रघुवीर सहाय की राजनैतिक चेतना - Political consciousness of Raghuveer Sahai

रघुवीर सहाय की कविता राजनैतिक-सांस्कृतिक चेतना का प्रखर रूप लेकर उपस्थित होती है। उन्होंने हिन्दी कविता को राजनैतिक कविता की शक्ति संभावनाओं में ढाला तथा कविता के पुराने साँचे और ढाँचे को ध्वस्त कर उसे एक नये कलेवर में प्रस्तुत किया। उनकी कविताएँ लोकतान्त्रिक विचारधारा से अनुप्राणित हैं जिनमें समग्र जीवन को देखने, सोचने और समझने का साहस और सामर्थ्य मौजूद है। उनकी कविताओं की अन्तर्वस्तु में जीवन और जगत् के बहुआयामी परिवर्तनशील स्वरूपों की मजबूत उपस्थिति के फलस्वरूप राजनैतिक अनुभूतियाँ और मानवीय संवेदनाएँ सर्वत्र ही अनुभव की जा सकती हैं।

स्वानुभूत जीवनानुभव, लोकसम्पृक्ति और चिन्तनशीलता के कारण उनकी कविता अधिक स्थायित्व प्राप्त करती है। वस्तुतः कविता में संवेदना के ताप और भावोष्मा के समानान्तर भाव- गाम्भीर्य का भी ध्वनित होना कठिन है। अपने रचनात्मक वैशिष्ट्य के कारण रघुवीर सहाय बिना किसी वाद से बँधे भी अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थिर कर पाए हैं। ध्यातव्य है कि रघुवीर सहाय ने हरेक स्तर पर बोलचाल की अखबारी भाषा के प्रयोग से काव्यात्मकता को पूरी तरह निचोड़ने का भी साहस दिखाया है। उनकी आकांक्षाएँ निजी जीवन के लिए नहीं हैं। यही वह कारण है कि उन्होंने अपने समय की अमानवीय व तुच्छ राजनीति पर 'नये ढंग की कविता' का आविष्कार किया है । स्वभावतः वे कहते हैं-


यह नहीं हो सकता, यह नहीं होगा


शून्य में घोषणा करता है विचारक


पढ़े लिखे लोगों के बीच सिद्ध होता है


कि संवाद मर गया कर्महीन लोकतन्त्र की मदद करता है विध्वंसक लोकतन्त्र


दोनों मिलकर विचारधारा चलाते हैं कि कोई विचार नहीं हत्या ही सत्य है


हम भी भयभीत असहाय भी भयभीत है। यों कह कर भीड़ में समर्थ छिप जाते हैं।


(- आत्महत्या के विरुद्ध)


समकालीन राजनैतिक बोध


रघुवीर सहाय अपने परिवेश के प्रति सजग हैं और प्रतिबद्ध भी उनका परिवेश अधिकतया राजनैतिक सन्दर्भों से निर्मित है। काव्य को राजनैतिक दर्शन बनाना आसान है किन्तु कठिनाई राजनैतिक दर्शन को काव्य बनाने में हैं । कविता को दर्शन में बदलने के लिए परिभाषाकार की ज्ञानात्मक तथ्यात्मक सजगता अपेक्षित है, परन्तु दर्शन को कविता में बदलने के लिए संवेदनात्मक अनुभूति की गहराई अनिवार्य शर्त है। रघुवीर सहाय इस फर्क की खाई को पाटने में सामर्थ्यवान् हैं। दर्शन की उपस्थिति के आभास से जहाँ कहीं उनकी कविता सिकुड़ जाती है वहाँ भी उनका असीम चिन्तन पाठकों का ध्यानाकर्षित किये बिना नहीं रहता।

समकालीन राजनीति की नीयत को महसूस कर वे क्षुब्ध होते हैं। उनकी दृष्टि में सरकार से आशा लगाना व्यर्थ है, क्योंकि अब तक के सभी सजीले स्वप्न मिट्टी में मिल चुके हैं। हमारे राजनेता निरन्तर नारेबाज़ी करके, वायदे करके आम जनता को ठग रहे हैं। मोहभंग की भावना में उनकी संयत अभिव्यक्ति देखिए-


