सिख धर्म और समाज कार्य - Sikhism and Social Work
सिख धर्म और समाज कार्य - Sikhism and Social Work
विश्व के सबसे नए और पाँचवे सबसे बड़े धर्म सिख धर्म की स्थापना लगभग 500 वर्ष पहले गुरू नानक ने वर्तमान भारत और पाकिस्तान के) पंजाब जिले में की थी। सिख धर्म का आधार गुरू नानक और उनके बाद हुए नौ सिख गुरुओं की शिक्षा विश्व में लगभग दो करोड़ सिख हैं, और उनमें से अधिकांश भारत में रहते हैं। सिख धर्म एक परमात्मा 'सूजनहार में विश्वास पर जोर देता है। सिख धर्म दस (10) गुरुओं की शिक्षा पर आधारित एक विशिष्ठधर्म है। सिख धर्म के विभिन्न पहलू और मूल्यसमाज कार्य से घनिष्ठता से जुड़े है। समाज कार्य की तरह सिख धर्म भी स्वतंत्रता, विश्व बंधुत्व और कल्याण (सरबत का भला में विश्वास करता है। यह व्यक्ति के महत्व और सम्मान में विश्वास करता है। जीवन के प्रति सिख धर्म के दृष्टिकोण में व्यक्तियों तथा लोगों की स्वतंत्रता का सरोकार सम्मिलित है।
सिख चिंतन में प्रत्येक मनुष्य अपने आप में साध्य है। समाज कार्य की भाति सिख धर्म में भी मनुष्य को प्रत्येक सामाजिक और राजनीतिक संस्था के महत्व अथवा वांछनीयता का अंतिम निर्णायक बनाया गया है। वास्तव में समस्त सामाजिक संस्थाओं और समितियों का अभिप्राय व्यक्ति की मदद करना होता है कि वह अपने जीवन के मुख्य उद्देश्य को प्राप्त कर सके, आत्म-सिद्धि कर सके अथवा अपने सर्वोत्तम पक्ष का विकास कर सकें। लेकिन इसे प्राप्त करने के लिए समाज को न्याय, बंधुत्व भावना, स्वतंत्रता और समानता के स्वस्थ आधार पर संगठित करना होगा और उसे किसी भी प्रकार के उत्पीड़न से मुक्त करना होगा।
सिख धर्म के अनुसार स्वतंत्रता केवल तब वास्तविक होती है जब क) मनुष्य अंधविश्वासों और अत्याचारपूर्ण सामाजिक व्यवहारी तथा विश्वासों से मुक्त हो जाता
ख) अर्थव्यवस्था में शोषण नहीं होता।
ग) शासक न्यायी और जिम्मेदार होते हैं।
घ) भय से मुक्ति मनुष्योंके मन में मजबूती से जमी होती है मैत्री
ड) लोगों की संप्रभुता को संस्थाका रूप दिया जाता है। सिख धर्म के अनुसार, अन्य मनुष्यों के प्रति स्नेहपूर्ण मधुर तथा सम्मानजनक रूख और सभी के कल्याण के प्रति वचनबद्धता एक धार्मिक व्यक्ति के सामाजिक आचरण की खास निशानी (पहचान) है। समाज कार्यकर्ता की तरह उसे दूसरों के साथ मेलजोल रखने वाला और उनके दुखदर्द का ध्यान रखने वाला होना चाहिए और ऐसा होने के लिए व्यक्ति को अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण होगा और एक संयमित जीवन शैली विकसित करनी होगी।
सेवा (स्वैच्छिक सेवा समाज कार्य की एक प्रमुख अवधारणा है और सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण अंग
है। सिख धर्म में स्वैच्छिक सेवा के उदाहरणीय आदर्श गुरुद्वारों में प्रशिक्षण देने के लिए आयोजित किए
जाते हैं। इसके सरल रूप हैं गुरुद्वारे के फर्श पर झाडू लगाना और सफाई करना संगत को पानी पिलाना
या पंखा झलना साझा रसोई में किसी भी प्रकार की सेवा करना और सामान देना गुरुद्वारे में आने वाले
लोगों के जूते साफ करना आदि। सिख धर्म में सेवा आध्यात्मिक जीवन के लिए अनिवार्य है।
तीन प्रकार की सेवा सिख मत में स्वीकृत है तन, मन और धन से की गई सेवा। सिख धर्म में संगत', 'पंगत और लंगर' पर विशेष जोर दिया गया है। संगत संतों पवित्र लोगों या उन लोगों की जो नाम सिमरन के लिए जमा होने की जमात होती है। पंगत तो गुरू घर का एक अभिन्न अंग है, क्योंकि हरेक जाति, पंथ आर्थिक स्थिति, लिंग और धर्म के लोग एक पांत में साथसाथ बैठते हैं। गुरुद्वारे में जो साझा रसोईघर होता है वह लंगर है जहाँ सभी लोग एक साथ बैठकर साझा रसोई से खाते हैं; चाहे उनकी जाति, वर्ग, पंथ, धर्म और लिंग कुछ भी हो सिखों की सामुदायिक सेवाएं तो सामाजिक कार्य में निहित सामुदायिक कार्य की अवधारणा के समान हैं। जाति व्यवस्था का पूरे तौर पर अस्वीकार्य सिख परंपरा की अपनी अलग विशेषता है। सिख मूल्यजाति व्यवस्था की निंदा करते और सभी को बराबरी की शिक्षा देते हैं। यहाँ तक कि गुरु नानक और अन्य सिख गुरुओं ने खुशी से नीची जातियों के साथ अपने आपको जोड़ा।
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