सहानुभूति - अर्थ, परिभाषा, प्रकार, कारक, महत्व एवं स्वरूप | Sympathy - Meaning, Definition, Types, Factors, Significance and Structure

सहानुभूति - अर्थ, परिभाषा, प्रकार, कारक, महत्व एवं स्वरूप | Sympathy - Meaning, Definition, Types, Factors, Significance and Structure

 सहानुभूति - अर्थ, परिभाषा, प्रकार, कारक, महत्व एवं स्वरूप | Sympathy - Meaning, Definition, Types, Factors, Significance and Structure

सहानुभूति (Sympathy) अर्थ एवं स्वरूप 

जब हम दूसरे के दुख से स्वयं दुखी होकर उसके प्रति दया का भाव अभिव्यक्त करते हैं तो के इसे साधारणतः सहानुभूति की संज्ञा दी जाती है। व्यापक अर्थ में सहानुभूति से मतलब समान भावना के संचार या संप्रेषण से होता है। यह समान भाव सिर्फ देया या दुख का ही नहीं होता है बल्कि क्रोध, द्वेष, घृणा का भी हो सकता है। उदाहरण के लिए हम अपने मित्र के दुश्मन के प्रति क्रोध, घृणा तथा दुद्वेष व्यक्त कर मित्र के प्रति सहानुभूति प्रकट कर सकते हैं। एक बन्दर को संकट में फंसा देखकर अन्य सारे बन्दर इकट्ठा हो जाते हैं। एक

कौवे के बीमार हो जाने पर बहुत सारे कौवे इकट्ठा हो जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वे सहानुभूति में एकत्र होते हैं।

परिभाषाएं

मैकडुगल के अनुसार:-“साधारण अर्थों में सहानुभूति एक प्रकार की कोमलता है। जो उस व्यक्ति के प्रति होती है, जिसके साथ सहानुभूति प्रकट की जाती है। दूसरे के दुख में दुखी होना या दूसरे किसी व्यक्ति या प्राणी में एक विशेष भावना या संवेग को देखकर अपने में भी उसी तरह विशेष भावना या संवेग को देखकर अपने में भी उसी तरह की भावना या संवेग का अनुभव करना ही सहानुभूति है। "

जेम्स ड्रेवर के अनुसार:-"दूसरे के भावों एवं संवेगों के स्वाभाविक अभिव्यक्तपूर्ण चिन्हों को देखकर उसी प्रकार के भावों एवं संवेगों को अपने में अनुभव करने की प्रवृति को सहानुभूति कहते हैं।"

संक्षेप में सहानुभूति का अभिप्रायः ऐसे मनोभाव से होता है जिसमे व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के अनुरूप भावना या संदर्भ की अनुभूति करता है। उदाहरणतया एक स्त्री के रोने का विलाप करने पर दूसरी स्त्री के भी आंखों में आंसू आना है। यह उसकी शारीरिक अभिव्यक्ति से प्रमाणित होता है। इस प्रकार कई अच्छी विशेषताओं को व्यक्ति मे सहानुभूति द्वारा विकसित किया जा सकता है। सहानुभूति में दो पक्ष होते हैं एक पक्ष सहानुभूति दिखाने वाला तथा दूसरा पक्ष सहानुभूति प्राप्त करने वाला होता है। सहानुभूति में व्यक्ति के संवेगों एवं भाव की प्रधानता उसकी क्रियाओं एवं व्यवहारों से अधिक होती है। सहानुभूति में सहानुभूति प्रकट करने वाले व्यक्ति में ठीक उसी तरह का संवेग या भाव उत्पन्न होता है जिस तरह का भाव या संवेग सहानुभूति प्राप्त करने वाला व्यक्ति दिखलाता है।

 

सहानुभूति के प्रकार (Types of Sympathy)

सक्रिय सहानुभूति (Active Sympathy) यदि किसी की दशा देखकर उसकी सहायता आगे बढ़ कर की जाती है या उसके साथ सहयोग किया जाता है तो उसे सक्रिय सहानुभूति कहते हैं। जैसे किसी को रोता हुआ देखकर उसे चुप कराना, दुर्घटना में घायल व्यक्ति के कष्टों का अनुभव करते हुए कोई व्यक्ति अस्पताल तक ले जा कर उसकी चिकित्सा में मदद करना, किसी भिखारी की दयनीय दशा को देखकर एवं उसके शारीरिक कष्टों का अनुभव करते हुए उसे खाने के लिए भोजन तथा पहनने के लिए वस्त्र देना।

निष्क्रिय सहानुभूति (Passive Sympathy) यदि किसी के साथ सहानुभूति अनुभव की जाय परन्तु कुछ कियो न जाय तो इसे निष्क्रिय सहानुभूति कहते हैं। यह भावना प्रधान होती है। तात्पर्य यह है कि निष्क्रिय सहानुभूति भावना प्रधान, मौखिक तथा क्रिया रहित होती है। जैसे कोई व्यक्ति भिखारी की दयनीय दशा देखकर कहता है कि उसे ऐसी दशा में कितनी तकलीफ होती होगी, परन्तु उसकी तकलीफ दूर करने का कोई उपाय नहीं करता है।

 





व्यक्तिगत सहानुभूति ( Personal Sympathy)

किसी व्यक्ति या प्राणी विशेष को कष्ट में देख कर उसके प्रति सहानुभूति प्रदर्शित की जाती है तो उसे व्यक्तिगत सहानुभूति कहते हैं। जैसे किसी कराह रहे व्यक्ति के प्रति हमदर्दी प्रकट करना। 

