मूल देश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से नुकसान - Foreign direct investment loss to the country of origin

मूल देश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से नुकसान - Foreign direct investment loss to the country of origin


 मूल देश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से निम्न प्रकार से हानि होती है-


(1) भुगतान शेष पर प्रतिकूल प्रभाव - 


(i) मूल देश मेजबान देश में प्रारंभ में पूंजी की बहुत बड़ी राशि निवेश करता है। इस विशाल पूजी निवेश से विदेशी विनिमय का बाहरी प्रवाह होता है, जो भुगतान शेष पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। 


(ii) यदि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश रूट ने निर्यात को प्रतिस्थापित किया है, तो इससे मूल देश के निर्यातों में कमी आती है। पहली स्थिति में मूल देश मेजबान देश को निर्यात करके विदेशी विनिमय अर्जित करता था, परंतु अब विदेशी पूंजी के बाहरी प्रवाह द्वारा मेजबान देश में विनिर्माण इकाई स्थापित की जाती है। 


(iii) यदि मेजबान देश में कम श्रम लागत व कच्चे माल की कम लागत के कारण विनिर्माण इकाई मेजबान देश में स्थापित की गई है, तो ऐसा संभव है कि मेजबान देश में स्थापित निर्माणी इकाई उत्पादों को मूल देश में भी बेचे । अर्थात मूल देश भी विदेशी सहायक कंपनी से अपने लिए उत्पाद आयात करे। इससे मूल देश के आयात बढ़ जाते हैं जो भुगतान शेष को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं।


(2) रोजगार सृजन पर प्रतिकूल प्रभाव - यदि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश रूट ने निर्यात रूट को प्रतिस्थापित किया है, तो इससे मूल देश में रोज़गार अवसरों में कमी आती है पहले ये उत्पाद मूल देश में बनाए जाते थे, जिससे मूल देश में रोजगार का सृजन होता था, परंतु विदेशी प्रत्यक्ष निवेश अपनाने पर निर्माणी क्रियाएं मेजबान देश में हस्तांतरित हो जाती है, इससे रोजगार सृजन भी मेजबान देश मे ही होता है। अब विकसित देश विदेशी प्रत्यक्ष निवेश व आउटसोर्सिंग को विकसित देशों में बेरोजगारी के लिए दोष देते हैं।