साक्ष्य - Evidence

साक्ष्य - Evidence

साक्ष्य - Evidence

तथ्य को इतिहास की रीढ़ माना गया है। कोई तथ्य ऐतिहासिक तथ्य है अथवा नहीं, इसकी जाँच इतिहासकार साक्ष्यों के प्रकाश में करता है। अतः वे सभी तथ्य जो एक तथ्य को ऐतिहासिक तथ्य प्रमाणित करने के लिए उपयोग में लाए जाते हैं, साक्ष्य कहलाते हैं। तथ्य की व्याख्या के लिए साक्ष्य अत्यंत आवश्यक है। कॉलिंगवुड के अनुसार साक्ष्य पर आधारित इतिहास अतीत का विज्ञान है।





जे. एच. हेक्सटर के अनुसार साक्ष्य रूपी तथ्यों की व्याख्या के अभाव में इतिहास को वैज्ञानिक विधाओं से अलकृत नहीं किया जा सकता। अतः यह एक इतिहासकार का उत्तरदायित्व है कि प्राप्त तथ्यों की पुष्टि साक्ष्यों से करे।


इतिहास लेखन में साक्ष्यों का प्रयोग आज के वैज्ञानिक युग में समय की माँग है। हमारा समाज इतिहास में सत्यता की प्रस्तुति चाहता है क्योंकि सत्यता हो इतिहास की सर्वोत्तम कसौटी है। इस दृष्टि से इतिहासकार का दायित्व और बढ़ जाता है कि वह अपने इतिहास लेखन में उपलब्ध ऐतिहासिक तथ्यों की व्याख्या में अधिक से अधिक साक्ष्यों का प्रयोग करे।


साक्ष्य का शाब्दिक अर्थ है प्रमाण काल, व्यक्ति स्थान एवं घटना का उपयोग करके जब इतिहास लिखा जाता है तो सत्य के प्रमाणन हेतु साक्ष्य की आवश्यकता होती है। इतिहास में भूतकालिक घटनाओं का अध्ययन किया जाता है। भूतकाल का व्यक्ति स्थान एवं पटना हमारे समक्ष प्रत्यक्षदर्शी नहीं होती अत: इतिहासकार को इतिहास लेखन में अतीत के तथ्य एकत्रित करने होते हैं और इन तथ्यों की वास्तविकता की जाँच हम साक्ष्यों द्वारा करते हैं। किट्सन क्लार्क ने भी तथ्यों की पुष्टि साक्ष्यों द्वारा करने पर बल दिया है।






ऐतिहासिक तथ्यों की सत्यता की पुष्टि यथासंभव पुरातात्विक साक्ष्यों द्वारा की जानी चाहिए। प्राचीन भारतीय इतिहास के संदर्भ में तो पुरातात्विक स्रोतों की बहुलता के कारण यह पुष्टि संभव है किंतु मध्यकालीन एवं आधुनिक भारतीय इतिहास के संदर्भ में हमें पुरातत्व के अतिरिक्त अन्य साक्ष्यों का भी उपयोग करना पड़ता है। इसीलिए कॉलिंगवुड ने लिखा है यद्यपि अतीत का पुनरीक्षण संभव नहीं है . फिर भी वर्तमान में अतीत के साक्ष्य जैसे पुस्तकों, पाण्डुलिपियों, सिक्कों तथा अन्य संसाधनों के रूप में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। इन्हीं साक्ष्यों के आधार पर इतिहासकार अतीत की पुनर्रचना करते हैं जिसकी पुष्टि प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष साक्ष्यों द्वारा होती है।"


पुरातात्विक सामग्री को साक्ष्य के रूप में प्रयुक्त करना इसलिए अत्यधिक विश्वसनीय है क्योंकि पुरातात्विक सामग्री की सत्यता हम वैज्ञानिक विधियों से जाँच सकते हैं। कोई सामग्री कितनी पुरानी है? यह काल निर्धारण की C-14 विधि से पता लगाया जा सकता है और इस प्रकार इतिहास के क्षेत्र में होने वाली किसी भी जालसाजी को रोका जा सकता है। मुगलकालीन चित्रों में इस प्रकार की जालसाजियाँ अक्सर सुनाई देती हैं। इस प्रकार की जालसाजियों को पकड़ने में इतिहासकार को अपने अनुभवों के साथ-साथ सत्यान्वेषक की भूमिका का भी निर्वाह करना पड़ता है।








इतिहासकार यद्यपि साक्ष्यों के प्रयोग एवं अपने निष्कर्षो में स्वतंत्र होता है तथापि उसकी अंतचेतना तथा समसामयिक रुचि उसे बहुत बहुत कुछ नियंत्रित भी करती है। इतिहासकार अपने साक्ष्यों के प्रयोग में कबूतरी सुराख पद्धति प्रश्नोत्तर पद्धति एवं कथन व साक्ष्य पद्धति का प्रयोग कर तथ्य की गहराई तक जाता है। इन पद्धतियों के प्रयोग में वह अधिकांशतः वैज्ञानिक प्रविधि का भी प्रयोग करता है. ताकि वह अपने निष्कर्ष भी वैज्ञानिक विधि द्वारा प्रस्तुत कर सके। उपरोक्त सभी पद्धतियों के प्रयोग से साक्ष्यों का इतिहास लेखन में प्रयोग करने से इतिहासकार द्वारा लिखित इतिहास की प्रामाणिकता बढ़ जाती है क्योंकि सत्यता हो इतिहास की सर्वोत्तम कसौटी होती है।