बाल न्यायालयों की विशेषताएँ - Characteristics of Child Courts


        अपनी विशेषताओं के आधार पर इस प्रकार के न्यायालय उन न्यायालयों से भिन्न होते हैं जहाँ पर वयस्क व्यक्तियों के मुकदमों की सुनवायी होती है जो इस प्रकार है : 



(1) बाल न्यायालय उस प्रकार का न्यायालय है जिसमें बाल तथा तरुण आयु के युवकों के मुकदमों की सुनवायी एक विशेष विधि से की जाती है। 



(2) इस प्रकार के न्यायालयों के मजिस्ट्रेट से यह आशा की जाती है कि वे अपने सामने प्रस्तुत किये गये बालकों के लिए मार्ग दर्शक की भूमिका अदा करें। 



(3) इनमें उन बालकों की जिनकी अवस्था 7 वर्ष से 16 वर्ष 18 या 21 वर्ष,
तक की है, के अपराधी व्यवहार एवं अन्य असामाजिक कृत्यों से सम्बन्धित मामलों का निर्णय एक विशेष कानून बाल अधिनियम की धाराओं के आधार पर किया जाता है जो या तो पूर्व बाल अपराध की अवस्था से गुजर रहे हैं या उनमें अपराधी प्रवृत्ति का विकास हो रहा है या कोई अपराध कार्य कर रहे हैं। 



(4) इस प्रकार के न्यायालयों में मजिस्ट्रेट नियुक्त होने के लिए आवश्यक नहीं है कि बड़े विधि विशेषज्ञ हों। नियुक्ति उन व्यक्तियों की होती है जो कानून के ज्ञान के साथ-साथ मानव स्वभाव ताकि मानव समायोजन की समस्याओं की उत्पत्ति सम्बन्धी सिद्धान्तों से भली भांति अवगत हों तथा उन्हें बाल कल्याण के क्षेत्र में दक्षता प्राप्त हो। 



(5) इन न्यायालयों में आवश्यक नहीं है कि दोषी ठहराये गये बालकों को दण्ड दिया जाय। इसके विपरीत इन न्यायालयों से यह आशा की जाती है कि वे बालकों के सुधार के लिए सेवाएँ आयोजित करने में सहायक सिद्ध होंगे तथा बालकों की देख-रेख, सुरक्षा, कल्याण तथा शिक्षा सम्बन्धी संस्थागत तथा संस्कारिक कार्यक्रमों की प्राप्ति संभव करा सके, जो उपेक्षित है। 



(6) इन न्यायालयों में अपराधी तथा असामाजिक व्यवहार प्रदर्शित करने वाले बालकों से सम्बन्धित शिकायतों का निर्णय पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर नहीं किया जाता है। पूरी वैधानिक प्रक्रिया, उपचारात्मक तथा सुधारात्मक कार्यवाही का आधार होती है परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट, जो बालक के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक तथा पारिवारिक वातावरण सम्बन्धी कारकों का अध्ययन, निरीक्षण तथा मूल्यांकन बड़ी सावधानी तथा कुशलता से की जाती है। 



(7) जिस समय तक बालक के बारे में सामाजिक जाँच परिवीक्षा अधिकारी के द्वारा होती है
उस अवधि में उसे जेल में न रखकर उन पर्यवेक्षण गृहों में रखा जाता है जहाँ उनकी सुरक्षा के साथ-साथ स्वच्छ वातावरण तथा स्वास्थ्यप्रद रहन सहन का अवसर प्रदान होता है। 



(8) इन न्यायालयों को अपने निर्णय देने में बड़ा विवेकाधिकार प्राप्त होता है। न्यायालय मुकदमों को रदद कर सकता है, बालक तथा उसके माता-पिता को चेतावनी दे सकता है। उन पर फाइन कर सकता है, उन्हें किसी सुधार कार्य करने वाली संस्था की देख रेख में रहने का आदेश दे सकता है या उन्हें बाल सुधार संस्थाओं में रखे जाने का निर्णय दे सकता है।