महिला मताधिकार का संघर्ष - struggle for women's suffrage

महिला मताधिकार का संघर्ष - struggle for women's suffrage


भारतीय स्त्रियों को मताधिकार देने न देने का निर्णय करने और रिपोर्ट देने के लिए अग्रेज़ सरकार द्वारा गठित की गई साऊथबोरो कमेटी के समक्ष यहाँ की महिलाओं ने जोरदारी से अपना पक्ष रखा. जब यह कमेटी मुम्बई गई तो वहाँ आठ सौ महिलाओं ने हस्ताक्षर सहित एक प्रतिवेदन सौंपा. इसी प्रकार के प्रतिवेदन मुम्बई की स्नातक महिला संगठन, होमरूल लीग की सभी शाखाओं, भारत स्त्री मंडल और अखिल भारतीय महिला प्रतिनिधि मंडल की सदस्याओं की ओर से भी सौपे गए थे. जब इस कमेटी ने मताधिकार के खिलाफ फैसला दिया तो उसके विरोध में पूरे देश में सभाएँ हुई और प्रस्ताव पास हुए. भारतीय महिला प्रतिनिधि मंडल की सदस्य के रूप में इलैण्ड में एनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू ने इस मुद्दे को उठाया.


महिलाओं ने लिंगभेद के आधार पर मताधिकार से वंचित रखने के कानून को चुनौती दी. एक समय था जब इन तीन आधारों पर स्त्रियों को मत देने का अधिकार मिलता था- 1. संपत्ति की योग्यता के आधार पर, 2. पत्नीत्व की योग्यता के आधार पर तथा 3 साक्षरता / शिक्षा की योग्यता के आधार पर. ये तीनों ही आधार पुरुषकेन्द्रिकता से उत्प्रेरित थे. यानी कि स्त्री के अपने व्यक्तित्व की कोई महत्ता या पहचान तब नहीं थी. तीसरे आधार में स्त्री के व्यक्तित्व की थोड़ी-बहुत पहचान थी. आगे चलकर विभिन्न महिला संगठनों के प्रयासों के परिणामस्वरूप स्त्रियों को मताधिकार प्राप्त हुआ.