राजभाषा के प्रयोग की प्रगति - Progress in use of official language

राजभाषा के प्रयोग की प्रगति - Progress in use of official language

भारतीय संविधान में हिन्दी को राजभाषा के रूप में मान्यता प्रदान करते हुए यह व्यवस्था की गई कि संविधान लागू होने यानी 26 जनवरी 1950 के पन्द्रह वर्ष बाद अर्थात् 1965 ई. तक हिन्दी को पूरी तरह से राजभाषा के पद पर आसीन कर दिया जाएगा। इस सन्दर्भ में राष्ट्रपति, राजभाषा आयोग, संसद और सरकार के आदेश, सुझाव, नियम और अनुदेश जारी करके राजभाषा हिन्दी के प्रयोग को सुनिश्चित किया गया है। राजभाषा के प्रयोग की प्रगति के आलोक में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं ध्यातव्य हैं-


1. राष्ट्रपति ने वर्ष 1955 ई. में यह आदेश जारी किया कि जनता के साथ पत्र व्यवहार में, प्रशासकीय प्रतिवेदनों प्रस्तावों, सरकारी सन्धिपत्रों और करारनामों, अन्तर्राष्ट्रीय कार्यों और व्यवहारों तथा संसदीय विधियों में हिन्दी के प्रयोग को अंग्रेजी के साथ बढ़ावा दिया जाए।


ii. सांवैधानिक अनुच्छेद 344 के तहत वर्ष 1955 ई. भारत के राष्ट्रपति ने राजभाषा आयोग (21 सदस्यीय) का गठन किया।


iii. राजभाषा आयोग की अनुशंसाओं पर विचार करने के लिए संसदीय समिति का गठन हुआ।


iv. राजभाषा आयोग और संसदीय समिति की सिफारिशों के बाद राष्ट्रपति ने एक आदेश जारी किया जिसके तहत दो स्थायी आयोग बनाए गए तथा अनुवाद कार्य होने लगा और कार्मिकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित करने पर बल दिया गया।


V. राजभाषा सम्बन्धी राष्ट्रपति के आदेशों, संसद की सिफारिशों और राजभाषा अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने का उत्तरदायित्व भारत सरकार के गृह मंत्रालय को सौंपा गया। इसके लिए गृह मंत्रालय के अधीन स्वतन्त्र राजभाषा विभाग बनाया गया।


vi. राजभाषा विभाग ने राजभाषा अधिनियम, 1963 (1967 में संशोधित) से प्राप्त अधिकार के तहत राजभाषा नियम, 1976 निर्धारित किया जिसमें 12 नियम हैं जिसके तहत आज भी सरकार की द्विभाषी नीति का अनुपालन होता है।


समग्रतः देखा जाए तो राजभाषा हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए योजना-स्तर पर काफी कुछ किया जा चुका है और आज भी किया जा रहा है। हालांकि, व्यावहारिक धरातल पर परिणाम संतोषजनक नहीं माना जा सकता क्योंकि राजभाषा विभाग द्वारा जारी नियमों व आदेशों का क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो पाता है और वार्षिक कार्यक्रम प्रायः कागजों पर ही बनकर रह जाते हैं। वस्तुतः राजभाषा के रूप में हिन्दी का विकास तभी सम्भव है जब राजभाषा के रूप में हिन्दी सैद्धान्तिक व विधिक बनने के साथ-साथ व्यावहारिक भी बने।


संचार भाषा को लेकर, माध्यम की अवधारणा का समझेंगे। साथ ही जानेंगे कि माध्यम और अभिव्यक्ति के सन्दर्भों भाषा की क्या भूमिका रहती है ? तकनीकी सन्दर्भों में आपके ध्यान में यह भी आएगा कि किसी माध्यम की भाषा और किसी माध्यम में प्रयुक्त भाषा से क्या तात्पर्य है ? व्यापक सन्दर्भों में, आज का युग संचार क्रान्ति का युग है। आपके मन में प्रश्न उठा होगा कि किसी माध्यम, माध्यम में प्रयुक्त भाषा, संचार और संचार भाषा को किस तरह समझा जाए ? संचार के इस युग में भाषा की प्रयोजनमूलकता को ध्यान में रखते हुए भाषा कौशल को कैसे अर्जित किया जाए ? विश्वास है, इस पाठ में इन प्रश्नों का उत्तर पाने के साथ-साथ आपके ध्यान में यह भी आएगा कि भाषा के विभिन्न रूप किस प्रकार सक्रियता से अपनी भूमिका निभाते हैं ? और 21वीं सदी में, भाषा के सन्दर्भों में, विशेषकर हिन्दी को लेकर, राष्ट्रीय / अन्तर्राष्ट्रीय मचों पर रोज़गार के कितने क्षेत्र उपलब्ध हैं ? आइए, इस दिशा में आगे बढ़ें....