संगठन का एस० डब्ल्यू० ओ० टी० विश्लेषण - SWOT analysis of the organization
संगठन का एस० डब्ल्यू० ओ० टी० विश्लेषण (SWOT analysis of the organization)
प्रबन्ध की प्रक्रिया: प्रबन्ध के कार्यों को पांच मुख्य अवयवों में विभाजित किया जा सकता- नियोजन, संगठित करना, कर्मचारियों की नियुक्ति, दायित्वों का निर्धारण एवं समन्वयन या नियंत्रण।
नियोजन किसी संगठन के लिए नियोजन करते समय हमें उसके दीर्घकालिक दृष्टिकोण, उद्देश्य एवं मूल्यों को ध्यान में रखना चाहिए। नियोजन करते समय हमें यह भी दृष्टिगत रखना चाहिए कि क्या किया जाना चाहिए, किसके द्वारा किया जाना है, कहा किया जाना है, कब और कैसे करना है।
नियोजन करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
● योजना के विभिन्न अवयवों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना आवश्यक है साथ ही यह भी देखना चाहिए कि उसे किस प्रकार लागू किया जा सकता है।
● योजना के अंतर्गत लक्ष्यों का निर्धारण इस प्रकार हो कि वे वास्तविक रूप से प्राप्त किए जा सकें।
● योजना हेतु उपलब्ध धन एवं व्ययों की मद को ध्यान से देखें ।
● योजना के क्रियान्वयन में लगे लोगों की पर्याप्त भागीदारी सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है साथ ही उनके दायित्वों का निर्धारण भी भली-भांति किया जाना चाहिए।
●उन क्षेत्रों की भी पहचान करना आवश्यक है जिन्हें सशक्त करने की आवश्यकता है।
● योजना के क्रियान्वयन के प्रत्येक स्तर का मूल्यांकन करना भी आवश्यक है।
नियोजन प्रबंधन में कर्मचारियों, दायित्वों का आंबटन, समूह कार्य दायित्वों का निर्वहन, वित्त, समन्वयन, नियंत्रण निगरानी आदि का ध्यान रखा जाता है। रणनीतिक नियोजन में लक्ष्य काफी महत्वपूर्ण होते हैं अतः लक्ष्य ऐसे निर्धारित किए जाने चाहिए जिनको अवलोकित किया जा सके, मापा जा सके तथा जिनकी पूर्ति हो सके।ये लक्ष्य विशिष्ट होने चाहिए लक्ष्यों का निर्धारण समय अवधि को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए। संगठित करना योजना तैयार करने के उपरान्त उसके कार्यान्वयन के लिए यह आवश्यक है कि प्रबन्धक स्वयं एवं अपने दल को संगठित करें। इसके लिए उसे अपने दल के विभिन्न सदस्यों के बीच समन्वय करना आवश्यक है। इसके लिए वह अपने दल के सदस्यों को जिम्मेदारी का आवंटन एवं उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना है । साथ ही साथ उनके समक्ष आने वाली दिक्कतों का सुलझाव भी करने का प्रयास वह करता है। इस प्रकार दल के नेतृत्व की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है कि वह किस प्रकार संगठन के लक्ष्य की पूर्ति के लिए अपने दल के सदस्यों को अधिकतम प्रोत्साहित एवं प्रशस्त करता है दायित्वों का निर्धारण:- दायित्वों का निर्धारण किस प्रकार किया जाए यह प्रबन्धक के
लिए आवश्यक कुशलता है दायित्वों के निर्धारण के लिए आवश्यक है कि कार्यकर्ता को पर्याप्त सत्ता एवं दायित्व होना चाहिए जिससे वह उसे दिए गए लक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति कर सके। साथ ही उसे कुछ सीमा तक यह आजादी भी होनी चाहिए कि लक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति किस प्रकार करनी है तथा किस संसाधन का उसे आवश्यक रूप से उपयोग करना चाहिए। कभी-कभी प्रबन्धक दायित्वों एवं शक्तियों को दूसरों को हस्तांतरित करने में दिक्कत महसूस करते हैं क्योंकि वे सफलता के फलस्वरूप मिलने वाले पुरस्कार को दूसरों से साझा नहीं करना चाहते । कभी-कभी प्रबन्धक को दूसरों की क्षमताओं पर विश्वास नहीं हो पाता है तब भी वह समूह के दूसरे सदस्यों को दायित्व एवं शक्तियां देने में संकोच करता है परन्तु यदि हम समूह के सदस्यों पर विश्वास कर उन्हें दायित्व एवं उससे जुड़ी शक्तियों को प्रदान करते हैं तो समूह के कार्य की प्रभाविता बढ़ जाती है ।
दायित्वों का निर्धारण / आबंटन करते समय ध्यान रखने योग्य मुख्य बातें निम्न हैं:
1) प्रत्येक व्यक्ति को एक काम सौंपना चाहिए इससे व्यक्ति को दायित्व का बोध होता है और वह प्रेरित होता है ।
2) दल के प्रत्येक सदस्य की दक्षता को समझते हुए उपयुक्त व्यक्ति को उपयुक्त कार्य देना चाहिए ।
3) प्रबंधक को अपनी अपेक्षाओं के बारे में स्पष्ट होना चाहिए कि वह क्या चाहता है, कितने समय में चाहता है ?
4) योजना की प्रगति की निगरानी निरंतर करते रहना चाहिए तथा यदि आवश्यक हो तो उसमें जरूरी संशोधन इत्यादि भी करना चाहिए।
5) अगर कोई कार्य संतोषजनक तरीके से नहीं कर पा रहा है तो उससे काम नहीं वापस लेना चाहिए बल्कि कोशिश करनी चाहिए कि कैसे प्रबंधक उसे मदद कर सकता है या किसी योग्य व्यक्ति को उसके साथ काम पर लगा सकता है।
6) मूल्यांकन एवं अच्छा कार्य करने वाले को पुरस्कृत भी करना चाहिए ।
समन्वय संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु यह आवश्यक है कि उसके सदस्यों के बीच पर्याप्त समन्वय हो।
संगठन के समन्वय की कुछ प्रमुख पद्धति निम्न हैं:
1) प्रशासनिक स्तर पर यह आवश्यक है कि सूचनाओं को भली-भांति एवं व्यवस्थित रूप से संग्रहीत किया जाए। ये सूचनाएं विभिन्न रूप से हो सकती हैं जैसे वित्तीय रिपोर्ट प्रोजेक्ट रिपोर्ट, स्थिति रिपोर्ट आदि इनके माध्यम से यह निगरानी करना सम्भव हो जाता है कि क्या किया जा रहा है, एवं कब और कैसे किया गया ?
2) वित्तीय प्रबंधन : किसी परियोजना में वित्तीय प्रबंधन भी महत्वपूर्ण है। किसी भी संगठन के लिए वित्तीय नियंत्रण महत्वपूर्ण है, चाहे वह लाभकारी एवं गैर लाभकारी किसी भी प्रकृति का हो कुछ दस्तावेज जैसे बैलेंस शीट, आय एवं नगद प्रवाह से संबंधित दस्तावेज महत्वपूर्ण है। वित्तीय अंकेक्षण भी नियमित होना चाहिए जिससे संगठन की वित्तीय स्थिति का आकलन संभव हो सके 3) किसी भी संस्था के लिए नीति एवं प्रक्रियाएं भी अत्याधिक उपयोगी होती हैं ।
संगठन की नीति यह सुनिश्चित करती है कि उसके कर्मचारी सरकारी एवं वैधानिक प्रक्रिया के तहत काम करे।
वार्तालाप में शामिल हों