अफ़गान राजत्व का सिद्धान्त - Principle of Afghan Monarchy
अफ़गान राजत्व का सिद्धान्त - Principle of Afghan Monarchy
बहलोल अफ़गान जाति का था। अफ़गानों की कबाइली राजनीतिक अवधारणा में
विश्वास करता था। शासक की पूर्ण सम्प्रभुता और उसकी निरंकुश शक्ति में अफगानों की
आस्था नहीं थी। उनका विश्वास शासक अथवा मुखिया के चुनाव में था न कि राजत्व के
दैविक सिद्धान्त और वंशानुगत शासन की अवधारणा में अपनी कबाइली संस्कृति में
विश्वास रखते अफ़ग़ानों के विभिन्न कबीले, शासक को अपनी बिरादरी का मुखिया
मानते थे न कि अपना स्वामी बलबन, अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद
तुगलक के राजत्व के दैविक सिद्धान्त के विपरीत, सुल्तान
बहलोल लोदी अफगानों के कबाइली और कुनबे की राजनीतिक अवधारणा में विश्वास करता था।
बहलोल ने कभी भी एक स्वेच्छाचारी, निरंकुश एवं
पूर्णसम्प्रभुता प्राप्त शासक की भांति व्यवहार नहीं किया। वह स्वयं को राज्य संघ
का प्रमुख मात्र मानता था। उसने अपने पुरखों के स्थान रोह से अपने कबीले वालों को
अपने राज्य में आने के लिए निमन्त्रित किया था। अपनी बिरादरी के अमीरों को उसने
अपनी बराबरी का दर्जा दिया और सल्तनत में उनको अपना हिस्सेदार माना। उनके रुठने पर
उनको मनाने के लिए उनके घर तक जाने में उसे कोई ऐतराज़ नहीं था और उनके साथ एक ही
मसनद पर बैठने में उसे कोई संकोच नहीं था। उसने अपने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों
को अपने सम्बन्धियों और अपने अमीरों में बांटने का निर्णय लिया था।
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