मानव संस्कृति का निर्माता , संस्कृति की विशेषताएं - Creator of Human Culture, Characteristics of Culture
मानव संस्कृति का निर्माता , संस्कृति की विशेषताएं - Creator of Human Culture, Characteristics of Culture
मानवशास्त्री लेस्ली व्हाइट ने मानव की प्रतीकात्मक क्षमता को संस्कृति का आधार माना है। आपके अनुसार प्रतीकात्मक क्षमता के कारण ही मनुष्य जल और पवित्र जल में अंतर स्पष्ट कर सका, जबकि अन्य प्राणी ऐसा करने में असमर्थ है। अपनी पुस्तक दी इवोल्यूशन ऑफ कल्चर (1959) व्हाइट ने मानव और केवल मानव को ही संस्कृति का निर्माता माना है। व्हाइट ने मानव की पांच विशेषताएं तथा मानसिक क्षमताओं को संस्कृति के निर्माण के लिए उत्तरदाई माना है, जो इस प्रकार है-
1. मानव कि सीधे खड़े होने की क्षमता तथा द्विपादगमन
2. स्वतंत्रतापूर्वक घुमाव जा सकने वाले हाथ एवं अंगूठे की विपरीत स्थिति
3. मानव की तीक्ष्ण एवं केंद्रित की जा सकने वाली दृष्टि
4. मानव का मेधावी मस्तिष्क
5. प्रतीकों एवं भाषा के निर्माण की क्षमता
संस्कृति की विशेषताएं
उपर्युक्त परिभाषाएं संस्कृति की प्रकृति को एक सीमा तक प्रतिबिंबित करती हैं, तथापि संस्कृति की अधोलिखित विशेषताएं उसकी वास्तविक प्रकृति को पूर्णता स्पष्ट करती है
1. संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है.
2. संस्कृति मानव निर्मित है
3. संस्कृति मानवीय आवश्यकताएं की पूर्ति करती है
4. संस्कृति हस्तांतरित होती है
5. प्रत्येक समाज की संस्कृति एक विशेष प्रकार की होती है
6. संस्कृति समूह के लिए आदर्श होती है
7. संस्कृति में सामाजिकता का गुण होता है।
8. संस्कृति में अनुकूलन की क्षमता होती है
9. संस्कृति में संतुलन तथा संगठन होता है।
10. संस्कृति प्रसन्नतादायक होती है
11. संस्कृति मानव व्यक्तित्व निर्माण में मौलिक होती है।
12. संस्कृति अधिवैयक्तिक (Super Individual) तथा अधिसावयवी (Super Organic) है।
इन विशेषताओं का उल्लेख ए. एल. क्रोबर द्वारा किया गया है। संस्कृति अधिवैयक्तिक अर्थात संस्कृति किसी व्यक्ति विशेष की रचना नहीं है, व्यक्ति उसके छोटे से भाग के निर्माण में अपना योगदान अवश्य देता है किंतु उसकी स्थिरता एवं निरंतरता पर उसका अधिकार नहीं होता क्योंकि संस्कृति व्यक्तिगत व्यवहार ना होकर सामूहिक व्यवहार है।
व्यक्तिगत व्यवहार उस व्यक्ति की मृत्यु के बाद समाप्त हो जाता है लेकिन सामूहिक व्यवहार पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते रहते हैं। इसी आधार पर संस्कृति को अधिवैयक्तिक (व्यक्ति से ऊपर) कहा गया है।
संस्कृति अधिसावयवी (Super Organic) है। सर्वप्रथम हरबर्ट स्पेंसर ने संस्कृति के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग किया, जबकि एक अवधारणा के रूप में इसका प्रयोग सर्वप्रथम लिप्पर्ट द्वारा किया गया। इस अवधारणा को विस्तार क्रोबर द्वारा दिया गया। वस्तुतः संस्कृति अधिसावयवी (सुपरऑर्गेनिक) इस अर्थ में है कि मानव ने अपनी शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं का उपयोग कर संस्कृति का निर्माण किया है। व्यक्ति सावयव (ऑर्गेनिक) है किंतु इसने जिस संस्कृति का निर्माण किया है वह सावयव से ऊपर है। सावयव से अधिक है और इसे ही अधिसावयवी (Super Organic) कहा गया है।
क्लकहौन के इस विचार को निष्कर्ष के तौर पर देखा जा सकता है कि संस्कृति में अधिवैयक्तिक (Super Individual) तथा अधिसावयवी (Super Organic) होने का अर्थ केवल इतना है
कि मनुष्य किसी संस्कृति में जन्म लेता है, किंतु संस्कृति सहित जन्म नहीं लेता। संस्कृति किसी व्यक्ति विशेष की विरासत नहीं है। वह इसके निर्माण में अपना योगदान अवश्य देता है किंतु संस्कृति का उद्गम विकास, परिवर्तन एवं परिमार्जन एक व्यक्ति पर निर्भर ना होकर संपूर्ण समाज पर होता है।
हर्सकोविट्स ने अपनी पुस्तक मैन एण्ड हिस वर्क में संस्कृति के निम्नलिखित विशेषताओं की चर्चा की है -
1) संस्कृति सीखी जाती है।
2) यह एक अर्जित व्यवहार है।
3) संस्कृति जैविकीय, पर्यावरण संबंधी, मनोविज्ञान और मानव अनुभवों के ऐतिहासिक तत्व से प्राप्त की जाती है।
4) संस्कृति का वर्गीकरण संभव है।
5) संस्कृति संरचित है, या चिंतन के प्रतिमानों, अनुभव एवं व्यवहारओं से बनती है।
6) संस्कृति गतिशील है।
7) संस्कृति परिवर्तनशील एवं सापेक्षिक है।
8) विज्ञान की पद्धतियों के विश्लेषण द्वारा संस्कृति अपनी नियमितताओं को प्रदर्शित करती है।
9) संस्कृति एक यंत्र है जहां वैयक्तिक सामंजस्य और संपूर्ण समायोजन द्वारा रचनात्मक अनुभवों को प्राप्त किया जाता है।
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