लोक-साहित्य : सदाचार एवं आदर्श भावना , संस्कृति - Folklore: Morality and Idealism, Culture

लोक-साहित्य : सदाचार एवं आदर्श भावना , संस्कृति - Folklore: Morality and Idealism, Culture


लोक-साहित्य में लोक व्यवहार प्रमुख होता है। लोक का प्रकीर्ण-साहित्य कहावतें, लोकोक्तियाँ आदि - नैतिक शिक्षा की औषधि है। समाज के समस्त आदर्श लोक-साहित्य में विद्यमान हैं जैसे आँख के अन्धे नाम - नयनसुख, नाँच न जाने आँगन टेढ़ा, सौ सोनार की एक लोहार की, अन्धे की लाठी होना, तिनका कबहूँ न निंदिये इत्यादि ।


लोक-साहित्य संस्कृति


हमारे देश की जड़ों में संस्कृति और परम्परा है। लोक-साहित्य द्वारा हमें इसका ज्ञान मिलता है। इतना ही नहीं इसमें संस्कृतियों के उत्थान और पतन की गाथा भी है। 'लोक' द्वारा मनाए जाने वाले पर्व और उल्लास, लोक-नृत्य, लोक-गीत, लोक-कथाएँ, त्योहारों पर होने वाले अनेक अनुष्ठान, देवयात्राएँ, मेले, रामलीला, रास लीला, चरित्र लीला आदि से भारतीय संस्कृति सतत स्पन्दित हो रही है।