तुलनात्मक अभावबोध की अवधारणा - The concept of relative deprivation

तुलनात्मक अभावबोध की अवधारणा - The concept of relative deprivation


तुलनात्मक अभावबोध की अवधारणा प्रसंग-समूह व्यवहार का केंद्र बिंदु है। व्यक्ति की यह प्रवृत्ति होती है कि वह अपनी स्थिति की तुलना दूसरे व्यक्ति की स्थिति से करता है। फकीर को देखकर राजा अपने को हीन समझता है। कहा जाता है कि अनिद्रा से बेचैन एक राजा रात में महल से बाहर निकला। उसने देखा कि चाँदनी रात में एक कुम्हार नंगी फर्श पर चैन की गहरी नींद सो रहा है। राजा ने जब अपनी स्थिति की तुलना उस कुम्हार से की तो अभावबोध से पीड़ित हो गया। कुम्हार के पास चैन की नींद थी, जो राजा के पास नहीं थी । मर्टन स्वयं मानता है कि तुलना करने की प्रवृत्ति सनातन है। यह कहानी इसी सनातन प्रवृत्ति को प्रकट करती है। व्यक्ति अपनी तुलना, अपने स्तर से ऊँचे, समान और निम्न स्तर वालों से कर सकता है। राजा कुम्हार नहीं बनना चाहेगा. लेकिन कुम्हार राजा बनना चाहेगा।

इसका उत्तर, समाज की प्रस्थितिशृंखला है। बहुत कम लोग उच्चप्रस्थिति से नीचे की प्रस्थिति में जाना चाहेंगे। मनुष्य की सामान्य प्रवृत्ति अधिक शक्ति, सम्मान और धन प्राप्त करने की होती है। अतः वह समाज के श्रेणीक्रम में नीचे से ऊपर की और बढ़ना चाहता है। उच्च प्रस्थिति वाले समूह के सदस्य जीवन की अनेक सुविधाओं का भोग करते हैं। जिनसे निम्न प्रस्थिति के लोग वंचित रहते हैं। प्रसंग-समूह व्यवहार का दूसरा महत्वपूर्ण कारण सामाजिक स्तरीकरण है। ऊंचे-नीच का भेद है। मर्टन ने (द अमेरिकन सोल्जर ) से कुछ उदाहरण दिए हैं-


• सेना का विवाहित सिपाही जब अपनी तुलना विवाहित असैनिक मित्रों से करता है, तो वह महसूस करता है कि असैनिक मित्र अपने परिवार के साथ मौत के मुँह में पड़ा हुआ है। ऐसे सैनिक को ऐसा लगता है कि असैनिक मित्रों की तुलना में उसे अधिक त्याग करना पड़ रहा है। 


• सिपाही जब यह देखता है कि उससे कम शिक्षा और अनुभव प्राप्त लोग पदोन्नति कर रहे हैं। और वह जहाँ का तहाँ है, तो उसे तुलनात्मक अभाव बोध की पीड़ा होती है। 


• सैनिक अपनी तुलना जब सेना के अफसरों से करता है तो पाता है कि अफसरों का जीवन अधिक सुविधा-संपन्न होते हुए कम खतरा वाला भी है। सिपाही को सुविधाएँ कम मिलती है, लेकिन उसका जान अधिक खतरे में होती है। 


• उपरोक्त उदाहरण तुलनात्मक अभाव बोध की अवधारणा को स्पष्ट करते हैं। व्यक्ति जब अपनी प्रस्थिति में रहते हुए, अपना मनोवैज्ञानिक संबंध तुलनात्मक अभावबोध उत्पन्न करता है। तुलनात्मक अभाव-बोध के कुछ कारक निम्नलिखित है। के


अ.) तुलनात्मक अभाव-बोध स्थापित करने से उत्पन्न होता है। यदि व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की प्रस्थिति से मनोवैज्ञानिक नर उत्पन्न करें तो सुखी रहेगा। हमारी समझ से यह नियम भी सनातन है।


ब.) मनुष्य में तुलना करने की क्षमता होती है।


स.) भूत, भविष्य और वर्तमान में, किसी वस्तु से मनोवैज्ञानिक नाता जोड़ने की क्षमता केवल मनुष्य में होती है।


उपर्युक्त मानवीय क्षमता के कारण तुलनात्मक अभाव- बोध संभव होता है। व्यक्ति अपनी स्थिति में रहते हुए, जिस दूसरे समूह का सदस्य बनना चाहता है। उस समूह को, उस व्यक्ति का, प्रसंग-समूह कहते हैं। व्यक्ति अपने समूह में रहता है, परंतु मनोवैज्ञानिक नाता प्रसंग-समूह से जोड़ता है। तुलनात्मक अभाव-बोध के कारण वह ऐसा करता है। व्यक्ति जब प्रसंग-समूह से जुड़ जाता है। जो कुछ परिणाम निकलते हैं।


अ.) प्रसंग-समूह की सदस्यता प्राप्त करने के लिए वह पहले से तैयारी करने जाता है। मंच पर पात्र का अभिनय करने के लिए जिस प्रकार पूर्वाभ्यास किया जाता है। उसी प्रकार आने वाली भूमिका ग्रहण करने के लिए. पूर्व समाजीकरण किया जाता है।


ब.) व्यक्ति “न घर का रहता है, न घाट का"। वह अपनी स्थिति से असंतुष्ट रहता है। अर्थात् अपने र समूह में रहते हुए भी वह मनोवैज्ञानिक रीति से प्रसंग-समूह से जुड़ा रहता है। अपना समूह छोड़ना चाहता है और प्रसंग-समूह की सदस्यता उसे अभी तक प्राप्त नहीं हुई रहती है। वह दो समूहों के बीच त्रिशंकु के समान लटकता रहता है। अतः दो प्रस्थितियों के बीच अनिश्चित स्थिति में रहने वाले व्यक्ति को, सीमांत व्यक्ति कहते हैं। मनोवैज्ञानिक रूप से सीमांत स्थिति अत्यंत तनावपूर्ण होती है।