शोध में द्वितीयक तथ्य की सीमाएं - Secondary source of Data Limitations
शोध में द्वितीयक तथ्य की सीमाएं - Secondary source of Data Limitations
यद्यपि द्वितीयक सामग्री में कई लाभ निहित हैं तथापि इसकी कुछ सीमाएं भी हैं -
1) विश्वसनीयता का अभाव -
द्वितीयक सामग्री के संकलित स्रोत अविश्वासनीय हो सकते है क्योंकि प्रलेखों की निष्पक्षता और शुद्धता के बारे में स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता।
2 ) पुनर्परीक्षण कठिन-
द्वितीयक सामग्री की पुनर्परीक्षा करना असंभव होता है क्योंकि तथ्य शोधकर्ता की इच्छानुसार घटित नहीं होते हैं और न ही भूतकालीन तथ्यों की पुनर्परीक्षा करपाना संभव है।
3) कल्पना का आधार -
इनके अंतर्गत तथ्यों का विवरण उपकल्पनाओं के आधार पर भी प्रस्तुत किया जा सकता है।
4) लेखक की अभिनति-
द्वितीयक सामग्री का संकलन लिखित स्रोत के आधार पर किया जाता है और यदि लेखक किसी व्यक्तिगत दृष्टिकोण से प्रभावित हो तो प्रलेखों की त्रुटियों से प्रामाणिक नहीं रह जाएगा।
5) सरकारी सामग्री में सदैव विश्वसनीयता का न होना-
कभी-कभी सरकारी सामग्री में भी त्रुटिपूर्ण विवरण होते हैं।
6 ) अपर्याप्त सूचना -
सामान्यतः द्वितीयक सामग्री अपर्याप्त होती है क्योंकि इसका संकलन न ही शोध के उद्देश्य से किया जाता है और ना ही इसका संकलन शोधकर्ता द्वारा किया जाता है। बहुत सी सामग्री काल्पनिक स्रोत से भी रचित हो सकती है।
7) गोपनीय अभिलेख अनुपलब्ध-
इसके अंतर्गत गोपनीय अभिलेख उपलब्ध नहीं हो पाते इसलिए अभीष्ट सूचना की प्राप्ति कठिन हो जाती है।
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