काका कालेलकर आयोग - Kaka Kalelkar Commission
काका कालेलकर आयोग - Kaka Kalelkar Commission
अन्य पिछड़े वर्गों के सामाजिक आर्थिक उन्नयन के लिए 1953 में अनुच्छेद 340 (1) के अंतर्गत तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने काका कालेलकर की अध्यक्षता में एक पिछड़ा वर्ग आयोग गठित किया गया। आयोग अपनी रिपोर्ट 1955 में भारत सरकार। अपनी संस्तुतियों सहित दे दी। रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा घोषित 2399 पिछड़ी जातियों में केवल 9313 जातियाँ बहुसंख्यक थी। आयोग ने विभिन्न विवादास्पद मुद्दों को ध्यान में रखते हुए सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को चिन्हित करने के लिए निम्नलिखित आधार प्रस्तुत किए।
1) हिंदू समाज की पारंपरिक जाति पदसोपानी में निम्न स्थान
2) किसी जाति या समुदाय विशेष के बड़े वर्ग में शैक्षिक उत्थान की कमी
3) सरकारी सेवाओं में प्रतिनिधित्व का अभाव या बिल्कुल न होना
4) व्यापार, वाणिज्य तथा उद्योग में प्रतिनिधित्व का अभाव
पिछड़े वर्गों की सूची बनाने में जाति' को प्रमुख कारक माना गया था। आयोग का मत था कि जातिग्रस्त समाज की समस्याओं की सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टिसे कमजोर वर्गों को बढ़ावा देकर कम किया जा सकता है। यद्यपि आयोग के पास जाति पर पर्याप्त आंकड़े नहीं थे फिर भी आयोग ने प्रस्ताव दिया कि कम से कम 25 प्रतिशत आरक्षण प्रथम श्रेणी कि सेवाओं में 33.5 प्रतिशत द्वितीय श्रेणी में और 40 प्रतिशत तृतीय और चतुर्थ श्रेणियों की सेवाओं में पिछड़ी जातियों के लिए किया जाए। आयोग द्वारा पिछड़ा वर्ग कल्याण के लिए अलग मंत्रालय बनाने की सिफारिश भी की गई थी।
उस पर तत्कालीन गृहमंत्री पं गोविंद वल्लभ पंत ने लोकसभा में भारत सरकार की तरफ से स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि रिपोर्ट के अनुसार भारत की करीब 35 करोड़ 69 लाख आबादी में पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा घोषित 2399 पिछड़ी जातियों में केवल 9313 जातियों की जनसंख्या ही 11 करोड़ 50 लाख है। शेष पिछड़ी जातियों की जनसंख्या को जोड़ने से इनकी तादाद और बढ़ जाएगी। पिछड़े वर्ग के उत्थानार्थ इतनी बड़ी जनसंख्या वाले पिछड़े वर्ग के लिए आयोग की सिफारिशों को लागू करने हेतु भारत सरकार के पास पर्याप्त साधन नहीं है। अतः काका कालेकर के पिछड़े वर्ग आयोग की संस्तुतियाँ भारत सरकार लागू करने में असमर्थ है।
साथ ही न्यायालय ने जाति के आधार पर आरक्षण को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया आयोग द्वारा सूझाई गई बातों का यह ह देखकर पिछड़ी जाति के पढ़ेलिखे एवं राजनेता लोग काफ़ी आहत और हताश होकर शांत बैठ गए। इसके बाद राज्य सरकारों को अन्य पिछड़े वर्गों की सूची बनाने के लिए अपने स्वयं के आधार द्वारा यह कसौटियाँ निश्चित करने की अनुमति दी गई। कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों ने अन्य पिछड़े वर्गों के लिए कुछ प्रावधान अवश्य बनाए। विशेष आयोग नियुक्त किया गया तथा इन वर्गों को पहचानने के लिए विशेष सूचियाँ तैयार की गई। सरकार द्वारा आरक्षण या विशेष सुविधाएं देने के लिए समुचित कानून बनाए। दक्षिण केकतिपय अन्य राज्यों ने भी ऐसे ही कदम उठाए) इधर दूसरी ओर वे राज्य जहां ऐसे प्रावधान नहीं भेगा आधे-अधूरे थे वहां पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की मांग आदालन के रूप कही जाने लगी। जब यह यह मांग समस्या का रूप लेने लगी तो केंद्रीय सरकार ने इस कार्य के लिए मंडल आयोग की नियुक्ति की।
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