आत्महत्या के प्रकार - Types of Suicide
आत्महत्या के प्रकार - Types of Suicide
दुर्खीम ने आत्महत्या के आंकड़ों के सांख्यिकी विश्लेषण के द्वारा देखा है। दुर्खीम आत्महत्या को एक सामाजिक प्रघटना मानते हैं, और सामाजिक घटना के रूप में आत्महत्या के सामाजिक कारणों पर जोर देते हैं। इसी आधार पर दुर्खीम ने आत्महत्या के तीन प्रकार बताए हैं। पारसंस ने अपनी पुस्तक 'स्ट्रक्चर ऑफ सोशल एक्शन' (Structura of Social Action) में कहा है। ये प्रकार वस्तुतः आदर्श प्रारूप हैं। आत्महत्या के निम्नलिखित प्रकार हैं
अहमवादी आत्महत्या (Egoistic Suicide)
दुर्खीम का है कि विभिन्न सामाजिक परिस्थितियां विशिष्ट भावात्मक स्थितियों को जन्म देती हैं। जिसके फलस्वरुप व्यक्ति आत्महत्या करता है। अहमवादी आत्महत्या का मूल कारण भी सामाजिक समूहों का विघटन होना है। दुर्खीम के अनुसार जब व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन एवं सामाजिक जीवन में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न होती है तो वह स्वयं को समाज के साथ समायोजित नहीं कर पाता और अपने को अत्यंत अकेलापन महसूस करता है।
अहंवादी आत्महत्या प्रायः वे लोग करते हैं जिनका अहम बहुत अधिक होता है। इस तरह के व्यक्ति अपने आपको समाज से बहुत ऊंचा समझते हैं।
इस कारण इनकी व्यक्तिगत चेतना एवं सामाजिक चेतना के बीच संतुलन नहीं हो पाता है। जब व्यक्ति में बहुत अधिक अहम होता है तो वह समाज के साथ मिलकर नहीं चल पाता है। समाज से समायोजन न होने के कारण वह अपने आपको उपेक्षित एकांकी एवं तिरस्कृत महसूस करता है। उसके मन में यह भावना आ जाती है कि इस संसार में उसका अपना कोई नहीं है। ऐसा व्यक्तिगत विघटन के कारण होता है। व्यक्ति को यह लगने लगता है कि समाज के बीच वह अकेला रह गया है और आत्महत्या के अतिरिक्त उसके पास कोई विकल्प नहीं इसलिए अहमवादी आत्महत्या को स्वार्थपरक आत्महत्या भी कहा जाता है। वास्तव में अहमवादी आत्महत्या सामाजिक पृथक्करण का परिणाम है। समाज में जितना व्यक्तिवाद बढ़ता है उतनी ही समूहों में एकीकरण की भावना भी कम होती जाती है। इस प्रकार की आत्महत्या को व्यक्तिपरक आत्महत्या भी कहा जाता है। इसमें व्यक्ति स्वयं को समाज एवं समूह से महत्वपूर्ण समझने लगता है। दुर्खीम के अनुसार अहम वादी आत्महत्याएं पूरे यूरोप में देखने को मिलती है। अहम वादी आत्महत्या के चार प्रमुख कारण है
A. धर्म (Religion) - धर्म सामूहिक जीवन को प्रेरित करता है। यदि हम दुर्खीम के समय की धार्मिक परिस्थितियों पर नजर डालें तो हमें उस समय यूरोप में तीन प्रमुख धर्म देखने को मिलते हैं
1. कैथोलिक धर्म
2. प्रोटेस्टेंट धर्म
3. यहूदी धर्म
दुर्खीम ने इन तीनों धर्मों पर अध्ययन किया और पाया कि प्रोटेस्टेंट धर्म की अपेक्षा कैथोलिक एवं यहूदी धर्म में आत्महत्या की दर कम है। दुर्खीम ने अपने अध्ययन में यह भी पता लगाने का प्रयास किया कि ऐसे कौन से कारण हैं, जिससे इन विभिन्न धर्मों में आत्महत्या की दर में विभिन्नता पाई जाती है। दुर्खीम के अनुसार यहूदी धर्म में चर्च की धार्मिक क्रियाएं यंत्रवत की जाती है एवं कैथोलिक धर्म के समर्थक यह स्वीकार करते हैं कि उनका धर्म बना बनाया है।
उसमें परिवर्तन का कोई स्थान नहीं है। इन दोनों धर्मों की संरचना संगठित है दोनों धर्मों में आत्मा पर संयम रखने पर अधिक बल दिया जाता है। आत्मा यदि किसी कार्य को करने के लिए कहे तो उसे स्वीकार करना इन धर्मावलंबियों का कर्तव्य है, इसमें किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
