उद्योगीकरण और सामाजिक परिवर्तन - Industrialization and Social Change
उद्योगीकरण और सामाजिक परिवर्तन - Industrialization and Social Change
हालांकि भारत में उद्योगीकरण का आरंभ औपनिवेशिक काल से माना जाता है परंतु यह आरंभ अंग्रेज उद्यमियों और पूंजीपतियों द्वारा बहुत न्यून पूंजी निवेश से शुरू हुआ था और यह सस्ते माल व सस्ते श्रमिकों तक पहुँच के लिए किया गया था। आरंभिक प्रयासों के कारण भारतीय उद्यमियों ने भी उद्योगीकरण क्षेत्र में पूजी निवेश करना शुरू कर दिया। अंग्रेज पूँजीपतियों के एकाधिकार को चुनौती दिए जाने के कारण तत्कालीन सरकार द्वारा भेदभावपूर्ण नीतियाँ अपनाई जाने लगी। इससे प्रतिस्पर्धा और संघर्ष की भावना को बढ़ावा मिला। स्वतंत्र भारत में आर्थिक नीति में नेहरू ने समग्र विकास और समाजवादी प्रतिमानों को लागू किया। इस प्रयास ने भारत में भारी उद्योगों की स्थापना पर जोर दिया। उद्योगीकरण के कारण भारत में हुए सामाजिक परिवर्तन को निम्न रूपों में अभिव्यक्त किया जा सकता है.
1. उद्योगीकरण के कारण अनेक व्यवसायों, कारखानों, सह शिक्षा, बसों, रेलगाड़ियों, होटलों आदि का उभार हुआ और इस परिवर्तन ने जातिगत दृढ़ता को कमजोर करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।
2. सामाजिक व्यवस्था में धन और वैयक्तिक गुणों को महत्व दिया जाने लगा जिसके कारण वर्ग का
उदय हुआ।
3. परंपरागत भारत की प्रमुख विशेषताओं में से एक संयुक्त परिवार रहा औरंतु उद्योगीकरण के दौर में यह इकाई टूट कर एकाकी परिवारों में रूपांतरित हो रही है।
4. उद्योगीकरण के कारण उत्पन्न नगरीकरण ने परिवार के कार्य और उसके प्रति लोगों के दृष्टिकोण को बड़ी मात्रा में प्रभावित किया है और आज परिवार का महत्व लोगों के सामाजिक जीवन से कम होता जा रहा है।
5. उद्योगीकरण के परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों की ओर महिलाओं की तुलना में पुरुषों के प्रवसन में तेजी आई है और साथ ही साथ बाल मजदूरी के भी कई आकड़े सामने आए हैं। इस कारण से बाल शोषण और अपराधों में वृद्धि आई है।
6. उद्योगीकरण की प्रक्रिया ने महिलाओं के लिए शिक्षा रोजगार आदि सामाजिक अवसरों में समानता का मार्ग प्रशस्त किया है।
7. इसके कारण परंपरागत विवाह व्यवस्था में भी परिवर्तन हुआ है और अनुलोम व प्रतिलोम विवाह कानूनी संरक्षण से प्रेम विवाह अंतर्जातीय विवाह विलंब विवाह बाल विवाह निषेध, विधवा पुनर्विवाह तलाक आदि जैसी प्रवृत्तियाँ विकसित हुई हैं।
8. समाज में श्रम विभाजन और विशेषीकरण को महत्व दिया जाने लगा है।
9. इसके कारण बड़े द्वितीयक समूहों और नगरों का विकास तीव्रता से हो रहा है और दूसरी ओर वैयक्तिक संबंधों का हास होता चला जा रहा है। हम की भावना के स्थान पर मैं की भावना की प्रधानता पाई जाती है।
10. उद्योगीकरण के कारण पारंपरिक मूल्यों और विचारों में परिवर्तन होता है और उसकी जगह नए मूल्य नई विचारधारा, नई आवश्यकता द्वारा ग्रहण कर ली जाती है।
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