क्रान्तिकारी आंदोलनों में महिलाएँ - women in revolutionary movements

क्रान्तिकारी आंदोलनों में महिलाएँ - women in revolutionary movements


गाँधी और स्त्री


महात्मा गाँधी पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने स्त्रियों को बड़े पैमाने पर उद्वेलित किया. खियाँ गाँधी के आंदोलनों में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में घरों से निकलकर बाहर आई. दक्षिण अफ्रीका से लौटने और स्वाधीनता आंदलनों की शुरुआत में गाँधी महिला समाज सुधार में सक्रिय महिला नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिले थे. अपनी एक बातचीत में गांधीजी ने महिलाओं का आह्वान इस तरह किया था- “भारत को प्राचीन काल की वीरांगनाओं की तरह पवित्र दृढ और आत्मसंयमी महिलाओं की आवश्यकता है, जो सीता, दमयन्ती और द्रौपदी जैसी हों.” (शुक्ला, प्रो. आशा, कुसुम त्रिपाठी उपनिवेशवाद, राष्ट्रवाद और जेंडर, महिला अध्ययन विभाग, बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल 2014; ISBN 978-81-905131-7-19; 8-68).


गाँधीजी ने महिलाओं को राष्ट्रीय आंदलनों में शामिल किये जाने का आह्वान करते हुए कहा था कि महिलाएँ इसमें बड़ी संख्या में शामिल हों ताकि पुरुषों की संपूर्ण भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सके. गांधीजी ने महिलाओं को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने, स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल की शपथ लेने का आह्वान किया. इसी क्रम में रोज सूत कातने का आह्वान भी किया. गांधीजी के इस आह्वान का गहरा और व्यापक असर हुआ और घर-घर में चरखा पहुँच गया. अपने चरखे पर सूत कातना एक ओर स्वदेशी को बढ़ावा देना था तो दूसरी ओर यह घरेलू महिलाओं के लिए आमदनी का एक लोकप्रिय स्रोत भी बन गया.


गाँधीजी ने हिंदू औरतों का यह कहकर आह्वान किया कि वे पुरुषों का साथ सीता की तरह वीर और विश्वासपात्र बनकर दें और मुस्लिम औरतों से कहा कि वे भी चरखा कातें और अपने शौहरों को आंदलनों में शामिल होने के लिए प्रेरित करें. उन्होंने इस्लाम को बचाने की खातिर विदेशी कपड़ों के बहिष्कार का मुस्लिम औरतों से आह्वान किया, किंतु गाँधी ने यह भी कहा कि स्त्रियाँ अपने घर के दायित्व से मुँह न मोड़ें और उसे पूर्ण करते हुए ही आंदलनों में सहयोग करें. इसका अर्थ यह भी हुआ कि महिलाएँ एक सीमा से आगे आदलनों में आगे नहीं बढ़ सकती थीं. गाँधी स्त्रियों के लिए सहायक की भूमिका की ही उम्मीद करते थे.


किंतु गांधीजी को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने, जैसा कि पूर्व में कहा गया, स्त्रियों को घरों की चारदीवारी से बाहर निकालकर राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ा. यह एक प्रकार से स्त्रियों का इतिहास में लौटना, इतिहास में उनकी पुनर्वापिसी भी कही जा सकती है. डा. राधा कुमार ने लिखा है- गाँधी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान यह था कि उन्होंने सार्वजनिक गतिविधियों में महिलाओं की सहभागिता के औचित्य को सिद्ध करते हुए उसे विस्तार दिया ताकि वे वर्ग एवं सांस्कृतिक बन्धनों को तोड़कर आगे बढ़ सकें." (कुमार, राधा स्त्री संघर्ष का इतिहास; अनुवाद एवं सम्पादन - रमा शंकर सिंह 'दिव्यदृष्टि'; वाणी प्रकाशन,

दरियागंज, नई दिल्ली-2; पृष्ठ 175) राष्ट्रीय आंदलनों की विभिन्न गतिविधियों और कार्यक्रमों से जुड़कर और उनमें सक्रिय भागीदारी करके महिलाओं को एक मुक्ति के जैसा अनुभव होता था. गाँधी का स्त्री-मुक्ति की प्रकिया में उस समय यह बहुत बड़ा योगदान था, जब स्त्रियाँ ज्यादातर घूँघट और पदों में घर की चारदीवारी में लगभग क़ैद थीं- “महात्मा गाँधी के आह्वान पर ब्रिटिश शासित भारत के सभी प्रांतों से महिलाएँ ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदलनों में आगे आई.



गाँधी ने महिलाओं से कहा कि वे विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करें. खुद उम्र में छोटी होने के कारण स्वयंसेविका नहीं बन पाई महिलाओं के लिए घर-गाँव छोड़कर आंदलनों में शामिल होने का अनुभव मुक्ति के अनुभव जैसा ही था." (शुक्ला, प्रो. आशा, कुसुम त्रिपाठी, उपनिवेशवाद, राष्ट्रवाद और जेंडर, महिला अध्ययन विभाग, बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल, 2014; ISBN 978-81-905131-7- 19 पृष्ठ 73-74).