प्रोटेस्टेंट धर्म की संरचना लचीली है। यह धर्म व्यक्तिवाद का समर्थन करता है। इसमें व्यक्ति को पूरी स्वतंत्रता है। इसमें धर्म के समर्थकों को बाइबल तो दी जाती है पर उसका कोई भी अंश व्यक्ति पर जबरदस्ती थोपा नहीं जाता। तीनों धर्मों के अध्ययन के आधार पर दुर्खीम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि जिस धार्मिक संगठन में सुदृढ़ता है उसमें आत्महत्या की दर कम होगी जैसा की कैथोलिक एवं यहूदी धर्म के समर्थकों में देखने को मिलता है पर प्रोटेस्टेंट धर्म में लचीलापन होने के कारण इसमें आत्महत्या की दर अधिक पाई जाती है।
B. शिक्षा (Education) दुखम ने शिक्षा एवं आत्महत्या के बीच भी सह संबंध की व्याख्या की है। अधिक शिक्षा अथवा ज्ञान से आत्महत्या की प्रवृत्ति में वृद्धि होती है।
दुर्खीम के अनुसार जब एक यहूदी व्यक्ति पढ़ लिख जाता है तो समाज के सामान्य विश्वासों, संवेगों और विशेषकर धार्मिक मान्यताओं में उसकी आस्था कमजोर हो जाती है। इसी कारण पढ़े-लिखे लोगों में अनपढ़ लोगों की तुलना में आत्महत्या की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है। दुखींम ने अपने अध्ययन में व्यवसायों को भी शिक्षा के साथ जोड़ा है। उनके अनुसार प्रायः उच्च शिक्षित व्यक्ति अच्छे व्यवसायों से जुड़े रहते हैं और वर्ग व्यवस्था में उनका स्थान उच्च रहता है। ऐसे उच्च शिक्षित व्यवसाइयों में आत्महत्या की दर अधिक पाई जाती है.
C. परिवार एवं विवाह ( Marriage and Family) दुर्खीम ने अपने अध्ययन में बताया है कि विवाहित व्यक्तियों की तुलना में अविवाहित व्यक्तियों में आत्महत्या की दर कम पाई जाती है। इस तरह विधुर व्यक्तियों में आत्महत्या की दर अधिक होती है। इसका प्रमुख कारण है, विधुर व्यक्ति का जीवन एकांकी होता है, वह परिवार से एकदम कटा हुआ होता है, उसका सामाजिक पर्यावरण उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित कर सकता है, विवाहित व्यक्तियों में आत्महत्या की दर अधिक होने का कारण पारिवारिक विघटन एवं तनाव है। जब पति-पत्नी में समायोजन नहीं होता तो अहमवादी आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। दुर्खीम के अनुसार स्त्रियों की तुलना में पुरुषों में भी आत्महत्या की प्रवृत्ति अधिक होती है। इसका प्रमुख कारण है कि महिलाएं अपेक्षाकृत रुढ़िवादी होती हैं और धार्मिक ग्रंथ उनके लिए जिस मार्ग को संचालित करते हैं, उसी पर चलती हैं और वे समाज से भी सुदृढ़ रूप से जुड़ी रहती हैं।
D. राजनैतिक अवस्था (Political Status) दुर्खीम के अनुसार किसी भी देश की राजनीतिक के व्यवस्था भी आत्महत्या के लिए प्रेरक हो सकती है। दुर्खीम के अनुसार जब किसी देश में राजनीतिक सुदृढ़ता में कमी आने लगती है, तब उस देश में आत्महत्या की दर में वृद्धि होने लगती है। सुव्यवस्थित एवं संगठित राष्ट्र में आत्महत्या की प्रवृत्ति कम पाई जाती है लेकिन जैसे ही किसी भी राष्ट्र में विघटन की प्रवृत्ति बढ़ने लगती है, वहां पर आत्महत्या की प्रवृत्ति में भी वृद्धि देखी जाती है। रोम एवं ग्रीस में जब भी परंपरागत राजनीतिक व्यवस्था में उतार-चढ़ाव आया है वहां पर आत्महत्या की प्रवृत्ति में वृद्धि देखी गई। दुखींम का यह भी कहना है कि जब किसी देश में संकटकालीन स्थिति रहती है वहां पर आत्महत्या की दर में कमी आ जाती है क्योंकि उस समय लोगों में देशभक्ति की भावना बढ़ जाती है। जो सामाजिक एकीकरण को प्रोत्साहन देती है। दुर्खीम ने बताया कि 19वीं सदी में जब-जब क्रांतियां हुई फ्रांस में आत्महत्या की दर में कमी देखी गई। इस तरह यूरोपीय देशों में भी दुर्खीम के आंकड़े यह प्रमाणित करते हैं कि राजनीतिक व्यवस्था एवं आत्महत्या के बीच में सहसंबंध हैं।
