संचार मॉडल एवं प्रक्रियाएँ - Communication Models and Processes

संचार मॉडल एवं प्रक्रियाएँ - Communication Models and Processes


संचार मौखिक एवं लिखित सन्देश को एक स्थान से दूसरे स्थान को भेजने की व प्राप्त करने की एक महत्वपूर्ण क्रिया है। संचार तभी प्रभावी माना जाता है जब प्राप्तकर्ता सही समझले व उसकी पुष्टि कर दे। संचार सूचना, तथ्यों व विचारों के विनिमय की एक प्रक्रिया है। संचार के विभिन्न अंग होते हैं और सभी अंग मिलकर एक संचार मॉडल का निर्माण करते हैं। संचार के सभी मॉडल मिलकर विभिन्न अंगों के आपसी सम्बन्धों की व्याख्या करते हैं जो संचार में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं इसी को संचार प्रक्रिया भी कहा जाता है क्योंकि संचार प्रक्रिया संचार के विभिन्न अंगों से मिलकर बनती है।


संचार प्रक्रिया के विभिन्न अंग (Main Components of Communication Process) संचार प्रक्रिया को जानने से पहले उसके विभिन्न अंगों को समझना आवश्यक हैं जो निम्नलिखित हैं


1. विचार योजना- किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में एक विचार उत्पन होता है फिर उसको योजनाबद्ध तरीके से व्यावहारिकता का स्वरूप देने की कोशिश की जाती है। विचार बहुत अच्छा हो सकता है लेकिन व्यावहारिक नहीं है तो वह विचार व्यर्थनीय है। प्रत्येक संवाद एक विचार से ही शुरु होता है और प्रत्येक विचार किसी-न-किसी सन्दर्भ में ही शुरू होता है फिर प्रत्येक व्यवसाय इस विचार को सुनियोजित ढंग से प्राप्त करता हैं, यह इस व्यवसाय की आंतरिक व्यवस्था होती है। बाह्य रूप यह व्यव्साय इस विचार को फैक्स, टेलीफोन पत्र व ई-मेल के द्वारा भेज सकता है।


2. प्रेषक- संचार प्रक्रिया का प्रारम्भ प्रेष्क के द्वारा ही किया जाता है। यह विचार को संदेश देने के रूप में किसी विशेष भाषा व संकेतों में परिवर्तित करता है। प्रेषक वक्ता भी हो सकता है यदि वह स्वयं विचारों को बोलता है।


3. प्राप्तकर्ता - जो व्यक्ति संदेश प्राप्त करता है अर्थात् संदेश सुनता है उसको संदेश प्राप्त करने वाला या श्रवक भी कहा जाता है। इसको संदेशवाचक भी कहा जाता है क्योंकि वह संदेश को पढ़ता है अपनी भाषा में समझने योग्य बनाता है। यह उसकी अपनी एक मानसिक प्रक्रिया होती है।


4. सन्देश- प्रेषक द्वारा भेजे गए तथ्यों या विचारों को सन्देश कहते हैं। संदेश की अभिव्यक्ति या विषय वस्तु, उसके श्रोतागण, व्यावहारिकता तथा सामाजिक विचारधारा, प्राप्तकर्ता के विचार, उसका विश्लेषण आदि पर निर्भर करती है।


5. प्रतिपुष्टि प्राप्तकर्ता को संदेश प्राप्त होने के बाद उसकी प्रतिपुष्टि की जाती है ताकि प्रेषक यह जान सके कि प्राप्तकर्ता को संदेश सही अर्थों व सही समय पर प्राप्त हो गया है।

इसी से प्रेषक अनुमान लगाता है कि उसका संदेश मौलिक रूप में सही समय पर प्राप्त हो गया है। यह संचार की अन्तिम कड़ी कही जा सकती है।


संचार के विभिन्न मॉडल एवं प्रक्रियाएँ (Different Models and Processes of


Communication)


जैसाकि इससे पहले भी हम जान चुके हैं कि व्यवसाय में संचार व्यवस्था का बहुत महत्त्व है अतः इससे इसके मॉडल और प्रक्रिया का जानना भी आवश्यक हो जाता है। संचार के मॉडल बहुत से दर्शाए गए हैं। लेकिन उनमें से महत्त्वपूर्ण निम्नलिखित हैं। आरंभ करने के लिए,

अरस्तू ने अपने रोटोरिक में (जिसका अर्थ है बोलने और समझने के लिए लिखने की कला) का कहना है कि वक्ता, भाषण और दर्शकों से बना है। यह आधुनिक सैद्धांतिक लोगों का आधार बनाता है। ग्रीक दार्शनिक अरिस्टोटल ने 300 बी. सी. में पहले सम्प्रेषण का एक व्यवस्थित मॉडल प्रस्तुत किया था। इसमें पांच तत्व हैं:


(i) वक्ता,


(ii) संदेश


(iii) दर्शकों


(iv) प्रभावा


(v) अवसर


उन्होंने वक्ता को श्रोताओं, अवसर और इसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए संदेश तैयार करने की सलाह दी।