इतिहास के स्रोत - Sources of History

इतिहास के स्रोत - Sources of History

इतिहास के स्रोत - Sources of History

 इतिहास के स्रोतों का विवेचन करने से पूर्व इतिहास के उपकरणों एवं काल विभाजन को निम्नानुसार स्पष्ट किया जा रहा है।


इतिहास के उपकरण इतिहास क्या है? 


यह जानने के बाद इतिहास के शोधक के लिए इतिहास के उपकरणों को जानना भी अति आवश्यक होता है। इतिहास के महत्वपूर्ण उपकरण इस प्रकार हैं (ग) स्थान (प) पटना


(क) काल


(ड) स्रोत 


(ख) व्यक्ति


इतिहास का काल विभाजन

इतिहास में काल का विशेष महत्व होता है इतिहास की आधारशिला ही काल पर रखी जाती है। काल का निर्धारण इतिहास का एक महत्वपूर्ण अंग है। इतिहास के सामान्यतया तीन काल होते हैं 


(1) प्रागैतिहासिक काल


(2) आतिहासिक काल


(3) ऐतिहासिक काल


विश्व में मान्यता है कि आदि मानव का इतिहास उस समय प्रारंभ होता है जब वह सभ्यता के प्रथम अवस्था पर अवतरित होता है। सभ्यता के प्रथम चरण में आदि मानव खानाबदोश एवं आखेट के जीवन से अपना इतिहास प्रारंभ करता है। पुरातत्वविदों ने मानव सभ्यता का इतिहास हिमकाल पूर्व पाषाणकाल, मध्यपाषाणकाल, नवपाषाण काल, ताम्रकाल, कांस्यकाल और लौह काल में बांट कर लिखा है। वर्तमान में इतिहास को प्राचीन, मध्यकालीन आधुनिक एवं अत्याधुनिक कालों में विभाजित कर सर्वत्र उसका अध्ययन किया जा रहा है।


इतिहास के स्रोत


इतिहास का अंतिम उपकरण स्रोत होता है। इतिहास के विद्वानों द्वारा इतिहास के स्रोतों को दो भागों में विभाजित किया गया है।


(1) साहित्यिक


(2) पुरातात्विक


ये दोनों ही स्रोत विभिन्न कालों के होते हैं जो व्यक्तिपरक इतिहास की विविध घटनाओं एवं स्थलों से संबंधित होते हैं। इनमें से अनेक साक्ष्यपरक उपकरण होते हैं। पुरातात्विक उत्खननों से प्राप्त ये साक्ष्यपरक उपकरण इतिहास निर्माण में बड़े सहायक सिद्ध होते हैं। पुरातात्विक महत्व के ये अवशेष जहाँ ऐतिहासिक स्थलों के उत्खनन से प्राप्त होते हैं, वहीं ये ऐतिहासिक स्थलों में ऊपर से भी बड़ी मात्रा में मिलते हैं। पुरातात्विक सामग्री कभी साहित्यिक स्रोतों से प्राप्त तथ्यों का समर्थन करती है तो कभी नए तथ्यों को उद्घाटित करती है। वैज्ञानिक खोजों पर आधारित पुरातात्विक सामग्री इतिहास निर्माण में बड़ी उपयोगी होती है। समस्त पुरातात्विक स्रोतों को पाँच भागों में विभाजित किया जा सकता है।



( 1 ) अभिलेख शिलालेख, ताम्रपत्र, स्तंभलेख, मुद्रालेख एवं प्रतिमालेख) 


(2) मुदाएँ (स्वर्ण, रजत, ताम्र एवं चमड़े की मुदाएँ )


(3) प्रतिमाएँ (ब्राह्मण बौद्ध एवं जैन प्रतिमाएँ) 


(3) स्मारक (स्तूप, गुहा, मंदिर, मस्जिद, मकबरे किले, महल, मीनार)


(4) अन्य सामग्री उपकरण, मृद्रांद मोहरे, मनके खिलौने)


अतः पुरातत्वीय उत्खनन पूर्णतः वैज्ञानिक प्रणाली होती है जो इतिहास और संस्कृति के कालक्रम निर्धारण में बड़ी महत्वपूर्ण होती है। इन पुरातात्विक स्रोतों के अतिरिक्त साहित्यिक स्रोतों का भी इतिहास निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। साहित्यिक स्रोतों को दो भागों में विभाजित कर उनका अध्ययन किया जाता है।


(1) धार्मिक साहित्य (ब्राह्मण बौद्ध एवं जैन साहित्य) 


(2) धर्मनिरपेक्ष साहित्य (तत्कालीन लेखकों एवं कवियों की रचनाएँ)


विदित है कि लगभग 70 प्रतिशत इतिहास का निर्माण या इतिहास लेखन का कार्य साहित्यिक स्रोतों के आधार पर ही होता है। प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के साहित्यिक साधनों से स्पष्ट हो जाता है कि एलफिंस्टन तथा काबेल जैसे कुछ पाश्चात्य इतिहासकारों का यह कथन पूर्णतः भ्रामक है कि भारतीय इतिहास में वैदिक काल की घटनाओं का वर्णन सविस्तार क्रमबद्ध नहीं किया जा सकता।