भौतिक तथा अभौतिक संस्कृति - material and non-material culture

 भौतिक तथा अभौतिक संस्कृति - material and non-material culture


अमरीकन समाजशास्त्रीय ऑगबर्न ने संस्कृति को भौतिक तथा अभौतिक रूप में वर्गीकृत किया है। यह वर्गीकरण अन्य विद्वानों द्वारा स्वीकार्य भी है -


क) भौतिक संस्कृति


भौतिक संस्कृति में मानव निर्मित सभी भौतिक तथा मूर्त वस्तुओं को शामिल किया जाता है। इसके तहत वे सभी वस्तुएँ शामिल की जाती हैं जिन्हें हम देख सकते हैं, स्पर्श कर सकते हैं तथा इंद्रियों से जिनका आभास कर सकते हैं। प्राचीन काल से ही मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रयोजन से प्राकृतिक वस्तुओं तथा शक्तियों को परिवर्तित कर अपने उपयोग हेतु नवीन वस्तुओं का आविष्कार करते रहे हैं तथा इस प्रकार से वे नित नयी मशीनों व अन्य वस्तुओं को निर्मित कर भौतिक संस्कृति में इजाफा करते रहे हैं। भौतिक संस्कृति में पंखा, टेलीविज़न, कलम, रेल, जहाज, टेलीफोन, वस्त्र आदि को समझा जा सकता है। भौतिक संस्कृति के तत्वों को गिन पाना तथा व्याख्यायित कर पाना दुष्कर है। सरल व आदिम समाजों की तुलना में आधुनिक समाजों में इनकी संख्या बहुत ही अधिक हो चुकी है।

इस प्रकार से पुरानी पीढ़ी की तुलना में नई पीढ़ी के पास अपार मात्रा में भौतिक संस्कृति देखने को मिलती है।


भौतिक संस्कृति में शीघ्र ही परिवर्तन होता है, यही कारण है कि किसी वस्तु के प्राचीन और आधुनिक स्वरूप में काफी अंतर देखने को मिलता है। भौतिक संस्कृति को मापना अत्यंत सरल है, इसे हम संख्या, वजन, लंबाई-चौड़ाई आदि के रूप में माप सकते हैं। इनका एक भौतिक आधार होता है। 


ख) अभौतिक संस्कृति


अभौतिक संस्कृति के तहत वे सभी तत्व आते हैं जिन्हें हम ना ही देख सकते हैं और ना ही स्पर्श कर सकते हैं। ये तत्व अमूर्त प्रकृति के होते हैं तथा इंका नाप-तौल, रंग, रूप अथवा आकार नहीं होता है। अभौतिक संस्कृति को केवल महसूस किया जा सकता है, यह केवल मनुष्यों के विचारों तथा कार्यों में परिलक्षित होती है। इसमें विचार, विश्वास, व्यवहार, भाषा, नैतिकता, रीति-रिवाज, प्रथाएँ, ज्ञान, क्षमता आदि को शामिल किया जाता है तथा इंका हस्तांतरण पीढ़ी दर पीढ़ी होता रहता है।


भौतिक तथा अभौतिक संस्कृति पृथक होते हुये भी परस्पर संबंधित रहते हैं। उदाहरणस्वरूप, मोबाइल भौतिक संस्कृति का द्योतक है, जबकि उसे चलाने की विधा अभौतिक संस्कृति से संबंधित है। बहरहाल, भौतिक तथा अभौतिक संस्कृति के अंतर को हम निम्न बिन्दुओं की सहायता से अभिव्यक्त कर सकते हैं-


1- भौतिक संस्कृति मूर्त प्रकृति की होती है, जबकि अभौतिक संस्कृति की प्रकृति अमूर्त होती है।


2- भौतिक संस्कृति में परिवर्तन तेजी से होता है, जबकि अभौतिक संस्कृति में परिवर्तन अत्यंत धीमी गति से होता है। उदाहरणस्वरूप प्राचीन तथा आधुनिक समाज की मशीनों, तकनीकों तथा अन्यभौतिक वस्तुओं में बहुत से परिवर्तन हुये हैं, जबकि हमारे विचारों, व्यवहारों, विश्वासों, रीति रिवाजों, प्रथाओं, परम्पराओं आदि में परिवर्तन बीएस नाम मात्र के हुये हैं।


3- अभौतिक संस्कृति का संबंध मानव के आंतरिक जीवन से रहता है, जबकि भौतिक संस्कृति का संबंध मानवके बाह्य जीवन से रहता है।


4- भौतिक संस्कृति, अभौतिक संस्कृति की अपेक्षाकृत शीघ्र ग्राह्य हैं। जब दो भिन्न प्रकार के सांस्कृतिक समूह एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं तो वे भौतिक संस्कृति को बहुत ही तेजी से स्वीकार कर लेते हैं, जबकि वे अभौतिक संस्कृति (विचार, व्यवहार, प्रथा, विश्वास आदि) को ग्रहण करने में हिचकते हैं।


5- भौतिक संस्कृति की माप सरल होती है तथा इसे संख्या, वजन, लंबाई-चौड़ाई के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है, जबकि अभौतिक संस्कृति के साथ ऐसा नहीं है। अभौतिक संस्कृति का माप तौल करना संभव नहीं।


6- भौतिक संस्कृति अपेक्षाकृत सरल होती है, जबकि अभौतिक संस्कृति की प्रकृति जटिल होती है।


7- भौतिक संस्कृति का मूल्यांकन लाभ तथा उपयोगिता के आधार पर किया जाता है, जबकि अभौतिक संस्कृति का मूल्यांकन भौतिक वस्तुओं की तरह उपयोगिता के आधार पर नहीं कियाजा सकता है क्योंकि इसका संबंध मानवके आध्यात्मिक पक्ष से है। अभौतिक संस्कृति का मापन नहीं किया जा सकता, इसे मात्र महसूस किया जा सकता है।