परार्थवादी आत्महत्या (Altruistic Suicide)
परार्थवादी आत्महत्या, अहमवादी आत्महत्या के बिल्कुल विपरीत है। परार्थवादी आत्महत्या को कभी-कभी सुख परख आत्महत्या भी कहा जाता है। शाब्दिक अर्थ में परार्थवादी आत्महत्या वह आत्महत्या है जो स्वयं व्यक्ति के लिए नहीं अपितु समाज के लिए की जाती है।
दुर्खीम के अनुसार परार्थवादी आत्महत्या व्यक्ति के द्वारा तब की जाती है जब व्यक्ति और समाज में बहुत अधिक घनिष्ठ संबंध होता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व पूर्ण रुप से समाज में समाहित हो जाता है। उसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रहता, उसकी सोचने विचारने की क्षमता समूह की दृष्टि से संचालित होती है, वह अपने आपको नगण्य समझने लगता है एवं समुदाय के हित के लिए अपने आपको निछावर करने के लिए तैयार हो जाता है। दुर्खीम के अनुसार समाज में अपर्याप्त सामूहिकता सामाजिक एकता एवं संगठन का अभाव आत्महत्या को बढ़ावा देता है। वहीं पर अत्यधिक सामूहिकता एवं सामाजिक एकता भी आत्महत्या को बढ़ावा देती
सामान्यतः यह माना जाता है कि सामान्य एवं आदिम समाजों में अहमवादी आत्महत्या नहीं होती है क्योंकि इन समाजों में व्यक्ति की पहचान समाज से होती है पर इन समाजों में जो आत्महत्या होती है वह परार्थवादी होती है। यह आत्महत्या व्यक्ति को सामाजिक मांग और धार्मिक आवशयकताओं के कारण करनी पड़ती है। इस तरह वह इसे कर्तव्य के रूप में स्वीकार करते हैं। उदाहरण के लिए प्राचीन समाज में त्रियों के विधवा होने के बाद समाज विधवा महिलाओं से अपेक्षा करता था कि वह अपने पति के साथ सती हो जाए। इसमें सती होने का निर्णय महिला का नहीं होता था अपितु यह निर्णय समाज का होता था ऐसी स्थिति में विधवा महिला भी जानती थी कि यदि वह सती नहीं होगी तो उसका शेष जीवन समाज के कारण दुखी हो जाएगा।
महिला का सती होने का निर्णय समाज का होता है। समाज ऐसा समझता है कि सती होने से महिला की पवित्रता बनी रहेगी इस तरह सती होना वस्तुतः आत्महत्या है। इस तरह मध्यकालीन समाज में स्त्रियां जौहर करती, यह भी एक प्रकार से परार्थवादी आत्महत्या है।
दुर्खीम के अनुसार इस प्रकार की आत्महत्याओं के पीछे एक बहुत बड़ा कारण धर्म का पालन है, क्योंकि व्यक्ति यदि समाज में रहते हुए धर्म का पालन नहीं करता है तो वह समाज उसे किसी न किसी रूप में सजा देता है। इसलिए यह आत्महत्या समाज द्वारा थोपी हुई आत्महत्या है। परार्थवादी आत्महत्या की प्रवृत्ति सामान्यतः विकसित देशों में नहीं दिखाई देती क्योंकि विकसित देशों में व्यक्तिवाद पराकाष्ठा पर होता है। अविकसित एवं आदिम समाजों में परार्थवादी आत्महत्या का स्वरूप देखने को मिलता है।
मानक शून्यता या प्रतिमान हीनता मूलक आत्महत्या (Anomic Suicide)
