- प्रोफेसर गावर के शब्दों में “एक युद्ध के दौरान एक निजी कंपनी के सभी सदस्य, जो कि एक सभा में उपस्थित थे, एक बम द्वारा मारे गये, परन्तु फिर भी कंपनी जीवित रही हाइड्रोजन बम भी कंपनी को समाप्त नहीं कर सका।" अंतः कंपनी का चिरस्थायी अस्तित्व भी व्यावसायिक संगठन के प्रारूप का एक महत्वपूर्ण लक्षण है। इसका जीवन इसके सदस्यों अथवा संचालनकों के जीवन पर निर्भर नहीं करता है। कंपनी के सदस्य चाहे बदलते रहे परन्तु कंपनी निर्विघ्न चलती रहती है।

शेयरधारक द्वारा सदस्यता छोड़ने की दशा में शेयरों के हस्ताक्षरण का प्रावधान तथा किसी शेयरधारक की मृत्यु की दशा में अंशों के हस्तांकनका प्रावधान कंपनी के शाश्वत अस्तित्व का संरक्षण करता है। सदस्यों की मृत्यु, दिवालियापन या पागल हो जाने का कंपनी के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है कंपनी वही संस्था बनी रहती है जो पहले थी


5) सार्वमुद्रा :- चूँकि कंपनी एक कृत्रिम व्यक्ति है, अतः यह प्रपत्रों पर हस्ताक्षर करने के अयोग्य है। यह अपने संचालकों के माध्यम से कार्य करती है। परन्तु एक पृथक अस्तित्व होने के कारण यह केरल ऐसे ही प्रपत्रों से बाध्य होनी चाहिए जिन पर इसके हस्ताक्षर हों।

अधिनियम के अधीन प्रत्येक कंपनी के पास अपने नाम की एक सार्वमुद्रा होती है जिसका प्रयोग कंपनी के हस्ताक्षर के स्थान पर किया जाता है। अतः सार्वमुद्रा कंपनी के हस्ताक्षर का काम करती है। कंपनी केवल उन्हीं प्रपत्रों से कानूनी रूप में बाध्य होती है जिन पर उसकी सार्वमुद्रा लगी हो ।


6) सीमित दायित्व :- कंपनी की यह भी एक विशेषता है कि इसके शेयरधारकों का दायित्व उनके द्वारा खरीदेगये शेयरों की अदत्त राशि तक ही सीमित होता है। इसके अतिरिक्त कंपनी के दायित्वों का भुगतान करने के लिए सदस्यों से कुछ भी नहीं मांगा जा सकता है चाहे कंपनी में कितनी ही हानि क्यों न हो। इस प्रकार एक सीमित दायित्व वाली कंपनी में किसी भी शेयरधारी का दायित्व उसके द्वारा खरीदे गए शेयरों के अंकित मूल्य तक ही सीमित होता है और यदि कोई पूर्णदत्त शेयरों का स्वामी हैं तो कंपनी के दायित्वों की पूर्ति हेतु उसकी नीजि सम्पत्ति नहीं हड़पी जा सकती है।


7) शेयरों की अंतरमीयता : एक सार्वजनिक कंपनी के शेयरों का बिना किसी प्रतिबंध के अंतरण किया जा सकता है। ऐसी कंपनी के सदस्य अपेन शेयरों का इच्छा नुसार किसी भी व्यक्ति को बेच सकते हैं, धारा 2 (68) के अनुसार निजी कंपनी के अंतरर्नियमों में शेयरों के अन्तरण पर कुछ प्रतिबंध अनिवार्य है परन्तु अन्तरर्नियमों में सदस्यों द्वारा अंशों का अन्तरण किये जाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना व्यर्थ होगा।