दुष्प्रकार्य की अवधारणा - concept of dysfunction

दुष्प्रकार्य की अवधारणा - concept of dysfunction


सामान्य तौर पर दुष्यकार्य की अवधारणा प्रकार्य का विपरीत रूप है। दुष्प्रकार्य से वे दृष्टिगोचर परिणाम हैं, जो सामाजिक व्यवस्था में स्वीकरण या अभियोजन की प्रक्रिया को कम करते हैं। किसी एक ही तथ्य के दो तरह के परिणाम हो सकते हैं। समाज व्यवस्था की विभिन्न इकाइयों से यह उम्मीद की जाती है कि वे सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में अपना यारेगदान इस प्रकार करें कि इन उद्देश्यों की अधिकतम पूर्ति हो सके तथा साथ ही साथ व्यवस्था एवं निरंतरता बनी रहे। किंतु ऐसी भी कुछ इकाइयाँ होती है जो आशा के प्रतिकूल कार्य करती है, परिणामस्वरूप सामाजिक व्यवस्था में बाधा उत्पन्न होती है। सामाजिक इकाइयों की जिन क्रियाओं द्वारा ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है उसे दुष्प्रकार्य कहते हैं।


जॉनसन के अनुसार - “कोई भी आंशिक संरचना उपसमूह का एक प्रारूप, एक भूमिका, एक सामाजिक आदर्श नियम या एक सांस्कृतिक मूल्य यदि एक सामाजिक व्यवस्था या उपव्यवस्था की एक या अधिक सामाजिक आवश्कताओं की पूर्ति में बाधा उत्पन्न करता है तो उसे दुष्प्रकार्य कहते हैं।"


मर्टन के अनुसार - "दुष्प्रकार्य वे निरीक्षित परिणाम है जो व्यवस्था के अनुकूलन या सामंजस्य को कम करते हैं।” अभिप्राय यह कि व्यवस्था की विभिन्न इकाइयाँ दो दिशाओं में क्रियाशील हो सकती है। प्रथम यह कि उनकी क्रियाशीलता ऐसे परिणामों को उत्पन्न करे जिनके कारण उस व्यवस्था विशेष का संतुलन दृढ़ हो जाए और उस व्यवस्था का अन्य व्यवस्थाओं के साथ या संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के साथ अनुकूलन करना, उनसे सामंजस्य स्थापित करना उनके लिए संभव एवं सरल हो जाए। इस प्रकार की क्रियाशीलता को प्रकार्य कहा जाता है। द्वितीय एक व्यवस्था विशेष की इकाइयों की क्रियाशीलता ऐसे परिणामों को उत्पन्न करे जिसके कारण उस व्यवस्था विशेष का संतुलन नष्ट हो जाए और उस व्यवस्था का अन्य व्यवस्थाओं या संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के साथ अनुकूलन या सामंजस्य स्थापित करने की संभावनाएँ कम हो जाए। इकाइयों की इस प्रकार की क्रियाशीलता को दुष्प्रकार्य कहते हैं।


उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर दुष्प्रकार्य की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया जा सकता है-


• संरचना की इकाई का परिणाम दुष्प्रकार्य की अवधारणा सामाजिक संरचना एवं प्रकार्य से संबंधित है। अतः दुष्प्रकार्य के अर्थ को प्रकार्य के संदर्भ में समझा जा सकता है। जैसे प्रकार्य अनुकूलन एवं सांमजस्य की में वृद्धि करता है तथा दुष्प्रकार्य सामंजस्य एवं अनुकूलन की संभावना को कम करता है।


• संरचना की इकाई का परिणाम दुष्प्रकार्य सामाजिक संरचना की किसी इकाई का परिणाम है। संरचना की इकाई गति प्रकार्य तथा दुष्प्रकार्य के लिए अत्तरदायी है।


• व्यवस्था की आवश्यकता से संबंधित अवधारणा दुष्प्रकार्य का संबंध व्यवस्था की आवश्यकता से है। यदि कोई क्रिया ऐसा परिणाम उत्पन्न करती है जो सामाजिक आवश्यकता की पूर्ति में बाधक हो तब हम उसे दुष्प्रकार्य कहते हैं।


• सामाजिक जीवन का नकारात्मक पक्ष-दुष्प्रकार्य सामाजिक जीवन नकारात्मक पक्ष से संबंधित अवधारणा है। अर्थात् यह समाज व्यवस्था की निरंतर एवं संतुलन की दृष्टि से हानिकारक तत्व है।


• प्रत्यक्ष परिणाम- दुष्प्रकार्य के प्रत्यक्ष परिणाम हैं जो सामाजिक व्यवस्था की अनुकूलन करने को क्षमता को कम करते हैं। यह किसी इकाई की अंतरंग स्थिति से संबन्धित धारणा नहीं है अपितु अनुसंधानकर्ता के वैज्ञानिक अवलोकन से संबंधित घटना है।