व्यक्तिक सेवा कार्य के मनोसामाजिक उपागम - Social Case Work Psychosocial Approach.

व्यक्तिक सेवा कार्य के मनोसामाजिक उपागम - Social Case Work Psychosocial Approach.
 मनोसामाजिक उपागम 

सामाजिक वैयक्तिक सेवाकार्य में ज्ञान की वृद्धि के साथ-साथ सिद्धान्तों एवं प्रत्ययों में भी परिवर्तन होता रहा है।
सन् 1937 ई0 में गार्डन हैमिल्टन ने पहला लेखा ‘बेसिक कान्सेप्ट्स इन सोशल केसवर्क’ लिखा। यही प्रत्यय आगे चलकर निदानात्मक सम्प्रदाय के नाम से जाना जाने लगा। उनके अनुसार मनोसामाजिक सिद्धान्त की प्रमुख विशेषता है। ”विचार व्यवस्था का खुलापन“ इसमें नये ज्ञान, नवीन आँकड़ों तथा नये अनुभवों के द्वारा परिवर्तन आता रहता है।  सन् 1941 ई0 हैमिल्टन का दूसरा लेख ”दि अण्डरलाइंग फिलाॅसफी आॅफ सोशल केसवर्क“ प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने निदानात्मक तथा कार्यात्मक सम्प्रदायों में अंतर स्पष्ट किया। उन्होंने अपने लेखों में मनोसामाजिक सिद्धान्त का उल्लेख किया। आज यही सिद्धान्त व्यवस्था सिद्धान्त उपागम बन गया है। इस सिद्धान्त में निदान तथा उपचार का कार्य व्यक्ति की सम्पूर्ण स्थिति का अवलोकन, निरीक्षण एवं प्रशिक्षण के बाद किया जाता है। उसकी सम्पूर्ण स्थितियों का अध्ययन किया जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार जिस व्यक्ति की सहायता करनी है, उपचार करना है, उसकी बाह्य पर्यावरण के प्रति अन्तःक्रियाओं को समझना आवश्यक होगा इसके साथ ही साथ बाह्य पर्यावरण के विशय में भी जिससे व्यक्ति सम्बन्धित है, ज्ञान प्राप्त करना होगा। यह उसका सम्पूर्ण परिवार हो सकता है, परिवार का कोई व्यक्ति विशेष हो सकता है। सामाजिक समूह, शिक्षा संस्था, कार्यस्थल या अन्य कोई सामाजिक व्यवस्था का अंग हो सकता है। मनोसामाजिक व्यवस्था का अंग हो सकता है। मनोसामाजिक सिद्धान्त का निरूपण फ्रायड के व्यक्तित्व व्यवस्था में किया गया है।


उपागम का विकास 

मनोसामाजिक उपागम का विकास मेरी रिचमण्ड के कार्यो से हुआ। उन्होंने अहं मनोविज्ञान तथा सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य में घनिष्ट संबंध स्थापित किया। धीरे-धीरे इस उपागम में सामाजिक आर्थिक घटनाओं का प्रभाव पड़ा जिसमें परिवर्तन आया। सन् 1926 ई. के लगभग फ्रायड का मनोविश्लेषण का सिद्धान्त इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण समझा जाने लगा। इसके अतिरिक्त मेरियोफेन-वर्थी न्यूयार्क स्कूल आप सोशल वर्क, बेटसेलिब्बे फेमिली सोसाइटी आॅफ फिलडेल्फिया, गार्डन हैमिल्टन, बेरथारिनोल्ड, चारलेट टावले, फ्लोरेन्सडे, फर्नलोरी, लुखले आस्टिन, एनेट गैरेट, आदि के कार्यो ने मनोसमाजिक उपागम के विकास में सहयोग दिया।

