विकेंद्रिकरण के लाभ अथवा महत्व - benefits or importance of decentralization

विकेंद्रिकरण के लाभ अथवा महत्व - benefits or importance of decentralization


विकेंद्रिकरण के महत्व के संबंध में कहा जाता है कि प्रश्न यह नहीं है कि विकेंद्रिकरण किया जाए या नहीं बल्कि यह है कि विकेंद्रिकरण की मात्रा कितनी हो । अर्थात विकेंद्रिकरण के बारे में यह विचार करने की जरुरत है कि इसे लागू किया जाए या नहीं बल्कि ये देखने की जरुरत है कि कितने अधिकारों को अधीनस्थों तक पहुंचाया जाए और कितने उच्च प्रबन्धकों के पास सुरक्षित रखे जाएं। यह बात विशेषकर बड़ी संस्थाओं के लिए बिल्कुल सत्य है। इस बात की सत्यता का आधार है विकेंद्रिकरण के लाभ जो कि निम्नलिखित हैं:


उच्च अधिकारियों की अत्याधिक कार्यभार से मुक्तिः विकेंद्रिकरण के अंतर्गत दैनिक प्रबन्धकीय कार्यों को अधीनस्थों को सौंप दिया जाता है।

इसके फलस्वरुप उच्च प्रबन्धकों के पास पर्याप्त समय बचता है जिसका प्रयोग वे नियोजन, समन्वय, नीति निर्धारण, नियंत्रण आदि में कर सकते है।


(ii) विभिन्नीकरण में सुविधा इस बात से इंकार नहीं किया जाता कि एक व्यक्ति का नियंत्रण सर्वत्र होता है लेकिन इसकी भी एक सीमा होती है। यहाँ सीमा को अभिप्राय व्यवसाय के आकार से है। अर्थात जब तक व्यवसाय का आकार छोटा है तो उच्च स्तर पर सभी अधिकारों को केन्द्रित करके व्यवसाय को कुशलतापूर्वक चलाया जा सकता है। लेकिन जब उसमें उत्पादन की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा अधिक हो जाती हैं

तब केन्द्रिय नियंत्रण से काम नहीं चल सकता क्योंकि अकेला व्यक्ति सभी समस्याओं की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दे सकता। इस परिस्थिति में विकेंद्रिकरण का सहारा लिया जाता है। अतः विकेंद्रिकरण से व्यवसाय का विस्तार संभव होता है। 


(iii) प्रबन्धकीय विकास विकेंद्रिकरण का अभिप्राय है निम्नस्तर के प्रबन्धकों को भी अपने कार्यों के संबंध में निर्णय लेने के अधिकार देना। इस प्रकार निर्णय लेने के अवसर प्राप्त होने से सभी स्तरों के प्रबन्धकों के ज्ञान एवं अनुभव में वृद्धि होती है। और इस प्रकार कहा जा सकता है कि यह व्यवसाय प्रशिक्षण का काम करती है।


(iv) कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि : विकेंद्रिकरण के कारण प्रबन्ध में कर्मचारियों की भागीदारी बढ़ती है।

इस संस्था में उनकी पहचान बनती है। जब संस्था में किसी व्यक्ति की पहचान बने अथवा उसका महत्व बढ़े तो उसके मनोबल में वृद्धि होना स्वाभाविक है। मनोबल में वृद्धि होने से वे अपनी इकाई की सफलता के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने से भी नहीं घबराते।


(v) शीघ्र एवं श्रेष्ठ निर्णय सभी प्रबन्धकीय निर्णयों का बोझ कुछ ही व्यक्तियों पर न होकर अनेक व्यक्तियों में बंट जाने के कारण निर्णय शीघ्र लिए जाते हैं। सभी व्यक्तियों को अपनी इकाई अथवा विभाग की समस्याओं का पूरा ज्ञान होता है और इसी कारण वे अच्छे से अच्छे निर्णय लेने में सक्षम होते हैं।


