समाजवाद - Socialism

लोकतान्त्रिक मार्ग को अपनाकर व्यक्ति की गरिमा और सामाजिक न्याय की स्थापना करने वाली विचारधारा समाजवाद है। मुक्तिबोध मार्क्सवाद और मानवतावाद के पक्षधर हैं अतः समाजवादी दर्शन के प्रति उनका झुकाव सहज स्वाभाविक है। उन्होंने मानव कल्याण के लिए समाजवाद की स्थापना के महत्त्व को स्वीकार करते हुए अपने काव्य में पूँजीवादी व्यवस्था के नाश और आम जन समुदाय के कल्याणकारी, वर्ग- विहीन और शोषणमुक्त समाज की स्थापना को सुन्दर रूप में अभिव्यंजित किया है।


अन्ततः यह कहा जा सकता है कि मुक्तिबोध साहित्यिक परम्परा की वह कड़ी है जो अपने अन्दर तीन वाद युगीन परिवर्तन को समेटे हुए है। वे जनवादी, समाजवादी और प्रगतिशील कवि हैं जो विचारों से मार्क्सवादी हैं। उनमें इतिहास-बोध, जीवन-बोध और आधुनिक तनाव से भरा बोध एक साथ दृष्टिगत होते हैं। ये सभी बोध उनके अभ्यन्तर जगत् के संवेदनात्मक बोधों से सम्पृक्त होकर कविता के रूप में ढल गए हैं।