 व्यावहारिक विज्ञान आधार 

मनोसामाजिक उपागम में अनेक स्त्रोतों से तत्व लिये गये है। व्यववहारिक उपयोग के योगदान का इसमें विशेष महत्व रहा है जो लोग इस क्षेत्र में काम करते थे उनके कार्यो ने विशेष भूमिका निभायी।  वैयक्तिक कार्यकर्ताओं के व्यक्तिगत अनुभव एवं प्रयास के परिणाम स्वरूप इस सिद्धान्त का प्रतिपादन हुआ। मनोविश्लेषण सिद्धान्त का प्रभाव इस उपागम पर विशेष पड़ा। फ्रायड, अन्ना फ्रायड, एलेक्जण्डर, फ्रेन्य कार्डिनर इरिक सेन, हार्टमैन आदि के मनोविश्लेषण सम्बन्धी कार्यो ने इस उपागम के विकास में सहयोग दिया। मनोवैज्ञानिकों में पाइगेट का नाम प्रमुख है। डोलार्ड, आलपोर्ट, मरे आदि के विचारों को भी सम्मिलित किया गया है। गैस्टाल्ट मनोविज्ञान के विचारों को इसमें महत्व दिया गया। सामाजिक विज्ञानों का भी इस उपागम पर विशेष प्रभाव पड़ा। परिवार के महत्व का ज्ञान, बालक के पालन पोषण पर सामाजिक कारकों का प्रभाव, वैवाहिक तथा लैंगिक व्यवहार समबन्धी सामाजिक विचारों की सहायता की। सांस्कृतिक मानव विज्ञान का उपयोग व्यक्तित्व को समझने में किया गया। भूमिका व्यवहार के ज्ञान को भी सम्मिलित किया गया।


  मनोसामाजिक उपागम के मूल्य  

इस उपागम के निम्नलिखित महत्वपूर्ण मूल्य है:- 

1.  सेवार्थी की स्वीकृति: कार्यकर्ता सेवार्थी की सहायता उसके हित तथा कल्याण के लिए करता है। उसको महत्व देता है तथा उसकी भावनाओं का आदर करता है। 

2.  सम्बन्ध सम्मान केन्द्रित होता है। सेवार्थी की आवश्यकताएँ महत्वपूर्ण होती है।

 3.  कार्यकर्ता जहाँ तक सम्भव होता है विषयात्मक रूप से सेवार्थी की समस्या का मूल्यांकन करता है। व्यक्तिगत भावनाओं को इससे दूर रखता है। 

4.  सेवार्थी को अपना स्वयं निर्णय लेने का अधिकार होता है तथा उसमें आत्म- निर्देशन शक्ति को विकसित करने का प्रयास किया जाता है।

 5.  कार्यकर्ता अपने सेवार्थी तथा अन्य की अन्र्तनिर्भरता को स्वीकार करता है और विश्वास करता है कि कभी-कभी आत्म निर्देशन की सीमा को कम करना आवश्यक होता है जिससे दूसरों को तथा सेवार्थी को हानि न हो सके।


मनोविश्लेषणात्मक उपागम

 मनोविश्लेषणात्मक उपागम फ्रायड के व्यक्तित्व के सिद्धान्त पर आधारित है। फ्रायड ने अपने विचारों का प्रतिपादन करते हुए बताया कि व्यक्तित्व के विकास में किस प्रकार व्यक्तितत्व के विभिन्न अंग/भाग आपस में संघर्ष करते है। इड अहम और पराहम को व्यक्तित्व की एक स्थिति संरचना के रूप में देखा गया है। फ्रायड का मत है कि संघर्ष का उपचार तभी हो सकता है जब व्यक्ति के ’अचेतन‘ मन को प्रकट किया जाये और संघर्ष के सभी पक्षों को चेतन मन के स्तर पर सामने लाया जाये।  फ्रायड का मत है कि दमन ही व्यक्तित्व- संबंधी समस्याओं की सबसे बड़ी घटना है। इसलिए चिकित्सक का मौलिक चिकित्सा सम्बन्धी कार्य इन्हीं दमित भावनाओं/आवश्यकताओं/समस्याओं से भुगतना है। फ्रायड ने इस सिद्धान्त के प्रतिपादन में यौन-मूल प्रवृत्ति को केन्द्रीय स्थान दिया है।