इतिहास लेखन - historiography

historiography

1. इतिहास लेखन में स्रोतों का अत्यधिक महत्व है। बिना स्रोतों के इतिहासकार अपनी लेखनी तक नहीं उठा सकता। जीवन के लिए जो महत्व बास का है वही महत्व इतिहासकार के लिए स्रोतों का है। इतिहासकार इतिहास लेखन हेतु वर्ण्य विषय का चयन करने के उपरांत सर्वप्रथम स्रोतों की ही खोज करता है। स्रोतों में भी प्रामाणिक स्रोतों की पहचान कर इतिहासकार उनका उपयोग करता है।


इतिहासकार एवं स्रोत एक दूसरे के पूरक है। स्रोत पवित्र होता है। स्रोत स्वयं नहीं बोलता, इतिहासकार उससे बुलवाता है। बिना इतिहासकार के स्रोत निर्जीव होता है, इतिहासकार उसे जीवन प्रदान करता है। प्रामाणिक स्रोतों का उपयोग कर इतिहासकार जो इतिहास लिखता है उससे उसे जग में प्रतिष्ठा मिलती है।


2. राहुल सांकृत्यायन एक महा यायावर थे उन्होंने अपनी सर्व महत्वपूर्ण कृति मध्य एशिया का इतिहास लिखने हेतु स्रोत सामग्री की खोज में अत्यंत श्रम किया। इस ग्रंथ के महत्व एवं उसमें लगे समय पर प्रकाश डालते हुए नामवर सिंह ने लिखा है- "हजारों वर्षों का इतिहास राहुल ने अकेले लिखा राहुल लगभग 20 वर्षों तक स्रोत सामग्री एकत्रित करते रहे। उसके लिए अनेक भाषाएँ सीखी और उन भाषाओं के द्वारा कलानुक्रम में भूखंड में फैली घटनाओं को समझा और मध्य एशिया के इतिहास का विशाल ग्रंथ दो जिल्दों में लिखा


3. पुरातात्विक स्रोतों के तहत भूतकाल में निर्मित स्मारक, भवन, दुर्ग, स्तंभ, गुफाएँ, मंदिर, मूर्तियाँ, खिलौने, पाषाण उपकरण, धात्विक अवशेष, शैलचित्र, अभिलेख, मुहरे, भोजपत्र पत्रावलियों, ताल पोथियाँ, काष्ठ अवशेष, अस्थि उपकरण, शंख उपकरण एवं चूड़ियाँ इत्यादि आते हैं।


4. प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों में धार्मिक एवं लौकिक साहित्य आते हैं। धार्मिक साहित्य के तहत वैदिक साहित्य, पुराण, ब्राह्मण ग्रंथ बौद्ध एवं जैन ग्रंथ इत्यादि आते हैं। लौकिक साहित्य के तहत विभिन्न नाटक, कथा साहित्य एवं महाकाव्य आदि आते हैं। इनमें चाणक्य का 'अर्थशास्त्र', विशाखदत्त का मुद्राराक्षस, दण्डी का दशकुमारचरितम् भाष का स्वप्नवासवदत्तम् शुद्रक का 'मृच्छकटिकम्', कालिदास के ग्रंथ "ऋतुसंहार, 'कुमारसंभवम्, 'मेघदूतम्', 'विक्रमोर्वशीयम्' 'मालविकाग्निमित्रम्', 'रघुवंश, बाण का 'हर्षचरित' एवं कल्हण की


पराजतंरिगिणी आदि प्रमुख है। 5. मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोतों का स्वरूप प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों से भिन्न है। जहाँ प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों में साहित्यिक स्रोतों के स्थान पर पुरातात्विक स्रोतों का महत्व अधिक है वहीं मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोतों में साहित्यिक स्रोतों का महत्वपूर्ण स्थान है। ग्रीक एवं रोम के पश्चात् इस्लामी इतिहास लेखन का विकास हुआ। मुस्लिम आक्रमण के पश्चात् इस्लामी इतिहासकार भारत आए और उन्होंने ऐतिहासिक ग्रंथों का सृजन किया। यही कारण है कि मध्यकालीन भारतीय इतिहास लेखन के साहित्यिक स्रोत भारी मात्रा में मौजूद हैं। इनका उपयोग कर प्रामाणिक इतिहास लिखा जा सकता है।


6. आधुनिक भारतीय इतिहास लेखन के स्रोतों में अभिलेखागारीय स्रोतों का महत्वपूर्ण स्थान है। आधुनिक भारतीय इतिहास की स्रोत सामग्री राष्ट्रीय अभिलेखागार दिल्ली एवं विभिन्न राज्यस्तरीय अभिलेखागारों में मौजूद है। इन अभिलेखागारों में समकालीन समाचार पत्रों की फाइलें, ब्रिटिश अधिकारियों के पत्र एवं ब्रिटिश शासन काल के समय के सरकारी दस्तावेज मौजूद हैं। इसी प्रकार नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एवं लायब्रेरी दिल्ली में विभिन्न स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों के टेप, व्यक्तिगत पत्र एवं गैर सरकारी दस्तावेज मौजूद है। यहाँ जवाहरलाल नेहरू, मोतीलाल नेहरू, गांधीजी, जयप्रकाश नारायण, बी. आर. अंबेडकर आदि के पत्रों का संग्रह मौजूद है। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन, गोवा मुक्ति आंदोलन के कई प्रत्यक्षदर्शी आज जीवित हैं उनसे साक्षात्कार कर भी आधुनिक भारतीय इतिहास लेखन की महत्वपूर्ण शोध सामग्री एकत्रित की जा।