उदारीकरण - Liberalization

सन 1985 में सर्वप्रथम उदार आर्थिक नीतियों के बारे में तत्कालीन सरकार ने विचार करना आरंभ किया.

उदारीकरण - Liberalization

सन 1985 में सर्वप्रथम उदार आर्थिक नीतियों के बारे में तत्कालीन सरकार ने विचार करना आरंभ किया और उदारीकरण को मूर्त रूप 1991 में दिया जा सका। बजट और आर्थिक निर्णयों से संचालित इन आर्थिक नीतियों को उदार आर्थिक नीति या उदारीकरण कहा गया। 1901 में ही उदारीकरण के साथ ही साथ निजीकरण और वैश्वीकरण को भी भारत में लागू किया और इन्हीं कारणों से यह उदारीकरण केवल राष्ट्र तक ही सीमित नहीं रहा, अपितु यह अंतरराष्ट्रीय उदारीकरण हो गया। आर्थिक नीति एक देश के आर्थिक विकास की दिशा को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह एक अत्यंत व्यापक शब्द है, जिसमें किसी भी सरकार की विदेशी व्यापार, राजकोषीय, मौद्रिक, रोजगार, उत्पादन व अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रों से जुड़ी नीतियाँ समावेशित रहती हैं। इस प्रकार से आर्थिक नीति का आशय देश में उपलब्ध आर्थिक मानवीय व भौतिक संसाधनों के समुचित उपयोग से आर्थिक वृद्धि को गति प्रदान करना है। आर्थिक नीति के प्रमुख उद्देश्य हैं। 


राष्ट्रीय आय में उच्च वास्तविक वृद्धि प्राप्त करना


पूर्ण रोजगार तथा कीमत स्थिरता


स्थाई विनिमय दरों युक्त बाह्य व्यापार एवं भुगतान संतुलन में साम्य


● देश के नागरिकों को आर्थिक व सामाजिक न्याय दिलाना


आर्थिक नीतियों में समय के साथ-साथ निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं। 24 जुलाई 1991 को मनमोहन सिंह, जो नरसिंह राव सरकार में वित्तमंत्री के पद पर आसीन थे, ने अपने बजट भाषण में उदारीकरण और निजीकरण के माध्यम से भारतीय पूंजी के वैश्वीकरण के कार्यक्रम को प्रस्तुत किया। बदले वैश्विक परिवेश में तीव्र आर्थिक विकास के प्रयोजन से उदारीकरण की नीति क्रियान्वित की गई। उदारीकरण की नीति का सीधा संबंध नियंत्रणों और नियमों को विस्थापित कर मुक्त व्यापार हेतु अर्थव्यवस्था में खुलापन लाना और आर्थिक मसलों में राष्ट्र अथवा सरकार की भूमिका को कम-से-कमतर रूप से सीमित करते हुए वैयक्तिक क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा में वृद्धि करने से है। इसके अनुसार मांग और आपूर्ति के नियमों की अर्थव्यवस्था के पहलुओं को निर्धारित करने में भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होनी चाहिए और व्यापार के तरीकों में किसी प्रकार की कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए। देश के उद्योगीकरण विकास में उदारीकरण की उल्लेखनीय भूमिका है।

इसका कारण यह है कि वैयक्तिक उद्यमियों के प्रोत्साहन का काम उदारीकरण ने बखूबी निभाया है और निर्माण प्रक्रिया के दौरान आने वाली समस्याओं का उन्मूलन भी किया है। इस कारण से उद्यमियों के लिए निवेश हेतु एक व्यापक क्षेत्र की व्यवस्था हो गई। भारत द्वारा अपनी विदेश निवेश नीति का उदारीकरण किया गया। कुछ संवेदनशील क्षेत्रों के अलावा उद्योगीकरण क्षेत्रों में एक व्यापक मात्रा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को स्वीकृति प्रदान की गई। इसके बावजूद देश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को पूरी तरह से लुभाने में सफल नहीं हो पाया2005-06 में कुल विदेशी निवेश 3,754 मिलियन डॉलर रहा, अगस्त 2000 से मई 2009 के दौरान कुल विदेशी निवेश 1,10,974 मिलियन डॉलर रहा। इस संबंध में यह कहा जा सकता है कि नीतिगत और अवसंरचनात्मक अवरोधों के कारण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का परिणाम संतोषप्रद नहीं रहा।