इस्लाम धर्म में स्त्री - woman in islam
इस्लाम धर्म में स्त्री - woman in islam
इस्लाम में स्त्री संबंधी मान्यताओं, धारणाओं, व्यवस्थाओं, प्रावधानों, निर्देशों इत्यादि की जानकारी के लिए कुरान, हदीस, इज्मा कियास और फतव इज्तिहाद है। इनमें प्रथम दो मूलभूत स्रोत या आधार है। कुरान के चौथे अध्याय 'सूरा: अन-निसा में (जिसका अर्थ होता है स्त्री) स्त्री संबंधी मान्यताएँ, धारणाएँ व्यवस्थाएँ प्रावधान दिए गए हैं।
इस्लाम के स्त्री संबंधी विचारों को निम्न बिंदुओं में समेकित किया जा सकता है-
1. स्त्री-पुरुष जोड़े से पैदा हुए हैं। उनका जोड़ा स्थायी है।
2. कुरान में कहा गया है कि तुम दो-दो, तीन-तीन या चार-चार (अनाथ) लड़कियों से विवाह तो कर सकते हो, लेकिन यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम उनके साथ एक जैसा व्यवहार न कर सकोगे तो एक ही पर बस करो। (4:3)
3. अपने माँ-बाप और नातेदारों द्वारा छोड़े गए माल में स्त्रियों का भी एक निश्चित हिस्सा होता है। यह हिस्सा निश्चित किया हुआ है। (4:7) मरने वाले की छोड़ी हुई संपत्ति में उसकी पुत्रियों के
हिस्से का यह प्रावधान कुरान में किया गया है। यहाँ तक कि संतान के न होने पर संपत्ति का आधा हिस्सा उसकी बहन को दिए जाने का निर्देश है।
4. स्त्रियाँ यदि कुछ कमाती हैं तो पुरुषों की तरह उनका भी अपनी कमाई पर अधिकार है- 'पुरुषों ने जो कुछ कमाया है, उसके अनुसार उनका हिस्सा है और स्त्रियों ने जो कुछ कमाया है, उसके 'अनुसार उनका हिस्सा है।' (4:32).
5. इस्लाम ने औरत को मर्द के समान ही अधिकार दिए हैं। कुरआन की सूरा अल-बकरा (2:228) में कहा गया है, “महिलाओं के लिए भी सामान्य नियम के अनुसार वैसे ही अधिकार हैं जैसे मर्दों के अधिकार उन पर हैं।"
6. इस्लाम में महिलाओं को माँ, पत्नी, बेटी एवं बहन के रूप में उसे पर्याप्त सम्मान दिया गया है।
हदीस में कहा गया है कि माता को पिता की तुलना में तीन गुना अधिकार प्राप्त हैं।
7. इस्लाम में बेटियों को भी महत्व दिया गया है। कहा गया है कि बेटियाँ तुम्हें नर्क से बचाएँगी।
8. इस्लाम में बेटियों के जन्म पर दुःखी न होने का निर्देश है। कुरआन (16:58-59) में उन माता-
पिता को लताड़ा गया है जो बेटी के जन्म पर दुःखी होते हैं। इसी तरह कुरान की एक आयत (8189) में लड़कियों को जिंदा गाड़ देने के कृत्य की भर्त्सना की गई है।
9. इस्लाम में स्त्री को अपना वर चुनने का अधिकार दिया गया है। वह किसी के विवाह प्रस्ताव को स्वेच्छा से स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।
उसका विवाह उसकी स्वीकृति के बिना या उसकी मर्जी के विरुद्ध नहीं किया जा सकता।
10. इस्लाम में किसी पुरुष की अच्छाई का निर्धारण पत्नी के प्रति उसके व्यवहार को माना जाता है।
अच्छा पुरुष वही है, जो अपनी पत्नी के लिए अच्छा है।
11. इस्लाम में औरत को बेटी के रूप में पिता की जायदाद और बीवी के रूप में पति की जायदाद का हिस्सेदार बनाया गया है।
12. इस्लाम में स्त्री के शिक्षा / ज्ञान प्राप्त करने के अधिकार की वकालत की गई है। पैगंबर ने कहा है. “पुरुषों की तरह स्त्रियाँ भी ज्ञान प्राप्त करें, अपनी बुद्धि-जीविता को विकसित करें, अपने दृष्टिकोण का विस्तार करें तथा इन सबसे लैस अपनी प्रतिभा एवं बुद्धिमत्ताका अपने स्वयं के तथा समाज के हित में इस्तेमाल करें।" (वही, पृ. 20)1
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