तथ्य - Fact

Fact

तथ्य - Fact

तथ्य इतिहास की आत्मा है। तथ्य इतिहास के लिए उसी तरह आवश्यक है जिस प्रकार जीवन के लिए साँसा इतिहासकार जब भी इतिहास लेखन के लिए विषय का चयन करता है तभी से वह तथ्यों का संकलन आरंभ कर देता है। सत्यता इतिहास की सर्वोत्तम कसोटी है और ऐतिहासिक सत्यता तभी संभव है अब इतिहास तथ्यों पर आधारित हो। इसीलिए इतिहासकार को इतिहास लेखन हेतु तव्यों का संकलन बड़े पैमाने पर करना होता है।






तथ्यों के संकलन के पश्चात् अपने विषय के अनुसार इतिहासकार को तथ्यों का चयन करना पड़ता है। तथ्यों के संकलन की तुलना में तथ्यों के चयन में इतिहासकार अपने विवेक एवं कौशल का अधिक उपयोग करता है अतः तथ्यों का चयन आसान कार्य नहीं है। अपने द्वारा एकत्रित सभी तथ्यों को पूर्णतः जाँचने एवं परखने के बाद ही इतिहासकार अपनी आवश्यकतानुसार तथ्यों का चयन करता है। अतः तथ्यों का उचित संकलन एवं चयन सत्य एवं प्रमाणित इतिहास लेखन की एक अनिवार्य प्रक्रिया है। जिसकी महत्ता सर्वमान्य है।


तथ्य इतिहास लेखन का सर्वप्रमुख आधार है। अधिकांश विद्वान तथ्य को इतिहास की रीढ़ मानते हैं। तथ्य शाश्वत एवं पवित्र होता है अतः यह परिवर्तन से परे होता है। एक तथ्य से विभिन्न निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। सर जाने क्लार्क ने इतिहास की तुलना एक गूदेदार फल से की है। उनके अनुसार तथ्य इस इतिहास रूपी फल की गुठली होता है जिसमें फल का बीज निहित होता है। उन्होंने तथ्य से निकाले गये विभिन्न निष्कर्षों को फल का गूदा कहा है जो जायकेदार तो हो सकता है मगर उसमें उत्पादन क्षमता नहीं होती। अतः उनका मानना था कि इतिहास के तथ्य तो स्थिर एवं निश्चित होते है किंतु निष्कर्षो की स्थिति बालू की दीवार की तरह होती है जो कभी भी वह सकती है।











तथ्य की परिभाषा आक्सफोर्ड शार्टर इंग्लिश डिक्शनरी इस प्रकार दी गई है कि "तब्य में अनुभव के वे आँकड़े होते हैं जो निष्कर्ष से भिन्न होते हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि एक तथ्य का विभिन्न इतिहासकार अपना अलग निष्कर्ष निकाल सकते हैं किंतु तथ्य अपरिवर्तनीय ही रहेगा। किसी एक निष्कर्ष से बंधा न होकर स्वतंत्र रहता है। इसी तारतम्य में पत्रकार सी. पी. स्कॉट का यह कथन उचित प्रतीत होता है कि "तथ्य पवित्र है, मतव्यों पर कोई बंधन नहीं होता है। मंतव्यों पर बंधन होना भी नहीं चाहिए और हो भी नहीं सकता क्योंकि प्रत्येक इतिहासकार अपने विषय के प


द्वारा तथ्य की व्याख्या कर निष्कर्ष निकाल सकता है। तथ्य सामान्य तथ्य भी हो सकते हैं और ऐतिहासिक तथ्य भी सामान्य तथ्य ऐतिहासिक तथ्य बन सकता है। तथ्य के तहत विभिन्न अभिलेख, शिलालेख, ताम्र पत्र, मुबाएँ अन्य पुरातात्विक सामग्री एवं अतीत की घटनाएँ आती है। तथ्य को सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। कोई भी।








वस्तु वा पटना कभी भी एक तथ्य बन सकती है। कोई भी तथ्य उस समय ऐतिहासिक तथ्य बनता है जब इतिहासकार अपने इतिहास लेखन में उस तव्य विशेष का महत्व समझते हुए उसे स्थान दे। अतः एक निश्चित प्रक्रिया के अनुसार अतीत का कोई भी सामान्य-सा तब्य काला तर में ऐतिहासिक तथ्य के रूप में रूपांतरित हो जाता है। चंद्रगुप्त मौर्य को बाल्यावस्था में राजकीलम खेल खेलते हुए जब चाणक्य ने देखा तो उससे प्रभावित होकर चाणक्य ने उसे अपने साथ ले लिया। उस समय यह घटना एक सामान्य तथ्य थी परंतु वही बालक जब प्रतापी सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य बना तो वही सामान्य दिखने वाली घटना एक सामान्य तथ्य से ऐतिहासिक तथ्य में परिवर्तित हो गई। अत: इतिहास निर्माण में तथ्य सदैव ही अति महत्वपूर्ण कारक सिद्ध होते हैं।