आधुनिक काल और स्त्री : सामाजिक सुधार आंदलनों का अर्थ एवं विविध आयाम - Modern Period and Women: Meaning and Various Dimensions of Social Reform Movements

आधुनिक काल और स्त्री : सामाजिक सुधार आंदलनों का अर्थ एवं विविध आयाम - Modern Period and Women: Meaning and Various Dimensions of Social Reform Movements


सामाजिक सुधार आंदलनों का अर्थ है, समाज में व्याप्त कुरीतियों, रूढ़ियों, कुप्रथाओं, धारणाओं, मान्यताओं इत्यादि का उन्मूलन तथा उनके स्थान पर विवेक और विचार-संपन्न प्रथाओं, परंपराओं, मान्यताओं इत्यादि की शुरुआत. यह एक लंबी प्रक्रिया है, जिसके मोटे तौर पर दो पक्ष हैं. पहला यह कि समाज में व्याप्त व अरसे से चली आ रही कुरीतियों, कुप्रथाओं, रूढ़ियों, धारणाओं इत्यादि का उन्मूलन तथा दूसरा यह की सड़ी-गली कुरीतियों, कुप्रथाओं, रूढ़ियों, धारणाओं इत्यादि के विकल्प के तौर पर नई धारणाओं, प्रथाओं, परंपराओं इत्यादि की शुरुआत. यह किसी भी जाति के नवजागरण या पुनर्जागरण की प्रक्रिया की शुरुआत है.

यह एक सामूहिक उपक्रम या कार्यवाही है आन्दोलनात्मकता इस सारी प्रक्रिया की केंद्रीय प्रवृत्ति होती है. इस अन्दोलनात्मकता के भी दो पक्ष हैं, पहला रूढ़ियों और यथास्थितिवाद का विरोध और प्रतिरोध और दूसरा वैकल्पिक विचार का प्रस्ताव या कार्यक्रम (एक्शन प्लान) की घोषणा.


सामाजिक सुधार की इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि बहुत सारी अवांछित सामूहिकताएँ इनमें अपना अनधिकृत हस्तक्षेप करने लगती हैं. कुछ स्वयम्भू समूह या समुदाय ऐसे होते. हैं, जो संपूर्ण समाज पर अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए यथास्थिति को कायम रखे रखना चाहते होते हैं.

ये समूह या समुदाय रूढ़ियों से मुक्ति को अनिष्टकारी बताते हुएनिरंतर भ्रम फैलाते हैं और परिवर्तन की प्रक्रिया को रोकने की कुचेष्टा करते हैं. जैसा कि भारत में रूढ़िवादी ब्राह्मणों ने सुधारवादियों के कार्यक्रमों में निरंतर रोड़े अटकाए "सुधारवादी आंदोलनों को हर कदम पर रूढ़िवादी ब्राह्मणों से टकराना पड़ा.. उदारवादी सुधारकों को ब्राह्मणों से सामाजिक बहिष्कार से लेकर जन से मारने की धमकियों तक का सामना करना पड़ा.” (शुक्ला, प्रो. आशा, कुसुम त्रिपाठी उपनिवेशवाद, राष्ट्रवाद और जेंडर, महिला अध्ययन विभाग, बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल, 2014; ISBN 978-81-905131-7-19; पृष्ठ- 06).


सुधारवादी आंदोलनकर्ताओं को अपने समय के शासक वर्गों से अनिवार्यतः टकराना होता है, शासक-वर्ग वह समुदाय होता है, जो सामाजिक, राजनैतिक,

आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि सभी क्षेत्रों में वर्चस्वकारी स्थिति में होता है, जैसा कि पूर्व में कहा गया, वर्चस्वशाली वर्ग सदैव यथास्थिति बनाए रखने में विश्वास रखता है. यह एक वास्तविकता है कि सुधार चाहे किसी भी क्षेत्र के हों, वे प्रायः अन्य क्षेत्रों से जुड़े होते हैं, जैसे सामाजिक का संबंधराजनैतिक एवं आर्थिक स्थितियों से होता है तथा आर्थिक का संबंध सामाजिक एवं अन्य क्षेत्रों से इस प्रकार समस्त संदर्भ एक-दुसरे से जुड़े हुए हैं. एक क्षेत्र में यदि सुधार होता है तो, उसका प्रभाव दुसरे क्षेत्रों पर भी पड़ता है.

उदाहरण के लिए यदि लड़कियों के लिए शिक्षा सम्बन्धी समस्त आवश्यक उपलब्ध कराई जाएँ और उनकी शिक्षा सुचारु रूप से निरंतर चलती रहे तो इसका प्रभाव उनके समूचे जीवन पर पड़ेगा. उनकी सोचने की दिशा बदल जाएगी; उसमें विवेक और तर्क का समावेश होगा. शिक्षित होने का परिणाम यह भी होगा कि वे अंधविश्वासों, सड़ी- गली रूढ़ियों, परंपराओं, अनुत्पादक कार्यों इत्यादि से धीरे-धीरे अपना पीछा छुड़ाने लगेंगी. उनमें राजनैतिक जागरूकता आएगी और वे आत्मनिर्णय ले सकने की स्थिति में आने लगेंगी. इससे उनमें आर्थिक आत्मनिर्भरता की चाह पैदा होगी और वे स्वयं आजीविका अर्जित किये जाने की ओर आगे बढ़ेंगी.

उनके पास आर्थिक आत्मनिर्भरता होगी तो वे पराधीनता से उत्पन्न दशों से मुक्त हो सकने की स्थिति में आने लगेंगी. इससे उनका शारीरिक-मानसिक शोषण कम होगा और वे उसके स्वरूप तथा कारणों की पहचान में सक्षम होंगी. स्त्रियाँ पढ़ी-लिखी होंगी तो कानून / संविधान में प्रदत्त अपने अधिकारों के प्रति सजग और सक्रिय होंगी और अपने लिए एक बेहतर विकल्प पर विचार कर सकेंगी! इस प्रकार हम देखते हैं कि स्त्री-शिक्षा से सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि सभी स्थितियों में बदलाव और गतिशीलता आती है. इससे यह प्रमाणित होता है कि सुधार के सभी क्षेत्र एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे को अनिवार्यतः प्रभावित करते हैं.