बीस साल,


धोखा दिया गया,


वहीं फिर मुझे, कहा जाएगा विश्वास करने को,


पूछेगा संसद में


भोला-भाला मंत्री,


मामला बताओ,


हम कार्रवाई करेंगे,


हाय-हाय करता हुआ,


हाँ-हाँ करता हुआ,


हैं हैं करता हुआ,


दल का दल,


पाप छिपा रखने के लिए,


एकजुट होगा, जितना बड़ा बल होगा,


उतना ही खायेगा देश को।


साहित्यकार के सामाजिक सरोकार गहरे होते हैं

इसीलिए प्रायः प्रत्येक संवेदनशील साहित्यकार अपने समय के राजनैतिक परिवेश से किसी न किसी रूप में प्रभावित होता ही है और उसका प्रभाव उसके रचना-कर्म में गाहे-बगाहे समाविष्ट हो ही जाता है। अपने समय की विसंगतियों को उद्घाटित करना साहित्यकार का नैतिक दायित्व भी है। रघुवीर सहाय की रचनाओं में राजनैतिक स्वार्थपरता, घोषणाबाजी, नारेबाजी, भ्रष्टाचार, झूठे आश्वासन, अनीति और अराजकता के विरुद्ध तिक्तता की पुरजोर अभिव्यक्ति मिलती है। अपने समय में जाति, भाषा, धर्म, वर्ग और क्षेत्र के दायरे में उलझे तथा राजनैतिक षड्यन्त्रों का शिकार हुए शोषित आमजन की दुरावस्था को देखकर वे बेचैन हो उठते हैं। अपने क्षोभ, रोष और आक्रोश को व्यंग्य के माध्यम से अभिव्यक्त करते हुए वे समकालीन राजनैतिक अनियन्त्रित व्यवस्था पर अत्यन्त निर्ममतापूर्वक प्रहार करते हैं-


संसद का एक मन्दिर,


दूध पिये मुँह पौंछे आ बैठे,


जहाँ किसी को द्रोही नहीं कहा जा सकता। जीवनदानी, गोददानी सदस्य तोंद सम्मुख धर बोले कविता में देश-प्रेम लाना, हरियाना प्रेम लाना, आइसक्रीम लाना ।


कोई भी संवेदनशील व्यक्ति समकालीन राजनीति से निरपेक्ष होकर नहीं जी सकता। रघुवीर सहाय की कविता में उनकी राजनैतिक चेतना पूरे साहस के साथ मुखरित हुई है।

समकालीन राजनीति में परिव्याप्त विकृति की ओर सांकेतिक व प्रतीकात्मक शब्दों में उन्होंने पाठकों का ध्यानाकर्षित किया है। बढ़ती हुई राजनैतिक अराजकता की स्थिति में समाज विकास मार्ग पर जाने की बजाय एक विचित्र आपाधापी की हालत में पहुँच गया है-


हाय-हाय करते हुए हाँ हाँ करते हुए हैं हैं करते हुए समुदाय


एक हजार लोग ध्यानमग्न सुनते हुए एक अदद रिरियाता है सियार


रघुवीर सहाय की कविता विचार एवं चिन्तन पर आधारित कविता है। वे राजनीति का सतही चित्रण नहीं करते,

बल्कि पाठक को विचारभूमि की ठोस सतह पर खड़ा करते हैं। अपने 'आत्महत्या के विरुद्ध' कविता-संग्रह उन्होंने राजनैतिक विडम्बनाओं को यथार्थतः प्रकट कर दिया है। जब राजनेताओं की अतृप्त लिप्सा और कर्त्तव्यविमुखता ने राष्ट्र को अधोगामी बना दिया है तब भला रघुवीर सहाय सदृश संवेदनशील और जागरूक कवि मौन कैसे रह सकता है ! अपनी कविताओं में राजनीति और उससे जुड़े तमाम प्रश्नों को उठाते हुए वे स्पष्ट कहते हैं-


देश पर मैं गर्व करने को कहता हूँ


उनसे जो अमीर हैं बड़े स्कूलों में पढ़े हैं पर उन्हें गर्व नहीं है गर्व है भूखे प्यासे अधपड़े लोगों में गौरव रह गया है अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में मोहरा बन कर पड़ोसी को हराने में,

यह गर्व मिटता है यदि पड़ोसी और हमारी जनता की दोस्ती बढ़ती है बड़े देशों की राजनीति करने के लिए अपनी जनता को तनाव में रखना पड़ता है।


'धूमिल' की भाँति 'लोकतन्त्र' के तमाशे को रघुवीर सहाय ने भी अनुभव किया है। विवेकशून्य और


दिशाहीन राजनीति पर उनका कटाक्ष देखिए-


हर संकट में भारत एक गाय है


ठीक समय पर ठीक बहस नहीं कर सकती राजनीति बाद में जहाँ कहीं से भी शुरू करो बीच सड़क पर गोबर कर देता है विचार ।