राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (राज्य आयोग) - State Consumer Disputes Redressal Commission (State Commission)

राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (राज्य आयोग) - State Consumer Disputes Redressal Commission (State Commission)


राज्य उपभोक्ता निवारण आयोग राज्य के अधीन उपभोक्ताओं के दावों के निवारण की मध्यस्थता एजेंसी की तरह काम करता है। इसके अंतर्गत एक अध्यक्ष तथा दो सदस्य होते हैं। अध्यक्ष पद पर वही नियुक्त होंगे जो उच्च न्यायालय के जज की अर्हता रखते हों तथा अन्य दोनों सदस्यों के लिए अर्थशास्त्र, विधि, उधोग, प्रशासन आदि का अनुभव होना जरूरी है तथा इन दोनों में से एक महिला होना आवश्यक है। वर्तमान में, राज्य आयोग में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत जज ही नियुक्त होते हैं। इस आयोग का न्यायिक क्षेत्र मूलत: तीन प्रकार के हैं- वास्तविक, अपीलीय तथा निरीक्षणीय वास्तविक न्यायिक क्षेत्र के अंतर्गत आयोग उन शिकायतों की सुनवाई कर सकता है जिसमें वस्तु या सेवाओं का मूल्य एवं मुआवजा की राशि बीस लाख रूपये से लेकर एक करोड़ की राशि तक की ही हो।

अपीलीय न्यायिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत राज्य आयोग जिला फोरम के आदेशों के खिलाफ अपील की सुनवाई कर सकता है। निरीक्षणीय न्यायिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आयोग उन सभी निर्णयों की रिपोर्ट को मंगा सकती है जो उपभोक्ता विवाद के मामले में राज्य के जिला फोरम द्वारा तैयार की गयी हो या उसके पास लंबित पड़ी हो। आयोग द्वारा इस शक्ति का इस्तेमाल तब जरूरी हो जाता है जब आयोग पाता है कि जिला फोरम ने अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है या किसी न्यायिक निर्णय पर पहुंचने में वह असफल रहा है या गैर कानूनी ढंग से काम किया है या उसके द्वारा उसमें अनियमितता बरती गई है। इसके अलावा, राज्य आयोग किसी शिकायत के आधार पर या खुद ही किसी भी स्तर पर लंबित दावे को राज्य के अंदर के एक जिला फोरम से दूसरे जिला फोरम में न्याय के हित की रक्षा हेतु भेज सकता है।


उल्लेखनीय शिकायत निपटारे का काम राज्य आयोग भी जिला फोरम की ही तरह करता है। राज्य आयोग के किसी भी निर्णय से असंतुष्ट रहने पर व्यक्ति राष्ट्रीय आयोग के पास राज्य आयोग के आदेश निर्गत होने से तीस दिनों के अंदर की अवधि के भीतर अपील कर सकता है।