संस्कृत व्याकरण में घोष महाप्राण व्यंजन-
घोष
महाप्राण व्यंजन- चौथे कालम के व्यंजनों (ध
झ द ध भ) का उच्चारण तीसरे कालम के व्यंजनों के समान होता है पर इनके उच्चारण
में स्वरतंत्रियों में कंपन के साथ हवा विशेष बल के साथ बाहर निकलती है। ये व्यंजन
महाप्राण और घोष दोनों है। निम्नलिखित शब्दों को पढ़िए
भगिनी
बहिन, नाभिः घट:-घडा, अधुना-अब, दधि-दही।
नासिक्य
व्यञ्जन-सारणी के अन्तिम कालम के पाँचो व्यंजनों (ड ञ ण न म) का उच्चारण
उन्हीं स्थानों से होता है जहाँ से उस पर्ग के अन्य व्यंजनों का,
किन्तु उनके उच्चारण में हया मुख के साथ नाक से भी निकलती है। इनको
नासिक्य व्यंजन कहते हैं। निम्नलिखित शब्दों को पदिए:
माता,
जनः, नमः, कणः, मान:, तमः. मम, नाम, न।
टिप्पणी-
नासिक्य व्यंजनों (ड ज ण न म) को पंचमाक्षर भी कहते है क्योकि ये अपने-अपने
वर्ग के पांच अक्षर है।
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