स्वेच्छिक समाज कार्य बनाम व्यावसायिक समाज कार्य - Voluntary Social Work Vs Professional Social Work
स्वेच्छिक समाज कार्य बनाम व्यावसायिक समाज कार्य - Voluntary Social Work Vs Professional Social Work
दान और स्वैच्छिक सेवा की अवधारणा समस्त समाजों में समाज कार्य तथा समाज कल्याण के लिए ऐतिहासिक मूल या जड़ के रूप में विद्यमान रही है। किंतु यह समाजकार्य व्यासाद से भिन्न है। विश्व के समस्त संगठित धर्मों ने दान की परंपरा को महान सदगुण के रूप में रेखांकित किया है। यह विभिन्न धर्मों के उदाहरण में समाहित है -
● 'हिंदु धर्म दान को पवित्र मानता है।
● यहूदी धर्म में किसी पड़ोसी से प्रेम करना एक महत्वपूर्ण कर्तव्यबताया गया है। √ पहले के विधान जरूरतमंद की देखभाल एवं सहायता पर बल देते हैं।
● 'ईसाई धर्म में ईसामसीह (जेसस क्राइस्ट), जिनकी अजनबियों ने देखभाल की थी और उन्होंने मातृत्व प्रेम को प्रोत्साहित किया था, का वर्णन मिलता है।
● इस्लाम धर्म में दान प्रार्थना के समान वर्णित है।
● बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म, निर्धन तथा जरूरतमंदों के प्रति करूणा एवं दया के भाव का हिमायती है।
● संपूर्ण मानवता के लिए स्वैच्छिक सेवा के उदाहरणों से सिक्ख धर्म का इतिहास भरा पड़ा है। 'पारसी के रूप में जाना जानेवाला जरदुस्तधर्म में एक कहावत प्रचलित है "उश्ता अहमई ग्रहमई केहमाइचित इसका अर्थ यह है कि जब तक कोई दूसरों को सुख या प्रसन्नता प्रदान करता है;तब तक वह सुखी एवं प्रसन्नरहता है। संभवतः यह व्यक्तियों या मानव का मूल स्वभाव है कि वह आगे आकर समस्या प्रस्ताव्यस्त व्यक्तियों को सहायता प्रदान करता है और ऐसा वह परोपकारिता को ध्यान में रखकर करता है। किंतु मानव की प्रवृत्ति स्वयं सहायता की होती है और यह स्वैच्छिक अवधारणा को विपरीत दिशा में कुप्रभावित करती है। स्वैच्छिक कार्य अवधारणा से तात्पर्य है कि ऐसा कार्य जो लोगों द्वारा अपनीइच्छा से या उनकी अपनी सहमति से की जाती है, जिसमें करुणा या दूसरों के हित या भलाई की चिंता की भावना निहित होती है तथा इस कार्य के लिए उन्हें क्षतिपूर्ति के रूप में कोई वेतन नहीं मिलता।
स्वैच्छिक कार्य की अवधारणा को मुख्यतः निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा वर्णित किया जा सकता है
1) सभी व्यावहारिक एवं संभव विधियों से लोगों की सहायता करना तथा उनके कल्याण को करने की प्रेरणा प्रदान करना, यह आवश्यक नहीं है कि इसमें वित्तीय सहायता ही दी जाए।
2 ) जो सहायता कार्यकर्ता द्वारा दी जाती है, उसके बदले में उसे किसी भी भौतिक लाभ की अपेक्षा नहीं रहती है।
3) कार्यकर्ता में जरूरत के समय दूसरों की सहायता की भावना तथा सामाजिक सरोकार की भावना प्रबल होती है।
4) स्वैच्छिक अवधारणा के तहत सेवा के सदगुण में विश्वास किया जाता है।
5) स्वैच्छिक कार्य की अवधारणा में एक के अधिकारों के ऊपर एक के कर्तव्य की श्रेष्ठता में विश्वास किया जाता है।
भारत में श्रमदान को भी समाजकार्य का नाम देने की प्रवृत्ति विद्यमान रही है। श्रम तथा 'दान' शब्द, जिसमें सामूहिक हित को बढ़ाने के लिए स्वैच्छिक मानवी श्रम भी समाहित है स्वैच्छिक मानवी श्रम से आधारित है। कल्याण को प्रोन्नत करने हेतु लक्ष्यित तथा सामान्य जनहित का परावर्तक श्रमदान समाजकार्य से सिर्फ उद्देश्यों से ही भिन्न या अलग नहीं है, बल्कि यह दर्शन, प्रणालियों, प्रविधियों आदि के संदर्भ में भी इससे भिन्न है। श्रमदान का लक्ष्यसमुदाय के कल्याण के लिए ठोस कार्यों को संपन्न करना है तथा श्रमदान का दर्शन यह कहता है कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह दूसरों तथा समुदाय की भलाई के लिए अपने श्रम का अवदान करो श्रम दान में विशेषीकृत ज्ञान प्रविधिक निपुणताओं एवं कौशलों की अपेक्षा नहीं की जाती है तथा क्रियों की आवश्यकताओं खास तौर से अमूर्त आवश्यकताओं, जैसे- प्रेम, स्नेह, अनुराग स्वायत्ता, आदर, मान्यता तथा स्व-वास्तविकीकरण का संकेंद्रण भी नहीं है। जन संबलता सहायता प्रावधान आदि के साधन भी भिन्न हैं क्योंकि श्रमदान का साधन मानव श्रम है।
अब्राहम फ्लेक्जनर (जन्म 1866 ई. यू.एस.ए.) जो अमेरिका में चिकित्साकीय शिक्षा के सुधारक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने एक प्रभावी दस्तावेज लिखा, जिसका शीर्षक था. 'दि फ्लेक्जनर रिपोर्ट वह बीसवीं सदी में अमेरिकी चिकित्सा शिक्षा पद्धति की सबसे बड़ी आलोचनात्मक रिपोर्ट थी। डॉ. पलेक्जनर को १९९५ ई. में नेशनल कान्फरेन्स ऑन सोशल वेलफेयर में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था एवं उनके भाषण को शीर्षक दिया गया था, क्या समाजकार्य एक व्यवसाय है?" इस भाषण में फ्लेक्जनर ने व्यवसाय की छह विशेषताओं की सूची बनाई तथाकान्फरेन्स में उसको स्पष्ट तरीके से रखा।
1. व्यापक वैयक्तिक उत्तरदायित्वों के साथ बौद्धिक संचालनयुक्तता तथाजटिल समस्याओं हेतु क्या करना है का निर्णया
2. विज्ञान और ज्ञान पर आधारित अभ्यासा
3. एक व्यावहारिक तथा निश्चित समापन हेतु ज्ञान का उपयोगा
4. शैक्षिक दृष्टि से गत्यात्मक एक प्रविधि
5. स्वयं संगठन का रुझान
6. सहायक वृत्तियाँ अभिप्रेरणा में परहितकारी हो।
फ्लेक्जनर को समझ लेने के बाद अब हम व्यवसाय के सामान्य अर्थ एवं विशेषताओं को समझने की कोशिश करेंगे।
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