सामूहिक सहानुभूति (Collective Sympathy) लोगों में किसी किसी समूह को कष्ट में देखकर उनके प्रति सहानुभूति की अनुभूति सामूहिक सहानुभूति कही जाती है। जैसे-शरणार्थियों के शिविर को देखकर पीड़ा अनुभव करना।

 


सहानुभूति उत्पन्न करने वाले कारक या परिस्थितियां: 

आलपोर्ट ने प्रमुख ऐसे कारक जिनसे व्यक्ति में सहानुभूति उत्पन्न होती है। भावनाओं का पूर्व अनुभव:- व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की भावना से तभी सहानुभूति रख सकता है जब उसने स्वंय स्वतंत्र रूप से भावना का अनुभव किया हो। व्यक्ति अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति कुछ विशेष शारीरिक मुद्राओं जैसे रोने, हंसने, चिल्लाने आदि द्वारा करता है। जैसे जब हम किसी व्यक्ति के रोने तथा कराहने की आवाज सुनते हैं। तो समझ लेते हैं कि वह दुखी है।


वर्तमान परिस्थिति के स्वरूप का ज्ञान:- सहानुभूति उत्पन्न करने के लिए यह भी आवश्यक है कि सहानभूति प्राप्त करने वाले व्यक्ति की वर्तमान परिस्थिति के स्वरूप या प्रकृति का भी ज्ञान हो। जैसे- जब हम किसी औरत की रुलाई सुनते हैं तो हमें उसके प्रति उतनी सहानुभूति नही होती जितनी की जब हम यह जान लेते हैं कि उसके रोने का कारण उसके पति का देहान्त हो जाना है।




 

कल्पनाशक्ति:- सहानुभूति का उत्पन्न होना व्यक्ति की कल्पना शक्ति पर निर्भर करता है। जिस व्यक्ति में जितनी ही अधिक कल्पना शक्ति होगी, उसमें दूसरों की भावनासंवेगों एवं परिस्थितियों के संबंध में कल्पना करने की तत्परता उतनी ही अधिक होगी। परिस्थिति के प्रति अभिरुचि की समानता:- सहानुभूति उत्पन्न करने के लिए यह भी जरूरी है जिस परिस्थिति में सहानुभूति उत्पन्न होनी है, उनमें दोनों पक्षों की समान अभिरूचि हो। जैसे यदि कोई व्यक्ति का स्वरूप इस ढंग का है कि वह बच्चों से काफी घृणा करता है तो उसमें उस औरत के प्रति भी कोई सहानुभूति नही होगी, जिसके बच्चे मृत्यु हो गयी है।

 

सहानुभूति का महत्व

सामाजिकता (Sociability) सहानुभूति की प्रवृत्ति व्यक्ति में सामाजिकता, मिलनसारिता, मैत्रीभाव, सामूहिकता, एकता तथा संगठन की भावना पैदा करती है। (मैक्डूगल, 1914).

मानवता (Humanity) सहानुभूति की भावना से व्यक्ति में मानवता बढ़ती है और वह दूसरे की सहायता तथा सेवा को महत्व देने लगता है। वह किसी को कष्ट पहचाना अनुचित मानने लगता है। उसमें परिवार की भावना बढ़ती है। यही प्रवृत्ति लोगों को गरीब, यतीमोंविकलांगों की सेवा के लिए प्रेरित करती है।

आक्रामकता में कमी (Reduction in Aggression) सहानुभूति की भावना व्यक्ति में हिंसा, आक्रामकता तथा शोषण की प्रवृत्तिको नियंत्रित करती है। सहानुभूतिपूर्ण भावना से प्रभावित व्यक्ति दूसरों के दुख से उसी तरह दुख अनुभव करता है जैसे कि वह स्वयं के दुख से कष्टित अनुभव करता है।

भेदभाव में कर्मी (Reduction in Discrimination) सहानुभूति सामाजिक एवं प्रजातीय भेदभाव कम करने में सहायक है। जिनमें यह प्रवृत्ति प्रवल रूप में पाई जाती है वे जाति धर्म या भाषा के आधार पर लोगों में भेदभाव नहीं करते हैं।





संक्षेप में हम यही कह सकते हैं कि सुझाव अनुकरण और सहानुभूति ये तीनों मूल प्रवृत्तियां ही सामाजीकरण का आधार है। सामाजीकरण की प्रक्रिया में सुझाव, अनुकरण तथा सहानुभूति घनिष्ठ रूप से परस्पर जुड़कर दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच अंतःक्रिया का कार्य सम्पादित करवाती है। सामाजिक जीवन में सुझाव व्यक्ति के व्यवहार को बदलने का महत्वपूर्ण तरीका है। इसके माध्यम से व्यक्ति के व्यवहार को

बनाया, बिगाड़ा तथा फिर बनाया जा सकता है। अनुकरण का भी सामाजीकरण के अतिरिक्त व्यक्तित्व विकास में बहुत महत्व है। इसी प्रकार सहानुभूति भी सामाजिक जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। चाहे मानव जगत हो या पशु जगत इनमें अनुकरण तथा सहानुभूति की प्रक्रिया न हो और मनुष्य सुझाव की प्रक्रिया से अछूता रहे तो सामाजिक जीवन का आनंद समाप्त हो जायेगा और सम्पूर्ण जीवजगत के विकास की प्रक्रिया रूक जायेंगी।