नवउपनिवेशवाद का उदय - rise of neocolonialism
नवउपनिवेशवाद का उदय - rise of neocolonialism
प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में एक बड़े पैमाने पर जन-धन की हानि हुई और इन दशाओं ने पराधीन राष्ट्रो पर औपनिवेशिक शासन को बनाए रखने हेतु आवश्यक शक्तियों को कमतर कर दिया। वहीं दूसरी ओर स्वतंत्रता आंदोलनों ने भी इनकी शक्ति को तोड़ कर रख दिया, जिसके फलस्वरूप औपनिवेशिक शासन समाप्त हो गया। इसके पश्चात एक नए प्रकार के उपनिवेशवाद की संकल्पना अस्तित्व में आयी जिसे नव उपनिवेशवाद का नाम दिया गया। इसमें विकसित राष्ट्र द्वारा विकासशील और अविकसित राष्ट्रों पर नियंत्रण खासकर आर्थिक नियंत्रण स्थापित किया जा रहा है। इसके उश हेतु कुछ आवश्यक दशाएँ जिम्मेदार है, जो इस प्रकार है
1. शासकीय देशों की शक्तियों का ह्रास लगातार दो विश्वयुद्धों के कारण शासकीय राष्ट्रों की आर्थिक शक्तियाँ और जन शक्तियाँ भारी मात्रा में प्रभावित हुई और औपनिवेशिक शासन सुचारु रूप से करना दुष्कर होने लगा। 1949 में चीन का साम्यवादी शक्ति के रूप में उभरना, माओ द्वारा सभी साम्राज्यवादी राष्ट्रों को चुनौती देना और नबोदित राष्ट्रों की स्वतंत्रता ने शासकीय देशों की शक्तियों को नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका बहन की है।
2. स्वतंत्रता आंदोलनों का विकास औपनिवेशिक परतंत्रता के विरोध में शनैः शनैः सभी देशों में राजनैतिक चेतना का उभर हुआ और वहाँ स्वतंत्रता आंदोलन होने लगे। इन आंदोलनों के विरोध स्वरूप औपनिवेशिक ताकतों का एक बड़ा हिस्सा समाप्त कर दिया। वहीं दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में आत्मनिर्णय के अधिकार को मान्यता दी जा चुकी थी। इन परिस्थितियों ने औपनिवेशिक शासन को तोड़ कर रख दिया और अंततः यह समाप्त हो गया।
3. आर्थिक संकट में हालिया स्वतंत्र देशनवोदित स्वतंत्र देशों की विकसित देशों से आर्थिक मदद की दरकार होने लगी। इसका कारण यह था कि लंबे औपनिवेशिक काल के दौर से गुजरने के पश्चात और उनके संसाधनों का दोहन के पश्चात उनके पास विकास हेतु कुछ भी नहीं बचा था। आर्थिक विकास के हेतु पूंजी तकनीक, ज्ञान आदि की आवश्यकताओं ने उन्हें विकसित देशों से मदद की ओर उन्मुख किया है।
4. विकसित राष्ट्रों की आर्थिक नीतियाँ द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात अमेरिका और रूस के मध्य शीत-युद्ध आरंभ हो गया है और दोनों देशों द्वारा अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए नवोदित स्वतंत्र देशों को आर्थिक रूप से अपने नियंत्रण में लिया जाने लगा। इससे संबंधित अनेक प्रकार की आर्थिक नीतियों के क्रियान्वयन के आधार पर राष्ट्रों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अपने अधीन किया जाने लगा।
उक्त वर्णित सभी दशाओं ने अल्पाधिक रूप से नव उपनिवेशवाद को अपने पाँव फैलाने हेतु परिस्थितियाँ का निर्माण की है।
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