उन्नीसवीं सदीं में स्त्री शिक्षा - women's education in the nineteenth century

उन्नीसवीं सदीं में स्त्री शिक्षा - women's education in the nineteenth century


इस दिशा में स्त्रियों को शिक्षित करने के महत्त्व पर सबसे पहली सार्वजनिक बहस राममोहन राय द्वारा 1815 में स्थापित आत्मीय सभा द्वारा बंगाल में छेड़ी गयी। 19वीं शताब्दी में समाज में यह भ्रांतिव्याप्त थी कि हिंदू शास्त्र स्त्री शिक्षा की अनुमति नहीं देते तथा शिक्षा ग्रहण करने पर देवता उसे वैधव्य का दंड देते हैं। इस दिशा में सबसे पहला प्रयास ईसाई मिशनरियों ने किया तथा 1819 में कलकत्ता तरुण स्त्री सभा की स्थापना की। 1849 में कलकत्ता एजुकेशन काउंसिल के अध्यक्ष जे.ई.डी. बेन ने बेथुन स्कूल की स्थापना की। बेथुन द्वारा किया गया प्रयास स्त्री शिक्षा की दिशा में की गयी पहली सशक्त पहल थी।

किंतु स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में ईश्वरचंद विद्यासागर की देन महान है। वे बंगाल के कम से कम 35 बालिका विद्यालयों से संबद्ध थे तथा स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में उनके कार्यों को सदैव याद किया जायेगा। बंबई के एलफिस्टन इंस्टीट्यूट के भी विद्यार्थियों ने भी स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।


1854 के चार्ल्स वुड के डिस्पैच में भी स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने पर बल दिया गया। 1914 में स्त्री चिकित्सा सेवा ने स्त्रियों को नर्सिंग एवं मिडवाइफरी के क्षेत्र में प्रशिक्षण देने का सराहनीय कार्य •

किया। 1916 में जब प्रो. कर्वे ने भारतीय महिला विश्वविद्यालय प्रारंभ किया तो यह स्त्री शिक्षा की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ। इसी वर्ष दिल्ली में लेडी हर्डिंग मेडिकल कालेज की स्थापना की गयी। 1880 मॅडफरिन हास्पिटल की स्थापना के पश्चात महिलाओं को स्वास्थ्य एवं चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध करायी जाने लगी।


स्वदेशी अभियान, बंगाल विभाजन विरोधी अभियान एवं होमरूल आंदलनों कुछ ऐसे कार्यक्रम थे, जब प्रारंभिक तौर पर घरों की चहारदीवारी में कैद रहने वाली महिलाओं ने इनमें उत्साहित होकर भाग लिया।

1918 के पश्चात महिलायें उग्रविरोध प्रदर्शनों में भाग लेने लगीं तथा उन्होंने लाठी चार्ज एवं गोलियों का भी सामना किया। उन्होंने ट्रेड यूनियन आंदोलनों, किसान आंदोलनों एवं अन्य अभियानों में भी सक्रिय रूप से हिस्सेदारी निभायी। उन्होंने न केवल स्थानीय निकायों एवं विधानसभा चुनावों में वोट देना प्रारंभ कर दिया बल्कि इन चुनावों में खड़े होकर विजयें भी प्राप्त कीं। 1925 में सरोजिनी नायडू को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ। बाद में वे 1947- 49 तक संयुक्त प्राप्त की राज्यपाल भी रहीं। 1920 के पश्चात जागृति एवं आत्मविश्वास से स्फूर्त महिलाओं ने महिला स्थापना की गयी। इसी क्रम में 1927 में अखिल भारतीय महिला कांग्रेस का गठन किया गया।