आत्महत्या का तीसरा स्वरूप प्रतिमान हीनता मूलक आत्महत्या है। सामाजिक जीवन में अत्यधिक विशिष्टीकरण एवं विभेदीकरण के कारण सामाजिक चेतना एवं प्रकार्यात्मक निर्भरता में कमी आ जाती है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपने आपको समाज से अलग-थलग महसूस करने लगता है। यह स्थिति दुखम के अनुसार प्रतिमान हीनता या मानक शून्यता है। दुर्खीम ने विसंगति व आदर्श हीनता को परिभाषित करते हुए लिखा है “विसंगति आदर्श हीनता की एक स्थिति है, जिसमें स्वाभाविकता का अभाव है, नियमों का निलंबन है, यह एक ऐसी स्थिति है जिसे हम अक्सर नियम विहीनता कहते हैं, यह आत्महत्या मनुष्य के क्रियाकलापों के नियमन के आभाव एवं उसमें होने वाले कष्टों के कारण घटित होती है, इस प्रकार की आत्महत्या की विशेष सामाजिक पृष्ठभूमि है, दुखम के अनुसार आदर्श विहीन एवं मूल्य विहीन स्थिति में कुछ लोग अपना अनुकूलन करने में समर्थ रहते हैं, असफल हो जाते हैं, निराश हो जाते हैं और इस निराशापूर्ण स्थिति से मुक्ति पाने के लिए आत्महत्या करते हैं।
दुर्खीम ने मानक शून्यता संबंधी आत्महत्या को समझाने के लिए तीन आधारों को चुना है
A. आर्थिक विसंगति एवं आत्महत्या (Economic Anomy & Suicide) आर्थिक संकट एवं आर्थिक विसंगति आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ाने वाला एक सर्वमान्य तथ्य है। उनके अनुसार न केवल आर्थिक संकट बल्कि आर्थिक समृद्धि भी आत्महत्या की दर को बढ़ाती है। दुर्खीम के अनुसार वास्तव में सौभाग्य पूर्ण संकटों जिससे देश की आर्थिक समृद्धि बढ़ती है का प्रभाव भी आत्महत्या की प्रवृत्ति पर प्रभाव डालता है। जैसे- अचानक लॉटरी में बहुत अधिक धन की प्राप्ति या अचानक दिवालिया हो जाना दोनों ही आत्महत्या को प्रोत्साहित करते हैं। क्योंकि दोनों ही परिस्थितियों में व्यक्ति के समायोजन का संतुलन बिगड़ जाता है और व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है।
B. पारिवारिक विसंगति एवं आत्महत्या (Domestic Anomy & Suicide) पारिवारिक विघटन व विसंगति भी आत्महत्या के कारणों को बढ़ावा देती हैं। पति-पत्नी में से किसी एक की मृत्यु होने पर अथवा विवाह विच्छेद द्वारा अलग होने पर परिवार में जो संकट आता है वह आत्महत्या का कारण बनता है। दुर्खीम के अनुसार विधुर व्यक्ति में विधवा या परित्यक्ता महिला की तुलना में आत्महत्या की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है।
C. यौन विसंगति एवं आत्महत्या (Sex Anomy & Suicide) आत्महत्या का एक कारण यौन विसंगति भी हो सकती है। दुर्खीम के अनुसार वैवाहिक जीवन में असंतुलन एवं विघटन होता है तो उससे मानव की मूल प्रवृतियाँ व भावनाएं प्रभावित होती हैं इससे व्यक्ति आत्महत्या करता हैं।
दुर्खीम ने आत्महत्या के तीन प्रमुख कारणों का वर्णन किया है। उनके अनुसार इन तीनों प्रकार की आत्महत्याओं के अनेक मिश्रित व व्यक्तिगत रुप भी संभव है। इसलिए आत्महत्या का कारण व्यक्ति विशेष के स्वभाव पर निर्भर रहता है। इसी स्वभाव के आधार पर व्यक्ति विशेष परिस्थिति में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करता है। दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या एक निजी घटना है पर इसके कारण सामाजिक होते हैं। कुछ सामाजिक शक्तियां पूरे समाज में कार्य करती हैं। इन सामाजिक शक्तियों का उद्गम व्यक्ति से नहीं होता बल्कि समाज से होता है। यह सामाजिक शक्तियां ही वास्तविक व यथार्थ है। यही शक्तियां ही आत्महत्या का कारण हैं, आत्महत्या का निर्धारण करती हैं, यही शक्तियां व्यक्ति को स्वयं की हत्या करने के लिए बाध्य करती हैं, यद्यपि व्यक्ति तो यह मानकर चलता है कि उसने जो कुछ किया है वह अपनी इच्छा से किया हैं।
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