(vi) प्रभावपूर्ण नियंत्रण : विकेंद्रिकरण में अधीनस्थों का कार्यक्षेत्र सीमित होने के कारण उनकी गलतियों को शीघ्र पकड़ा जा सकता है और उन्हें उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। उत्तरदायीत्व के डर से प्रबन्धक अपनी इकाई को सफलता के बारे में अधिक चिंतित रहते हैं और परिणामस्वरूप वे सभी क्रियाओं पर पूरा नियंत्रण रखते हैं।


(vii) औद्योगिक संबंधों में सुधार एक-दूसरे की समस्याओं को समझना औद्योगिक संबंधों में सुधार की कुंजी होती है। एक-दूसरे की समस्या को तभी समझा जा सकता है।

जब पीड़ित व्यक्ति और समस्या का समाधान करने वाले व्यक्ति में निकटतम संबंध हो और ऐसा विकेंद्रिकरण द्वारा संभव है। विकेंद्रिकरण में निर्णय लेने के अधिकार निम्नतम स्तर पर सौंपे जाते हैं। निम्नस्तर के प्रबन्धकों को अपने अधीनस्थों के साथ सीधा संपर्क होता है जिससे वे आसानी से एक-दूसरे की कठिनाइयों को समझ लेते हैं तथा आपसी मेल-जोल से समस्याओं को सुलझा लेते हैं। इस प्रकार विकेंद्रिकरण द्वारा औद्योगिक संबंधों में मधुरता आती है।


(viii) पहल - क्षमता में वृद्धि पर्याप्त अधिकारों के अभाव में अधीनस्थ अपने कार्यक्षेत्र में आने वाली रुकावटों की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं देते और न ही उन्हें समझने का प्रयास करते है।

विकेंद्रिकरण के अंतर्गत सभी इकाईयों को पर्याप्त अधिकार प्राप्त होने के कारण इकाई प्रबन्धक अपने क्षेत्र की समस्याओं के प्रति सचेत रहते हैं और उनका अतिशीघ्र हल ढूंढने का प्रयास करते हैं। इस प्रयास को प्रोत्साहित करने वाली शक्ति अधिकारों की प्राप्ति है।


(ix) लाभ-केन्द्रों की स्थापना: विकेंद्रिकरण द्वारा स्थापित विभिन्न इकाईयों को अलग - अलग लाभ-केन्द्रों के रूप में माना जा सकता है। प्रत्येक इकाई का लाभ-हानि खाता अलग तैयार करके उसका व्यक्तिगत लाभ मालूम किया जा सकता है।

ऐसी व्यवस्था में सभी विभाग एक दूसरे से अधिक लाभ प्राप्त करने की होड़ में लग जाते हैं और संस्था में उपलब्ध सभी मानवीय एवं भौतिक साधनों का कुशलतम उपयोग होने लगता है।


(x) संदेशवाहन की समस्या में कमी जैसे-जैसे संगठन का विस्तार होता है वैसे-वैसे उच्च प्रबन्धकों को निर्णय लेने के लिए जरुरी सूचनाओं को एकत्रित करने में कठिनाई होती है। विकेंद्रिकरण में निर्णय का अधिकार उन्हीं व्यक्तियों को सौंप दिया जाता है जिनसे सूचनाएं प्राप्त होती है। इस प्रकार जहां सूचनाएं होती हैं वहीं निर्णय लिए जाने से संदेशवाहन की समस्या में कमी आती है।


(xi) बाजार का विस्तार एक संस्था जो विकेंद्रिकरण व्यवस्था को अपनाती है अनेक स्थानों पर अपनी शाखाएं खोलकर अपनी वस्तुओं के बाजार का विस्तार कर सकती हैं। इस व्यवस्था में शाखा के संबंध में सभी निर्णयों के अधिकार दिए जाते हैं। इन अधिकारों का प्रयोग करके शाखा प्रबन्ध सभी स्थानीय समस्याओं को स्वयं ही सुलझा लेते हैं। इस प्रकार बाजार का विस्तार भी होता है और स्थानीय दशाओं का पूर्ण लाभ भी प्राप्त होता है।