असहयोग आंदलन और महिलाएँ - Non-Cooperation Movement and Women
असहयोग आंदलन और महिलाएँ - Non-Cooperation Movement and Women
1920-21 के असहयोग आंदलनों में महिलाएं बड़े पैमाने पर शामिल थीं. रौलक एक्ट के पास होने के बाद शुरू हुए असहयोग आंदलनों में संगठित रूप से पहली बार महिलाएँ शामिल हुई. इससे पहले भी महिलाएँ राष्ट्रीय आंदलनों के कार्यक्रमों में शामिल थीं. लेकिन असहयोग आंदलनों में एक संगठित शक्ति और सशक्त नेतृत्व के रूप में महिलाएँ पहली बार व्यापक रूप में उभरकर सामने आई. असहयोग आंदलनों में महिलाओं को अपेक्षाकृत ज्यादा स्पेस मिला. ज्यादा स्पेस मिलने पर व्यापक और विश्वसनीय रूप में उनकी संगठन एवं नेतृत्वक्षमता का विकास हुआ जो बहुत कम का साबित हुआ,
इससे गाँधी की वह आकांक्षा पूरी हुई कि स्त्रियाँ अपने पतियों को मन लगाकर राष्ट्रीय आंदलनों में हिस्सा लेने को उत्प्रेरित करें.
असहयोग आंदलनों का स्वरूप अखिल भारतीय था. उत्तर से लेकर दक्षिण तक यह आंदलनों फैला था. तदनुसार महिलाएँ भी उत्तर से लेकर दक्षिण तक इसमें शामिल थीं. पंजाब, बंगाल, बम्बई, आसाम, पश्चिमोत्तर प्रांत, लखनऊ, नागपुर, आन्ध्र प्रदेश, अहमदाबाद आदि समस्त प्रांतों में स्थानीय स्तर पर तथा बाहर से आकर भी महिलाओं ने जी-जान से इस आंदलनों में हिस्सा लिया.
अनेक महिला कार्यकर्ताओं ने इस आंदलनों में गिरफ्तारी दी. असहयोग आंदलनों में भाग लेने वाली असंख्य महिलाओं में प्रायः सभी वर्गों की महिलाएँ थीं.
असहयोग आंदलनों ब्रिटिश कानूनों की खिलाफ़त, शराबबंदी आंदलनों, झंडा सत्याग्रह, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार और स्वदेशी का प्रचार, खादी के इस्तेमाल पर बल, ब्रिटिश सरकार द्वारा अनर्गल तरीके से थोपे गए करों का विरोध इत्यादि सबको समेटे था. इस प्रकार कहा जा सकता है कि असहयोग आंदलनों विविधायामी था और उसमें महिलाओं की भागीदारी भी विविधस्तरीय रही
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